100 साल बाद पितृ पक्ष पर महासंयोग, चंद्र ग्रहण से शुरू, सूर्य ग्रहण पर खत्म, जानें तर्पण विधि और श्राद्ध के नियम
पितृ पक्ष 2025: 100 साल बाद ग्रहणों का महासंयोग (Photo : AI)

Lunar and Solar Eclipse on Pitru Paksha: वर्ष 2025 का पितृ पक्ष केवल एक वार्षिक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी दुर्लभ खगोलीय घटना का साक्षी बनने जा रहा है जो लगभग एक सदी के बाद घटित हो रही है. इस वर्ष श्राद्ध पक्ष की शुरुआत एक पूर्ण चंद्र ग्रहण से होगी और इसका समापन एक सूर्य ग्रहण के साथ होगा, जो इसे ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है. यह असाधारण संयोग इस 16-दिवसीय अवधि के महत्व को कई गुना बढ़ा देता है, जिससे यह पितरों की शांति के लिए किए जाने वाले कर्मकांडों के साथ-साथ आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक उन्नति का एक अनूठा अवसर बन गया है. इस विशेष कालखंड का प्रभाव न केवल व्यक्तिगत जीवन पर, बल्कि देश और दुनिया पर भी पड़ने की संभावनाएं ज्योतिषियों द्वारा व्यक्त की जा रही हैं.

ग्रहणों का महासंयोग: ज्योतिषीय महत्व और प्रभाव

पूर्ण चंद्र ग्रहण (7-8 सितंबर 2025)

 

  • तिथि और समय: पितृ पक्ष का आरंभ 7 सितंबर 2025 को भाद्रपद पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ होगा, और इसी रात एक पूर्ण चंद्र ग्रहण लगेगा. भारतीय समयानुसार, यह ग्रहण 7 सितंबर की रात लगभग 9:58 PM पर शुरू होगा और 8 सितंबर की सुबह 1:26 AM पर समाप्त होगा. ग्रहण का चरम प्रभाव रात 11:42 PM के आसपास देखने को मिलेगा. इस खगोलीय घटना की कुल अवधि लगभग 3 घंटे 28 मिनट होगी, जिसमें पूर्ण ग्रहण की अवस्था (Totality), जब चंद्रमा पूरी तरह से लाल हो जाता है, लगभग 82 मिनट तक रहेगी.
  • भारत में दृश्यता: यह पूर्ण चंद्र ग्रहण, जिसे 'ब्लड मून' भी कहा जाता है, पूरे भारत में स्पष्ट रूप से दिखाई देगा, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु और चंडीगढ़ समेत देश के सभी प्रमुख शहरों से इसे देखा जा सकेगा.
  • सूतक काल: ग्रहण के धार्मिक प्रभाव के कारण सूतक काल का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है. चंद्र ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है, इसलिए यह 7 सितंबर को दोपहर 12:57 PM (IST) से प्रारंभ हो जाएगा और ग्रहण की समाप्ति के साथ ही खत्म होगा. सूतक काल के दौरान मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और किसी भी प्रकार के शुभ कार्य या पूजा-पाठ वर्जित माने जाते हैं.
  • श्राद्ध कर्म पर प्रभाव: सूतक काल लगने के कारण, 7 सितंबर को किया जाने वाला पूर्णिमा का श्राद्ध और तर्पण दोपहर 12:57 PM से पहले ही संपन्न कर लेना उत्तम रहेगा. शास्त्रों के अनुसार, ग्रहण के बाद किया गया तर्पण और दान भी अत्यंत फलदायी माना जाता है, इसलिए कुछ लोग ग्रहण समाप्त होने के बाद भी श्राद्ध कर्म कर सकते हैं.

