Pitra Paksh 2023: श्राद्ध अथवा शुभ कर्मों आदि में तिल और कुश का प्रयोग क्यों किया जाता है?
Pitru Paksha 2023

Pitra Paksh 2023: सर्व पितृ अमावस्या के साथ श्राद्ध पखवारे का समापन हो जाएगा. श्राद्ध की यह तिथि सनातनियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है. इस दिन हर व्यक्ति अपने दिवंगत माता-पिता एवं अन्य रिश्तेदारों का श्राद्ध कर्म करते हैं. इसके तहत त्रेपन अनुष्ठान, पिण्ड-दान एवं तर्पण आदि किया जाता है. पिण्डदान पितरों के लिए बनाया भोजन होता है, जिसमें पके हुए चावल एवं काले तिल शामिल होते हैं. तत्पश्चात कुश से तिल-जल के तर्पण से पितरों की प्यास बुझाई जाती है. यानी पितरों के भोजन-पानी में तिल का विशेष महत्व होता है. इसके अलावा शुभ-मंगल कार्यो के समय भी हवन आदि में भी तिल एवं कुश प्रयोग किया जाता है. आखिर काले तिल एवं कुश में क्या है, जिसके बिना पिण्ड-दान, तर्पण एवं हवन आदि संभव नहीं है. आइये जानते हैं... यह भी पढ़ें: मृतक द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तुओं का क्या करना चाहिए? आइये जानें क्या कहता है गरुड़ पुराण?

कुश का इस्तेमाल क्यों?

  अथर्ववेद के अनुसार कुश एक पवित्र घास होता है, जो जल को संक्रमित होने से बचाती है. कुश अधिकांशतया जलीय क्षेत्रों के इर्द-गिर्द स्वतः उगने वाली घास है. श्राद्ध कर्म हो या कोई शुभ कर्म अनामिका उंगली में कुश का रिंग पहन कर आध्यात्मिक कार्य करते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक अनामिका उंगली में आध्यात्मिक एवं मानसिक ऊर्जा संचित होती है, क्योंकि इसमें सूर्य का निवास माना जाता है. कुश ऊर्जा प्रतिरोधक होने के कारण नकारात्मक ऊर्जा को अनामिका में प्रवेश होने से रोकता है. पितरों को जब हम कुश के माध्यम से तर्पण करते हैं, हमारी सात्विक भावनाएं उन तक पहुंचती है. कुश का शुभ कार्यों में भी खूब इस्तेमाल होता है. कुश को क्रोध शामक माना जाता है. मन में क्रोध रखकर शुभ कर्म कभी फलीभूत नहीं होते. इसीलिए विवाह अथवा पूजा अनुष्ठान हेतु पाठ, यज्ञ एवं हवन से पूर्व पुरोहित कुश धारण करवाते हैं.

काले तिल का महत्व

 हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार काले तिल में वातावरण और शरीर के अंदर मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने की शक्ति होती है, विभिन्न आध्यात्मिक कर्म काण्डों में काले तिल का इस्तेमाल किया जाता है. पितृ पक्ष के कर्मकाण्डों के अशुभ काल में काले तिल का उपयोग करने से आसपास का वातावरण स्वच्छ रहता है. यही वजह है कि श्राद्ध पक्ष में किसी भी प्रकार के शुभ-मंगल कार्य मसलन गृह प्रवेशविवाहमुंडन अथवा जनेऊ संस्कार आदि कार्य नहीं किये जाते. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार काले तिल का उपयोग कर लोग अपने पितरों का आह्वान करते हैं. काले तिल एवं जल से तर्पण करते समय निम्न मंत्र पढ़े जाते हैं,

गोत्रे अस्मतपिता (पिताजी का नाम लेते हुए) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमःतस्मै स्वधा नमःतस्मै स्वधा नमः

इन मंत्रों में कुछ ऊर्जाएं होती हैंजो काले तिलों को सक्रिय करके पितरों को पिंडदान स्वीकार करने के लिए पृथ्वी पर आकर्षित करती हैं.

यह अनुष्ठान पूर्वजों को जन्म-मृत्यु के दुष्चक्र से छुटकारा दिलाने और उनकी आत्मा को परेशान करने वाली सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होने में मदद करती है.

 हिंदू धर्म शास्त्रों में तिल को देवान्न बताया गया है. इसका प्रयोग शुभ कार्यों में किये जाने वाले हवन और यज्ञ आदि में अनिवार्य बताया गया है. इसके अभाव में इच्छित मकामनाएं पूरी नहीं होती. मान्यतानुसार भगवान विष्णु के प्रिय पदार्थो में तुलसी और तिल की गणना होती है.