Sawan Somwar and Science 2025: ‘शिवलिंग’ एवं ‘जलाभिषेक’ का धार्मिक एवं वैज्ञानिक आशय क्या है? जानें शिव मंदिर में प्रवेश करते ही क्यों मिलती है शांति?

आज सावन के पहले सोमवार से शिवलिंग का जलाभिषेक शुरू हो जाएगा. घरों में मंदिरों में शिव भक्तों की श्रद्धा और आस्था देखते बनती है, लेकिन बहुत सारे सारे शिव भक्तों को शिवलिंग के गूढ़ अर्थ की जानकारी नहीं है. ऐसे में हम सभी को शिवलिंग और इस पर जलाभिषेक के मूल अर्थ को भी समझना जरूरी है. बता दें कि शिवलिंग एक धार्मिक प्रतीक ही नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा और चेतना का केंद्र भी है...

आज सावन के पहले सोमवार से शिवलिंग का जलाभिषेक शुरू हो जाएगा. घरों में मंदिरों में शिव भक्तों की श्रद्धा और आस्था देखते बनती है, लेकिन बहुत सारे सारे शिव भक्तों को शिवलिंग के गूढ़ अर्थ की जानकारी नहीं है. ऐसे में हम सभी को शिवलिंग और इस पर जलाभिषेक के मूल अर्थ को भी समझना जरूरी है. बता दें कि शिवलिंग एक धार्मिक प्रतीक ही नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा और चेतना का केंद्र भी है. शिवलिंग आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तीनों दृष्टिकोण से अत्यंत गूढ़ है. यह ऐसा विषय है, जो आज के युवाओं को यह समझने में मदद करता है कि हमारी सनातन संस्कृति कितनी वैज्ञानिक और चेतनाशील है. शिवलिंग का ‘वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य’ एक ज्ञानवर्धक विषय है, जो धार्मिक आस्था को आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से जोड़ता है. आइए जानते हैं इस संदर्भ में विस्तार से. यह भी पढ़ें: Sawan Ka Pahla Somwar: सावन का पहला सोमवार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, यूपी सहित देश के कई राज्यों में मंदिरों में श्रद्धालुओं की उमड़ी भारी भीड़, देखें VIDEOS

क्या है शिवलिंग

शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ है, भगवान शिव का प्रतीक रूप. वह आकारहीन, निराकार ब्रह्म का प्रतीक. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से शिवलिंग ब्रह्मांडीय ऊर्जा, सृजन, स्थिति, और संहार का प्रतीक है. यह पुरुष और प्रकृति दोनों के मिलन को दर्शाता है, जिससे संपूर्ण सृष्टि उत्पन्न होती है.

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शिवलिंग

ऊर्जा केंद्र (Energy Vortex): प्राचीन मंदिरों में शिवलिंग को विशेष तरीके से धरती की चुंबकीय रेखाओं पर स्थापित किया गया था. शिवलिंग के पास बैठकर ध्यान करने से मस्तिष्क को सकारात्मक कंपन मिलती हैं, जिससे मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ती है.

शिवलिंग का गोलाकार आकार: गोल आकार ऊर्जा को केंद्रित और स्थिर करता है. वैज्ञानिकों के अनुसार, किसी गोलाकार संरचना में ऊर्जा सहजता से घूमती है, जिससे एक ऊर्जा क्षेत्र बनता है. यही कारण है कि शिवलिंग को स्पर्श नहीं किया जाता. उसकी ऊर्जा शुद्ध और स्थिर रहती है.

शिवलिंग और ब्रह्मांड की संरचना

शिवलिंग का ऊपरी गोल भाग ब्रह्मांड को दर्शाता है, जबकि नीचे का आधार जगत की ऊर्जा को. कुछ वैज्ञानिकों और दार्शनिकों ने यह भी माना है कि शिवलिंग ब्रह्मांडीय ब्लैक होल जैसा प्रतीत होता है, जो सब कुछ निगल जाता है, और फिर सृजन की नई प्रक्रिया शुरू करता है.

ध्यान और तंत्र विद्या का संबंध

योग और तंत्र परंपरा में भगवान शिव को आदि योगी माना गया है. शिवलिंग को ध्यान का केंद्र बनाकर साधक तीसरी आंख की ऊर्जा को जाग्रत करते हैं.

लिंग रूप शिव का निराकार स्वरूप है, जिससे ध्यान करने पर अहंकार मिटता है और साधक ब्रह्म से एकाकार होता है.

मंदिरों में शिवलिंग स्थापना की विधि

प्राचीनकाल में मंदिरों में शिवलिंग को धरती की ऊर्जा केंद्र पर स्थापित किया जाता था. इस तरह की संरचना वास्तु शास्त्र और ज्योतिष गणना से निर्धारित होती थी. यही कारण है कि पुराने शिव मंदिरों में प्रवेश करते ही मन शांत हो जाता है, क्योंकि वहां की ऊर्जा अत्यंत शुद्ध और सजीव होती है.

शिवलिंग पर जल अर्पण का वैज्ञानिक रहस्य

शिवलिंग पर जब जल या दूध अर्पित किया जाता है, तो वह उसके ऊपर से घूमता हुआ नीचे गिरता है, जिससे एक कंपन होता है. यह प्रक्रिया मानसिक तनाव कम करने, एकाग्रता बढ़ाने और आत्मिक संतुलन लाने में मदद करती है.

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