Papmochani Ekadashi 2020: यह व्रत करने से पापों से मुक्ति के साथ ही मिलता है मोक्ष! जानें कब है पाप मोचनी एकादशी, पूजा विधि एवं व्रत कथा
धर्म शास्त्रों के अनुसार पाप-मोचनी एकादशी के व्रत में श्रीहरि के चतुर्भुज स्वरूप की पूजा की जाती है. इस एकादशी पर व्रत रखने वाले जातक को एक दिन पूर्व यानी दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए. एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए
Papmochani Ekadashi 2020: अपने नाम के अनुरूप चैत्र मास के शुक्लपक्ष के दिन पड़नेवाली पाप मोचनी एकादशी का व्रत एवं श्रीहरि की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य के जाने-अनजाने किये सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. इस पाप मोचनी एकादशी के नियमों का विधि-विधान से पालन करने से सहस्त्र गऊ-दान करने जितना फल प्राप्त होता है. मान्यता है कि इस महान एकादशी का व्रत करने से ब्रह्म-हत्या, स्वर्ण चोरी, मद्य-पान एवं गुरु-पत्नी गमन जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं. पौराणिक शास्त्रों में इस एकादशी का विशेष महत्व उल्लेखित है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष पाप-मोचनी एकादशी 19 मार्च को मनायी जायेगी. आइये जानते हैं पाप-मोचनी एकादशी का महात्म्य, पूजा विधि एवं पारंपरिक कथा.
व्रत एवं पूजा-विधि
धर्म शास्त्रों के अनुसार पाप-मोचनी एकादशी के व्रत में श्रीहरि के चतुर्भुज स्वरूप की पूजा की जाती है. इस एकादशी पर व्रत रखने वाले जातक को एक दिन पूर्व यानी दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए. एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके पश्चात विष्णुजी की प्रतिमा की षोडषोपचार विधि से पूजा करते हुए ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप निरंतर करें. इसके पश्चात भगवद् कथा का पाठ करना चाहिए. श्रीहरि की पूजा करते हुए यह भी संकल्प लेना चाहिए कि झूठ अथवा किसी के प्रति अप्रिय भाषा का प्रयोग हम नहीं करेंगे. अन्य एकादशियों की तरह पाप मोचिनी एकादशी की रात में भी जागरण कर भगवान विष्णु का ध्यान एवं कीर्तन-भजन करना चाहिए.
एकादशी का महत्व
पद्मपुराण के अनुसार, पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और जाने-अनजाने किये गये पापों से मुक्ति मिलती है. ईश्वर की कठोर तपस्या से आप जितना पुण्य और फल प्राप्त होता है, उतना ही आप पापमोचनी एकादशी का व्रत करके प्राप्त सकते हैं. मान्यता है कि भगवान विष्णु का यह व्रत जो भी व्यक्ति सच्चे मन से करता है, उसे मृत्योपरांत बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.
व्रती इस बात का भी रखें ध्यान
एकादशी व्रत दो दिनों तक होता है. लेकिन दूसरे दिन की एकादशी व्रत केवल सन्यांसियों, विधवाओं अथवा मोक्ष की कामना करने वाले श्रद्धालु ही रखते हैं. व्रत द्वाद्शी तिथि को समाप्त होने से पहले पारण कर लेना चाहिए, लेकिन हरि वासर में पारण नहीं करना चाहिए और मध्याह्न में भी पारण करने सेबचना चाहिए. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करना चाहिए.
पारंपरिक कथा
प्राचीनकाल में मान्धाता नामक न्यायप्रिय राजा ने लोमश ऋषि से पूछा, -प्रभु आप बताएं कि अगर किसी मनुष्य से अन्जाने में कोई पाप हो जाये तो उससे कैसे मुक्ति पा सकता है. इस पर लोमश ऋषि उऩ्हें ने एक कथा सुनाई. एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र ऋषि मेधावी चैत्ररथ नामक सुन्दरवन में कठोर तपस्या में लीन थे. ऋषि मेधावी को देख जुघोषा नामक अप्सरा उन पर मोहित हो गयी. कामदेव की मदद से अप्सरा ऋषि पर अपने रूप का जादू चलाने में सफल हो गयी. ऋषि-अप्सरा कामाग्निवश होकर दिन गुजारने लगे.
कई वर्षों बाद जब ऋषि की चेतना जगी तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्होंने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया. श्राप से दुःखी अप्सरा ने ऋषि के पैरों पर गिरकर श्राप मुक्ति की प्रार्थना करने लगी. इस पर ऋषि ने अप्सरा से चैत्र कृष्णपक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिये कहा. चूंकि शिव-तपस्या भंग होने से ऋषि के मन में भी ग्लानि हुई. उन्होंने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से ऋषि के साथ अप्सरा के भी सारे पाप नष्ट हो गये और दोनों मोक्ष प्राप्त कर वैकुण्ठधाम पहुंच गये.