मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान उनके अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है. शास्त्रों में उनके हर स्वरूप का अपना एक अलग महत्व बताया गया है. आज नवरात्रि का सातवां दिन है जो देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि को समर्पित है. हालांकि नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि की पूजा सुबह में अन्य दिनों की तरह ही होती है, लेकिन रात में विशेष विधान के साथ इनकी आराधना की जाती है. मान्यता है कि रात्रि में विधि-विधान के साथ मां कालरात्रि की उपासना करने से भक्तों को कई लाभ मिलते हैं.
देवी कालरात्रि का स्वरूप दिखने में भले ही भयानक प्रतीत होता है, लेकिन इनकी उपासना करने वाले भक्तों को मां शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद देती हैं और स्वयं काल से उनकी रक्षा करती हैं.
ऐसा है कालरात्रि का स्वरूप
देवी कालरात्रि का वर्ण काजल के समान काले रंग का है, जो अमावस्या की रात्रि से भी अधिक काला है. उनके तीन बड़े-बड़े उभरे हुए नेत्र हैं, जिनसे मां अपने भक्तों पर कृपा की दृष्टि से रखती हैं. देवी की चार भुजाएं हैं. दायीं की ओर ऊपरी भुजा से वो भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से वो अभय का वरदान देती हैं. बायीं भुजा में तलवार और खड्ग है. उनके बाल बिखरे और हवा में लहराते हुए नजर आते हैं. वो गदर्भ की सवारी करती हैं. देवी का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए बेहद शुभ होता है, इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है.यह भी पढ़ें: Navratri 2018: मां दुर्गा के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी की आराधना से दूर होती है विवाह में आने वाली बाधा
कैसे करे मां कालरात्रि का पूजन ?
शास्त्रों में वर्णित पूजा के विधान के अनुसार, पहले कलश की पूजा की जानी चाहिए, फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी-देवती की पूजा करने के बाद मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. मां कालरात्रि की पूजा के लिए सबसे पहले दीपक और धूप जलाएं, फिर मां को लाल फूल, लाल चुनरी चढ़ाएं और उनका ध्यान करें. हालांकि रात्रि के समय इनकी पूजा विशेष विधान के साथ की जाती है.
इस दिन अनेक प्रकार के मिष्ठान्न और कहीं-कहीं तात्रिक विधि से पूजा होने पर देवी को मदिरा भी अर्पित की जाती है. सप्तमी की रात्रि को सिद्धियों की रात्रि भी कही जाती है. दूर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण माना जाता है. सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं.
मंत्र- मां कालरात्रि का पूजन लाल या श्वेत रंग के वस्त्र धारण करके करना चाहिए. काले रंग के कपड़े पहनने से बचें. इसके बाद 108 बार नर्वाण मंत्र पढ़ते जाएं और एक-एक लौंग चढ़ाते जाएं. मंत्र जप के बाद 108 लौंग को इकट्ठा करके अग्नि में डाल दें. इससे आपके विरोधी शांत होंगे.
- नवार्ण मंत्र है- "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे "
गुड़ का भोग लगाएं
मां कालरात्रि को गुड़ बेहद प्रिय है इसलिए विभिन्न मिष्ठान को अर्पित करने के अलावा उन्हें गुड़ का भोग जरूर लगाएं. भोग लगाने के बाद गुड़ का आधा भाग परिवार में बाटें और बाकी आधा गुड़ किसी ब्राह्मण को दान कर दें. यह भी पढ़ें: Navratri 2018: भारत के इस मंदिर में होती है बिना सिर वाली देवी की पूजा, हर रोज चढ़ाई जाती है सैकड़ों बकरों की बलि
भक्तों को होते हैं ये लाभ
शत्रुओं और विरोधियों को नियंत्रित करने के लिए मां कालरात्रि की उपासना अत्यंत शुभ होती है. इनके पूजन से भय, दुर्घटना और रोगों का नाश होता है. इसके अलावा भक्तों पर नकारात्मक ऊर्जा या किसी प्रकार के तंत्र-मंत्र का असर नहीं होता है. अगर किसी जातक की कुंडली में शनि ग्रह की पीड़ा है तो इनकी उपासना से कुंडली से शनि पीड़ा का दोष भी दूर होता है.