Paush Putrada Ekadashi 2020: जब होती है विष्णु के बाल रूप की पूजा! जानें व्रत के नियम, पूजा मुहूर्त एवं पौराणिक कथा

पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी इस बार 6 जनवरी 2020 को पड़ रही है. इस एकादशी की खासियत यह है कि इस दिन भगवान विष्णु के बाल स्वरूप की पूजा होती है. पुरोहितों के अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी की विधि-विधान से पूजा करने से संतान-सुख की प्राप्ति होती है, साथ ही, संतान के भाग्य एवं कर्म को श्रेष्ठ बनाता है.

भगवान विष्णु (Photo Credits: Facebook)

Paush Putrada Ekadashi 2020: हिंदू पंचांग के अनुसार साल में दो बार पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) पड़ती है, प्रथम श्रावण मास में और दूसरी पौष मास में. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी (Paush Putrada Ekadashi) इस बार 6 जनवरी 2020 को पड़ रही है. इस एकादशी की खासियत यह है कि इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के बाल स्वरूप की पूजा होती है. पुरोहितों के अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी की विधि-विधान से पूजा (Paush Putrada Ekadashi Puja Vidhi) करने से संतान-सुख की प्राप्ति होती है, साथ ही संतान का भाग्य एवं कर्म भी श्रेष्ठ होता है. निसंतान दंपत्तियों को इस दिन व्रत एवं पूजा अवश्य करनी चाहिए. आइये जानें क्या है पुत्रदा एकादशी...

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के नियम

व्रती को पौष मास की दशमी से ही लहसुन और प्याज रहित शुद्ध भोजन के साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. अगले दिन प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लेते हैं. इसके पश्चात भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी जी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री के साथ श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद दीपदान का भी विधान है. व्रती को पूरे दिन व्रत रखने के बाद वह चाहे तो फलाहार कर सकता है और चाहें तो अगले दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत तोड़ सकता है. इसके बाद पंडितों अथवा गरीबों को दान करना श्रेयस्कर होता है. पूजा के पश्चात भगवान विष्णु से अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगनी चाहिए. इस प्रकार नियमपूर्वक जो लोग पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं उनका व्रत ही सफल होता है.

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त

7 जनवरी 2020 को पारणा मुहूर्त- 13:29:53 से 15:34:49 तक

7 जनवरी 2020 को हरि वासर समाप्त होने का समय:10:07:19 पर

पौराणिक कथा

भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा था. उसकी पत्नी का नाम शैव्या था. शादी के लंबे समय बाद भी संतान न होने से दोनों चिंतित रहते थे. राजा के निसंतान होने से उनके पितर भी चिंतित थे कि इसके बाद हमें पिंडदान कौन करेगा. राजा भी चिंतित था कि उसके मरने के बाद उसे कौन पिंडदान करेगा. बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण कैसे चुका सकूंगा. जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, उसे इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है. एक बार राजा ने अपना देह त्यागने का निश्चय कर वन की ओर प्रस्थान किया. रास्ते भर राजा सोचता रहा, मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को भोजन खिलाया, फिर भी मुझे दुःख क्यों प्राप्त हुआ? यह भी पढ़ें: Ekadashi Vrat In Year 2020: भगवान विष्णु को समर्पित है एकादशी तिथि, जानिए साल 2020 में पड़ने वाली एकादशी तिथियों की पूरी लिस्ट

भ्रमण करते हुए राजा को एक आश्रम दिखा. वहां मुनियों को देख उन्हें दंडवत प्रणाम किया. मुनियों ने कहा- राजन्! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं. क्या वरदान चाहते हो. राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं, और यहां किसलिए आए हैं? मुनि कहने लगे, हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने आए हैं. राजा ने कहा, महाराज, मेरी कोई संतान नहीं है. आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो पुत्र-लाभ का वरदान दीजिए. मुनि बोले- आज पुत्रदा एकादशी है. आप यह व्रत करें. आपको पुत्र प्राप्त होगा. राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी का पारण कर महल में वापस आ गया. 9 महीने के पश्चात उन्हें पुत्र लाभ हुआ.

 

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