 

आंशिक सूर्य ग्रहण (21 सितंबर 2025)

 

  • तिथि और समय: पितृ पक्ष का समापन 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के दिन होगा, और इसी दिन एक आंशिक सूर्य ग्रहण भी घटित होगा.
  • भारत में अदृश्यता: यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पितृ पक्ष के समापन पर लगने वाला यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा. इसका दृश्य क्षेत्र मुख्य रूप से दक्षिणी प्रशांत महासागर, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका तक सीमित रहेगा.
  • ज्योतिषीय महत्व: हालांकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, फिर भी इसका ज्योतिषीय और प्रतीकात्मक महत्व बना रहता है. यह पितृ पक्ष के समापन को चिह्नित करता है. चूंकि यह भारत में दृश्यमान नहीं है, इसलिए इसका कोई धार्मिक सूतक काल नहीं माना जाएगा और सर्वपितृ अमावस्या पर किए जाने वाले श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान जैसे कर्मकांडों पर इसका कोई व्यावहारिक प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह स्थिति ज्योतिषीय प्रतीकवाद और धार्मिक अनुष्ठान के बीच के अंतर को दर्शाती है; जहां प्रतीकात्मक रूप से यह एक शक्तिशाली संयोग है, वहीं व्यावहारिक रूप से अंतिम दिन के अनुष्ठानों में कोई बाधा नहीं है.

 

इस दुर्लभ संयोग का देश-दुनिया पर संभावित प्रभाव

 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब पितृ पक्ष जैसी आध्यात्मिक रूप से संवेदनशील अवधि में सूर्य और चंद्रमा जैसे प्रमुख ग्रह राहु-केतु अक्ष पर पीड़ित होते हैं, तो इसका प्रभाव गहरा हो सकता है. ज्योतिषियों का मानना है कि चंद्र-राहु और सूर्य-केतु का समसप्तक योग (जब वे एक-दूसरे से सातवें घर में हों) एक अशुभ संयोग बनाता है. इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं, विशेषकर पहाड़ी और संवेदनशील क्षेत्रों में, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक उथल-पुथल की आशंका बढ़ सकती है. यह अवधि वैश्विक स्तर पर बड़े बदलावों का संकेत दे सकती है.

 

पितृ पक्ष को समझें - महत्व और मान्यताएं

 

क्या है पितृ पक्ष और श्राद्ध का वास्तविक अर्थ?

 

"श्राद्ध" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द "श्रद्धा" से हुई है, जिसका अर्थ है पूर्ण विश्वास, सम्मान और निष्ठा. इस प्रकार, श्राद्ध केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने का एक भावपूर्ण तरीका है. यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाली 16 दिनों की अवधि है.

 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय यमराज पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं ताकि वे पृथ्वी पर अपने वंशजों के पास आ सकें और उनके द्वारा दिए गए तर्पण, पिंडदान और भोजन को ग्रहण कर सकें. इन कर्मों से पितरों की आत्मा को तृप्ति, शांति और सद्गति प्राप्त होती है, और वे बदले में अपने परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं.

 

पितृ ऋण: एक आध्यात्मिक दायित्व जिसे चुकाना है जरूरी

 

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य पर जन्म के साथ तीन प्रमुख ऋण होते हैं: देव ऋण (देवताओं के प्रति), ऋषि ऋण (गुरुओं और ऋषियों के प्रति), और पितृ ऋण (माता-पिता और पूर्वजों के प्रति). पितृ ऋण हमारे पूर्वजों का वह उपकार है, जिन्होंने हमें यह जीवन दिया, हमारा पालन-पोषण किया और हमें एक वंश परंपरा से जोड़ा. श्राद्ध कर्म इसी पितृ ऋण को चुकाने का एक माध्यम है.

 

यदि कोई व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है, तो उसे "पितृ दोष" का सामना करना पड़ सकता है. पितृ दोष के कारण जीवन में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे संतान प्राप्ति में कठिनाई, बार-बार गर्भपात होना, परिवार में निरंतर कलह, आर्थिक तंगी और कार्यों में असफलता. पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने से इस दोष का निवारण होता है और पितरों के आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति आती है. यह वार्षिक अनुष्ठान केवल आध्यात्मिक शांति के लिए ही नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में यह एक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आधार भी प्रदान करता है. यह हमें अपनी जड़ों से जुड़ने, अपने पूर्वजों के योगदान को याद करने और पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का एक अवसर देता है.

