Sakat Chauth 2020: कब है सकट चौथ और क्या है पूजा विधान? जानें व्रत एवं पूजन के लिए शुभ मुहूर्त एवं कथा

सकट चौथ का व्रत माघ कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन किया जाता है. इस व्रत को तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, माघी चतुर्थी आदि के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए गणेश जी का व्रत करतीं है. मान्यता है कि यह व्रत करने से श्री गणेश जी संतान को रिद्धि-सिद्धि प्रदान करते हैं.

सकट चौथ 2020, (Photo Credits: Pixabay)

Sakat Chauth 2020: सकट चौथ का व्रत माघ कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन किया जाता है. इस व्रत को तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, माघी चतुर्थी आदि के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए गणेश जी का व्रत करतीं है. मान्यता है कि यह व्रत करने से श्री गणेश जी संतान को रिद्धि-सिद्धि प्रदान करते हैं. इस दिन महिलाएं पूरी तरह से निर्जल व्रत रखती है तथा सायंकाल सूर्यास्त के समय श्री गणेश पूजा-अर्चना कर चंद्र-दर्शन एवं चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात् ही अन्न-जल ग्रहण करती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 13 जनवरी 2020 के दिन सकट चौथ मनाया जाएगा.

सकट चौथ पूजन-व्रत विधि

सकट चौथ के दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नानादि के पश्चात ऋद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश जी के निर्जल व्रत का संकल्प लेती है. पूरे दिन व्रत रखने के बाद सायंकाल के समय साफ अथवा नये वस्त्र आदि पहनकर शुभ मुहर्त पर गणेश जी की फल-फूल, धूप दीप एवं तिल-गुड़ के प्रसाद के साथ पूजा-अर्चना करती हैं और गणेश जी का मंत्र 'ॐ गं गणपतयै नम:' का 21 बार जाप करते हुए 21 दूर्वा गणेश जी को अर्पित करना चाहिए. पूजा के समय श्रीगणेश जी को बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए. पूजा के समय लाल फूल चढ़ाना चाहिए. तुलसी का पत्ता गणेशजी को नहीं चढ़ाया जाता. चंद्रोदय होने पर चंद्र दर्शन करने के पश्चात धूप-दीप चढ़ाकर कुश और जल से चंद्र को अर्घ्य दें. इसके बाद व्रत का पारण करना चाहिए. बहुत सी महिलाएं अगले दिन ब्राह्मण को अन्न दान एवं दक्षिणा देने के पश्चात व्रत का पारण करती हैं.

सकट चौथ का शुभ मुहूर्त:

सकट चौथः चंद्रोदय- रात 9 बजे

चतुर्थी तिथि प्रारंभः 13 जनवरी सायंकाल 05.32 बजे

चतुर्थी तिथि समापनः 14 जनवरी दोपहर 02.49 बजे

सकट चौथ की कथा

सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था. एक दिन उसकी हर कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे, तब उसने यह बात एक पुजारी को बताई. पुजारी ने उसे सुझाव दिया कि अगर वह किसी छोटे बच्चे की बलि चढ़ाए तो उसकी हर समस्या दूर हो सकती है. उस कुम्हार ने गांव के ही एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया. वह सकट चौथ का दिन था. उधर बच्चे की माँ ने बच्चे को हर जगह तलाशा, लेकिन बच्चा जब नहीं मिला तब उसने गणेश जी का ध्यान करते हुए सच्चे मन से प्रार्थना की. उधर कुम्हार ने प्रातःकाल उठकर देखा, तो आंवा में रखे उसके सारे बर्तन अच्छी तरह से पक गये थे, साथ ही बच्चा भी सुरक्षित था. यह देखकर कुम्हार डर गया. वह तुरंत राजा हरिश्चंद्र के पास पहुंचा और सारी बातें बताते हुए अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी. राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया और सारी बातें उसे बताई. मां ने कहा कि उसने बच्चे की सुरक्षा की प्रार्थना करते हुए सारे संकटों को दूर करने वाले श्रीगणेश जी की सच्चे मन से पूजा की और राजा को सकट चौथ की महिमा बताई. कहा जाता है कि इसके बाद से ही महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य तथा लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं.

 

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