Sumitranandan Pant's Death Anniversary: प्रकृति के सुकोमल कवि सुमित्रानंदन पंत का आज पुण्यतिथि, जानें उनकी जीवन गाथा
सुमित्रानंदन पंत (Photo Credits: Wikipedia Commons)

Sumitranandan Pant Death Anniversary: आज प्रकृति के सुकोमल कवि सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) की पुण्यतिथि है. हिंदी साहित्य में छायावाद के चार मुख्य आधार स्तम्भों में से एक सुमित्रानंदन पंत हिंदी काव्य की नई धारा के प्रवर्तक थे. प्रकृति चित्रण, सौंदर्य, दर्शन, प्रगतिशील चेतना और रहस्यवाद को विस्तार देती सुमित्रानंदन पंत की रचनाएं हिंदी भाषा समेत विश्व के रचना संसार की अनुपम धरोहर है. गोसाईंदत्त (Gosain Dutt) से सुमित्रानंदन पंत बनने की गाथा सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में हुआ था. बाल्यकाल में ही उनकी मां का देहांत हो गया था. ऐसे में जननी का स्थान प्रकृति ने ले लिया और उसी की स्नेहछाया में वे आगे बढ़े.

उनके बचपन का नाम गोसाईंदत्त था. गांव में प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे अल्मोड़ा आए. अल्मोड़ा में ही दस वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना नाम गोसाईंदत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया. इतनी छोटी अवस्था में ऐसा नामकरण उनकी सृजनशीलता का परिचय देता है. काशी के म्योर कॉलेज से उन्होंने अध्ययन पूरा किया. गौरतलब है कि प्रयागराज आकाशवाणी के प्रारंभिक दिनों में उन्होंने परामर्शदाता के रूप में वहां कार्य किया. सुमित्रानंदन पंत की काव्य यात्रा सुमित्रानंदन पंत किशोरावस्था में ही कविता के सौंदर्य की ओर आकृष्ट हो गए थे.

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उनकी प्रारंभिक रचनाओं की केंद्र बिंदु प्रकृति है. उन्होंने सरिता,पर्वत,मेघ, झरना, वन, समेत विभिन्न प्राकृतिक बिम्ब के प्रयोग से कविता को नया आयाम दिया. वर्ष 1926 को 'पल्लव' नामक उनका पहला काव्य संकलन प्रकाशित हुआ. इसी तरह उनकी अन्य रचनाओं में, वीणा, गुंजन, ग्राम्या,अणिमा, युगांत और लोकयतन सम्मिलित हैं. सुमित्रानंदन पंत को उनकी कृति "चिदम्बरा" के लिए ज्ञानपीठ और 'कला और बूढ़ा चांद' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

अद्भुत है पन्त का प्रकृति प्रेम और सौंदर्य बोध सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति प्रेम अद्भुत है. प्रकृति उनके लिए धात्री, सहोदरा, सहगामिनी से लेकर उपदेशिका तक सर्वस्व है. दूरदर्शन को दिए साक्षात्कार में वे कहते हैं कि, "हिमालय के आंचल में पैदा होने के कारण सौंदर्य सदा से मेरा मेहमान रहा है." पन्त के लिए स्नेह, ममत्व, राग-विराग जैसे समस्त भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम कविता है, जिनमें वे प्रकृति चित्रण करते हैं. प्रकृति प्रेम की दृष्टि से उनके काव्यों का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि 'वीणा' और 'पल्लव' में सुमित्रानंदन पंत के लिए प्रकृति जिज्ञासा उत्तपन्न करती है तो वहीं 'युगांत' तक आते-आते प्रकृति मार्गदर्शक का रूप धर लेती है. समन्वयवादी है पंत की दृष्टि पंत की रचनाओं की दृष्टि समन्वयवादी है.

उनकी रचनाओं में मार्क्स के विचारों से लेकर श्री अरविंद और विवेकानंद के दर्शन का सुंदर समन्वय दिखाई देता है. भारतीय आध्यात्म के अनुरागी पन्त की दृष्टि में विज्ञान और आध्यात्म का समन्वय इस युग के लिए सर्वाधिक आवश्यक है. वहीं, महिलाओं को लेकर पंत की दृष्टि उदार है. देहबुद्धि से इतर उन्होंने महिलाओं को संवेदना का पुंज माना. उनका कथन है कि, "मनुष्यता का विकास तभी होगा जब स्त्री स्वतंत्र होकर इस धरा में विचर सकेगी, जब उसे भय नहीं रहेगा." प्रकृति एवं अनुभूति के कवि और भाषा के इस समृद्ध हस्ताक्षर सुमित्रानंदन पंत का 28 दिसम्बर 1977 को प्रयागराज में निधन हो गया. इस भौतिकवादी युग में अंतर्जीवन के मूल्यों की ओर ध्यान दिलाने वाले,प्रकृति के इस सुकुमार कवि की आभा हिंदी के साहित्याकाश में सदैव बनी रहेगी.