Ram Navami 2023: वाल्मिकी रामायण के ऐतिहासिक पहलू? जानें राम-कथा के चौंकानेवाले संदर्भित तथ्य!
Ram Navami 2023: श्रीराम ऐतिहासिक महापुरुष थे. इसके पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं. इस दिशा में हुए शोध से प्राप्त तथ्यों के अनुसार का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था. चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है. उपरोक्त जन्म का समय राम की वंशपरंपरा और उनकी पीढ़ियों से भी सिद्ध होता है. अयोध्या के इतिहास और अयोध्या की वंशावली से भी यह प्रमाणित होता है. इसका सबसे पुख्ता प्रमाण वाल्मीकि रामायण में मिलते हैं. यहां वाल्मिकी रामायण से उद्घृत कुछ प्रामाणिक तथ्य प्रस्तुत हैं.
* राम का जन्म रामनवमी के दिन हुआ था?
दशरथ पुत्र श्रीराम की जन्म-तिथि और समय 5114 ईसा पूर्व में 10 जनवरी, दोपहर 12.30 बजे बताया गया है. तारामंडल सॉफ्टवेयर का उपयोग करके राम के जन्म की तारीख की सटीक गणना की जा सकती है. यदि श्रीराम का जन्म उपयुक्त तिथि में हुआ है, तो हम मार्च-अप्रैल के मध्य रामनवमी क्यों मनाते हैं? इसका कारण विषुव की शुद्धता की अवधारणा है, जहां प्रत्येक 72 वर्षों के लिए एक दिन समायोजित होता है. इस तरह 7,200 साल की अवधि में, यह 10 जनवरी से 15 अप्रैल के बीच लगभग 100 दिनों तक माना जाता है.
* क्या राम ने 11,000 वर्षों तक शासन किया था?
रामायण के श्लोकों के अनुसार श्रीराम ने 11 हजार वर्ष अयोध्या पर शासन किया था. रामचरितमानस के अनुसार श्रीराम 25 वर्ष की आयु में वनवास भोगने चले गए थे. 14 साल बाद अयोध्या लौटे. 39 वर्ष की आयु में उनका राज्याभिषेक हुआ. इसके बाद 30 वर्ष और 6 माह तक शासन करने के पश्चात 70 वर्ष की आयु में राज्य त्याग दिया.
दशा वर्ष सहस्रानी दशा वर्षा शतानि च |
रामो राज्यं उपासित्वा ब्रह्म लोकं प्रयासयति ||
(रामायण - 1-1-97 1)
अर्थात 10 हज़ार, और एक हज़ार वर्ष (यानी 11 हजार वर्ष) तक राज्य की सेवा में रहने के बाद श्रीराम ने ब्रह्म-निवास गमन किया, लेकिन कहा जाता है कि वह 7,100 वर्ष पहले 5100 ईसा पूर्व में अस्तित्व में थे. दो विभिन्न तथ्य इसकी प्रमाणिकता पर प्रश्न खड़ी करते हैं.
इसका उत्तर महाभारत मे मिलता है.
‘अहोरात्रं महाराज तुल्यं संवत्सरेण ही’
(महाभारत, श्लोक 3-49-21)
अर्थात धर्मानुसार शासन करनेवाले महाराजा का एक दिन एक वर्ष के समान माना जाता है. इस तरह 30 दिनों के 12 माह (360 दिन) के तहत 30 वर्ष 6 माह के करीब 11,000 वर्ष होते हैं, जब राम ने अयोध्या पर शासन किया था.
* पुष्पक विमान का सच?
रावण का पुष्पक विमान, जिससे श्रीराम सीताजी, लक्ष्मण एवं हनुमान के साथ लंका से अयोध्या लौटे थे. कहते हैं कि इसके अलावा भी रावण पास कई विमान थे. यहां विमान शब्द से आशय वि, यानी 'आकाश' और मन, अर्थात 'माप' है. यानी विमान वह है जो आकाश को मापता है. पुराणों और महाकाव्यों (रामायण और महाभारत) में कई कहानियों में विमान का वर्णन है. महर्षि भारद्वाज द्वारा वैमनिका शास्त्र जैसा एक अलग साहित्य उपलब्ध है, जो तकनीकी दृष्टिकोण से विमान का उदाहरण दर्शाता है. महर्षि भारद्वाज के श्लोकों में करीब 120 विमानों का उल्लेख है, जो विभिन्न देशों में मौजूद थे. वह इनके उड़ाने में इस्तेमाल होनेवाले ईंधन, वैमानिकी, धातु विज्ञान और युद्धाभ्यासों भी दर्शाते हैं.
राम सेतु का सच?
राम-रावण की लड़ाई कभी नहीं होती अगर राम और उनकी वानर-सेना समुद्र पार कर लंका न पहुंचते, क्योंकि लंका चारों तरफ से समुद्र से घिरा था. किंवदंतियों के अनुसार वानर-सेना ने लंका पहुंचने के लिए पुल बनाया. हजारों साल बाद, नासा द्वारा अंतरिक्ष से खींची तस्वीरों से भारत-श्रीलंका के बीच जलडमरू के मध्य एक प्राचीन पुल का पता चला. रामायण के अनुसार सेतु बनाने के लिए बानरों द्वारा पहले बड़े शिलाखंडों फिर छोटे पत्थरों को गिराया गया. आर्किटेक्ट नल-नील की देखरेख में 5 दिन में करीब 10 मिलियन वानरों द्वारा पुल बना था. यह करीब 100 योजन (वैदिक माप) लंबा सेतु था. धनुषकोडी (भारत) से तलाईमन्नार (श्रीलंका) तक बने सेतु के पत्थर आज भी रामेश्वरम् तट तैरते मिलते हैं. समुद्र विज्ञान के अध्ययन से पता चलता है कि राम सेतु 7,000 साल पुराना है, धनुषकोडी स्थित समुद्र-तटों की कार्बन डेटिंग रामायण की तारीख से मेल खाती है.
क्या रामायण लिखते समय वाल्मीकि राम से मिले थे?
वाल्मीकि ने रामायण की रचना श्रीराम के जीवनकाल में की थी. राम के जुड़वा पुत्र लव-कुश राम-कथा सुनाते हैं. रामायण-कथा एक इतिहास है, जिसका अर्थ है कि ऐसा हुआ. एक महान मर्यादित व्यक्ति से मिलने की चाहत में, वाल्मीकि ने नारद से पूछा था, -अब तक का सबसे महान व्यक्ति कौन हो सकता है? नारद ने उऩ्हें कुछ पंक्तियों में राम-कथा सुनाया. वाल्मीकि राम के संदर्भ में हर उन लोगों से जानकारी प्राप्त करते हैं, जिन्होंने राम से बातचीत की. इसके बाद वाल्मीकि ने काव्य रूप में कथा लिखना प्रारंभ किया. वाल्मीकि बाद में सीता को आश्रय देते हैं और अपने आश्रम में लव-कुश को शिक्षित हैं. इसलिए केवल वाल्मीकि रचित रामायण को इतिहास कहा जाता है, जबकि गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित्रमानस, कालिदास के रघुवंश, कंबन की रामायणम् को महाकाव्य कहा जाता है.