 

श्राद्ध कर्म की संपूर्ण विधि

घर पर तर्पण करने की सरल विधि

 

तर्पण का अर्थ है पितरों को जल अर्पित करके उन्हें तृप्त करना. यह एक सरल प्रक्रिया है जिसे कोई भी घर पर कर सकता है.

  • तैयारी: सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं. एक तांबे या स्टील के चौड़े बर्तन (परात) में शुद्ध जल, थोड़ा गंगाजल, कच्चा दूध, काले तिल और जौ मिला लें.
  • क्रिया: अपने हाथ में कुश (एक प्रकार की पवित्र घास) या दूर्वा लें. दोनों हाथों को मिलाकर एक अंजलि बनाएं और उसमें तैयार जल भरें. अपने सभी ज्ञात और अज्ञात पितरों का मन में ध्यान करें और श्रद्धापूर्वक उन्हें जल ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करें. इसके बाद, जल को दाहिने हाथ के अंगूठे के माध्यम से उसी बर्तन में धीरे-धीरे गिराएं. यह प्रक्रिया प्रत्येक पितर (जैसे पिता, दादा, परदादा) के लिए कम से कम तीन बार करें.
  • मंत्र: यदि कोई विशेष मंत्र याद न हो, तो आप सरलता से "ॐ पितृभ्यो नमः तर्पयामि" का जाप कर सकते हैं. यदि आप विशिष्ट पितरों को तर्पण दे रहे हैं, तो उनका नाम और गोत्र लेकर यह कह सकते हैं: " [गोत्र का नाम] गोत्रे अस्मत्पिता [पिता का नाम] शर्मा/वर्मा/गुप्त वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम तस्मै स्वधा नमः".

 

पिंडदान कैसे करें?

 

पिंडदान में पिंड को पितरों के शरीर का प्रतीक माना जाता है, जिसे अर्पित करके उनकी आत्मा को शांति प्रदान की जाती है.

  • पिंड बनाना: पके हुए चावल (भात) में गाय का दूध, घी, शहद और काले तिल को अच्छी तरह मिलाकर छोटे-छोटे गोल पिंड बना लें.
  • अर्पण: दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें. यदि आप जनेऊ पहनते हैं, तो उसे दाएं कंधे पर रखें. तैयार किए गए पिंडों को अपने पितरों (पिता, दादा, परदादा) को श्रद्धापूर्वक अर्पित करें. पिंड अर्पित करते समय मंत्र बोलें: "इदं पिण्डं (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा".
  • पिंडदान के बाद, इन पिंडों को श्रद्धापूर्वक उठाकर किसी नदी में प्रवाहित कर दें या किसी गाय को खिला दें.

 

पंचबलि: इन 5 जीवों को भोजन कराए बिना श्राद्ध है अधूरा

 

ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले श्राद्ध के भोजन में से पांच अंश अलग-अलग निकालकर पांच विशेष जीवों को अर्पित करने की परंपरा को 'पंचबलि' कहते हैं. इसके बिना श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है.

 

यह अनुष्ठान केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि प्रकृति के सभी जीवों के प्रति कृतज्ञता और सह-अस्तित्व की भावना का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि मनुष्य का जीवन केवल अपने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह देवताओं, पशु-पक्षियों और सूक्ष्म जीवों के साथ एक पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा है.

  • 1. गौ-बलि (गाय के लिए): गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र और सभी देवताओं का निवास स्थान माना गया है. भोजन का पहला अंश गाय को खिलाया जाता है.
  • 2. श्वान-बलि (कुत्ते के लिए): कुत्ते को यमराज का दूत माना जाता है. दूसरा अंश कुत्ते को दिया जाता है.
  • 3. काक-बलि (कौवे के लिए): कौवे को पितरों का संदेशवाहक माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यदि कौआ भोजन ग्रहण कर ले, तो पितर तृप्त हो गए हैं.
  • 4. देव-बलि (देवताओं के लिए): भोजन का एक छोटा अंश अग्नि में अर्पित किया जाता है या किसी पत्ते पर निकालकर देवताओं के निमित्त अलग रख दिया जाता है.
  • 5. पिपीलिकादि-बलि (चींटी के लिए): अंतिम अंश चींटियों और अन्य छोटे कीट-पतंगों के लिए उनके बिल के पास रख दिया जाता है.

