Rabindranath Tagore Jayanti 2019: 2 देशों के राष्ट्रगान के रचयिता और नोबल पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय थे रवींद्रनाथ टैगोर, जानिए उनसे जुड़ी कुछ खास बातें

रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में कलकत्ता के प्रसिद्ध जोर सांको भवन में हुआ था. उनके पिता देवेंद्रनाथ ठाकुर ब्रह्म समाज के नेता थे और रवींद्रनाथ उनके सबसे छोटे पुत्र थे. उनका परिवार कोलकाता के प्रसिद्ध व समृद्ध परिवारों में से एक था.

रवींद्रनाथ टैगोर जयंती 2019 (Photo Credits: Wikimedia Commons)

Rabindranath Tagore 158th Birth Anniversary: प्रसिद्ध कवि, साहित्यकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, उपन्यासकार और चित्रकार रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की आज 158वीं जयंती मनाई जा रही है. रवींद्रनाथ टैगोर को आमतौर पर आधुनिक भारत का असाधारण सृजनशील कलाकार माना जाता है. उन्होंने भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में काफी अहम भूमिका निभाई. वो एक ऐसे मानवतावादी विचारक थे, जिन्‍होंने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपनी अद्भुत और अनूठी प्रतिभा का परिचय दिया.

रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में कलकत्ता के प्रसिद्ध जोर सांको भवन में हुआ था. उनके पिता देवेंद्रनाथ ठाकुर ब्रह्म समाज के नेता थे और रवींद्रनाथ उनके सबसे छोटे पुत्र थे. उनका परिवार कोलकाता के प्रसिद्ध व समृद्ध परिवारों में से एक हुआ करता था. चलिए जानते हैं रवींद्रनाथ टैगोर जयंती (Rabindranath Tagore Jayanti 2019) के इस खास मौके पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें.

भारत-बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रचयिता

रवींद्रनाथ टैगोर विश्व के एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिनकी दो रचनाएं दो देशों की राष्ट्रगान बनी. भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांग्ला' के रचियता टैगोर ही हैं. यह भी पढ़ें: Swami Vivekananda Jayanti 2019: स्वामी विवेकानंद की 156वीं जयंती, 10 ऐसे प्रेरणादायी विचार जो आपके जीवन में भर देंगे नई ऊर्जा

नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय

रवींद्रनाथ टैगोर भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के भी पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. साल 1913 में उन्हें यह पुरस्कार उनकी सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि के लिए दिया गया था. कहा जाता है कि उन्होंने इस पुरस्कार को सीधे स्वीकार नहीं किया था. उनकी तरफ से ब्रिटेन के एक राजदूत ने पुरस्कार लिया था और फिर उन्हें दिया था.

8 साल की उम्र में लिखी पहली कविता

रवींद्रनाथ टैगोर अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे और घर के सबसे छोटे बेटे थे. उन्हें बचपन में प्यार से रबी कहकर बुलाया जाता था. जब वे महज आठ साल के थे तब उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी थी. सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना शुरू कर दिया था.

पिता चाहते थे बैरिस्टर बनें रवींद्रनाथ

रवींद्रनाथ टैगोर की प्राथमिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी. उनके पिता की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा पढ़-लिखकर बैरिस्टर बने, इसलिए उन्होंने रवींद्रनाथ को कानून की पढ़ाई के लिए 1878 में लंदन भेजा. हालांकि रवींद्रनाथ साहित्य प्रेमी थे, लिहाजा कुछ समय तक लंदन के कॉलेज में पढ़ाई करने के बाद बिना डिग्री लिए ही साल 1880 में वापस लौट आए.

रवींद्रनाथ टैगोर के प्रसिद्ध साहित्य

रवींद्रनाथ ने साहित्य की विभिन्न विधाओं का सृजन किया. उनकी सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि लोगों की इतनी पसंद आई कि इसका अनुवाद अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी, रूसी इत्यादि भाषाओं में किया गया. उनकी कहानियों में काबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्टमास्टर जैसी कई कहानियां आज भी लोगों को बेहद पसंद आती है. यह भी पढ़ें: RamaKrishna Paramahamsa Jayanti 2019: एक गृहस्थ संन्यासी थे रामकृष्ण परमहंस, भक्ति की शक्ति और मानवता की सीख देते हैं उनके ये अनमोल उपदेश

क्रांतिकारी भी थे रवींद्रनाथ टैगोर

रवींद्रनाथ की रचनाओं में स्वतंत्रता आंदोलन और उस समय के समाज की झलक साफ तौर पर देखी जा सकती है. एक साहित्यकार होने के साथ-साथ वे महान क्रांतिकारी भी थे. 16 अक्टूर 1905 में उनके नेतृत्व में कोलकाता में रक्षाबंधन उत्सव मानाया गया और इस उत्सव से बंग-भंग आंदोलन की शुरुआत हुई. उन्होंने जलियांवाला कांड की घोर निंदा की और इसके विरोध में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई 'नाइट हुड' की उपाधि लौटा दी.

गौरतलब है कि रवींद्रनाथ टैगोर को प्रकृति से बेहद खास लगाव था. उनका मानना था कि छात्रों को भी प्रकृति के सानिध्य में रहकर ही शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए. अपनी इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की थी. उन्होंने अपने जीवनकाल में अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और चीन सहित कई देशों की यात्राएं की. अपनी रचनाओं का अनमोल तोहफा दुनिया को देने वाले इस बहुमुखी साहित्यकार ने 7 अगस्त 1941 को कलकत्ता में अंतिम सांस ली थी.

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