 

श्राद्ध कौन और कब कर सकता है?

 

यह एक आम धारणा है कि श्राद्ध कर्म केवल पुत्र ही कर सकता है, लेकिन शास्त्र इससे कहीं अधिक समावेशी हैं. शास्त्रों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पितरों तक तर्पण पहुंचे, चाहे माध्यम कोई भी हो.

  • मुख्य अधिकारी: पिता का श्राद्ध करने का प्रथम अधिकार ज्येष्ठ पुत्र का होता है. यदि वह उपस्थित न हो तो छोटा पुत्र भी कर सकता है.
  • पुत्र न होने पर: यदि किसी का पुत्र न हो, तो उसका पौत्र, प्रपौत्र या गोद लिया हुआ पुत्र भी श्राद्ध कर सकता है.
  • अन्य संबंधी: इन सभी के अभाव में, मृतक की पत्नी, सगा भाई, भतीजा, पुत्री का पति (दामाद) और पुत्री का पुत्र (नाती) भी श्राद्ध करने के अधिकारी हैं. यह नियम सुनिश्चित करता है कि हर आत्मा को शांति मिल सके.
  • श्राद्ध का समय: श्राद्ध कर्म और ब्राह्मण भोजन के लिए सबसे शुभ समय दोपहर का माना जाता है. ज्योतिष के अनुसार, कुतुप मुहूर्त (लगभग 11:36 AM से 12:24 PM) और रौहिण मुहूर्त इसके लिए सर्वश्रेष्ठ होते हैं.

 

पितृ पक्ष 2025 की महत्वपूर्ण तिथियां और नियम

 

पितृ पक्ष 2025 का संपूर्ण कैलेंडर

 

नीचे दी गई तालिका में 2025 के श्राद्ध पक्ष की सभी तिथियां दी गई हैं, जिससे आप अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि के अनुसार श्राद्ध कर सकते हैं.

 

तिथि (Date) दिन (Day) श्राद्ध तिथि (Shraddha Tithi) विशेष (Notes)
7 सितंबर 2025 रविवार पूर्णिमा श्राद्ध इसी रात पूर्ण चंद्र ग्रहण लगेगा 3
8 सितंबर 2025 सोमवार प्रतिपदा श्राद्ध
9 सितंबर 2025 मंगलवार द्वितीया श्राद्ध
10 सितंबर 2025 बुधवार तृतीया श्राद्ध
11 सितंबर 2025 गुरुवार चतुर्थी और पंचमी श्राद्ध तिथि क्षय के कारण दोनों श्राद्ध एक ही दिन हैं 38
12 सितंबर 2025 शुक्रवार षष्ठी श्राद्ध
13 सितंबर 2025 शनिवार सप्तमी श्राद्ध
14 सितंबर 2025 रविवार अष्टमी श्राद्ध
15 सितंबर 2025 सोमवार नवमी श्राद्ध (अविधवा नवमी)
16 सितंबर 2025 मंगलवार दशमी श्राद्ध
17 सितंबर 2025 बुधवार एकादशी श्राद्ध
18 सितंबर 2025 गुरुवार द्वादशी श्राद्ध
19 सितंबर 2025 शुक्रवार त्रयोदशी श्राद्ध
20 सितंबर 2025 शनिवार चतुर्दशी श्राद्ध (अकाल मृत्यु वालों के लिए)
21 सितंबर 2025 रविवार सर्वपितृ अमावस्या (महालया) इसी दिन सूर्य ग्रहण है (भारत में अदृश्य) 2

 

श्राद्ध के 15 दिन: क्या करें और क्या न करें

 

पितृ पक्ष की अवधि आध्यात्मिक अनुशासन का समय है. इस दौरान कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक माना गया है.

 

क्या करें (Do's)

 

  • प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद पितरों को जल से तर्पण करें.
  • घर में बना सात्विक भोजन (बिना प्याज-लहसुन) ही ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों, जरूरतमंदों और पशु-पक्षियों (गाय, कुत्ता, कौआ) को भोजन कराएं और दान-पुण्य करें.
  • घर में शांति, पवित्रता और सद्भाव का माहौल बनाए रखें तथा बड़ों का सम्मान करें.
  • श्रीमद्भागवत, गरुड़ पुराण या रामचरितमानस जैसे पवित्र ग्रंथों का पाठ करना शुभ माना जाता है.

 

क्या न करें (Don'ts)

 

  • इस अवधि में कोई भी मांगलिक या शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश या नए व्यवसाय की शुरुआत नहीं करनी चाहिए.
  • नए वस्त्र, वाहन, या घर का कोई भी नया सामान खरीदने से बचना चाहिए.
  • तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का सेवन पूरी तरह से वर्जित है.
  • जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म कर रहा हो, उसे इन 15 दिनों में बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए.
  • घर में किसी भी प्रकार का कलह, विवाद या अपशब्दों का प्रयोग न करें, क्योंकि इससे पितर अप्रसन्न होते हैं.
  • पितृ पक्ष शुरू होने से पहले घर से टूटे-फूटे बर्तन, खंडित मूर्तियां और कबाड़ हटा देना चाहिए, क्योंकि ये नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं.

 

भाग 5: पिंडदान और तर्पण के लिए भारत के प्रमुख तीर्थ स्थान

 

जो लोग विशेष तीर्थ स्थलों पर जाकर श्राद्ध कर्म करना चाहते हैं, उनके लिए भारत में कुछ स्थान सिद्ध माने गए हैं.

  • 1. गया (बिहार): पिंडदान के लिए गया को सबसे श्रेष्ठ स्थान माना जाता है. फल्गु नदी के तट पर स्थित इस स्थान को 'मोक्ष की भूमि' भी कहते हैं. मान्यता है कि यहां स्वयं भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं और यहां किया गया पिंडदान सात पीढ़ियों और 108 कुलों का उद्धार करता है.
  • 2. हरिद्वार (उत्तराखंड): गंगा नदी के किनारे बसी यह मोक्षदायिनी नगरी श्राद्ध के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यहां के कुशावर्त घाट और नारायण शिला मंदिर में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि यहां श्राद्ध करने से प्रेत योनि में भटक रही आत्माओं को भी मुक्ति मिल जाती है.
  • 3. वाराणसी/काशी (उत्तर प्रदेश): भगवान शिव की नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट और पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध करने की परंपरा है. कहते हैं कि यहां किया गया श्राद्ध आत्मा को सीधे शिवलोक तक पहुंचाता है.
  • 4. प्रयागराज (उत्तर प्रदेश): गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम तट पर किया गया तर्पण और पिंडदान अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है. यहां लोग विशेष तिथियों पर स्नान और श्राद्ध के लिए आते हैं.
  • 5. कुरुक्षेत्र (हरियाणा): यहां स्थित पिहोवा तीर्थ उन लोगों के श्राद्ध के लिए उत्तम माना गया है जिनकी अकाल मृत्यु (जैसे दुर्घटना या शस्त्र से) हुई हो. महाभारत काल में युधिष्ठिर ने भी अपने परिजनों का श्राद्ध यहीं किया था.

श्रद्धा और कृतज्ञता का पर्व

 

पितृ पक्ष भय या शोक का समय नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति अपनी जड़ों से जुड़ने, उनके प्रति श्रद्धा, प्रेम और कृतज्ञता प्रकट करने का एक पवित्र अवसर है. यह हमें याद दिलाता है कि हमारा अस्तित्व हमारे पूर्वजों के त्याग और आशीर्वाद का परिणाम है.

वर्ष 2025 में ग्रहणों का दुर्लभ संयोग इस अवधि को और भी विशेष बना रहा है. यह न केवल पितरों की शांति के लिए, बल्कि स्वयं के आध्यात्मिक विकास और आत्म-चिंतन के लिए भी एक अनमोल अवसर है. सच्ची श्रद्धा और साफ मन से किया गया एक सरल तर्पण भी पितरों को परम शांति प्रदान कर सकता है और उनके आशीर्वाद से आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.