यह संस्कृति और परंपरा हमारे देश में ही देखी, सुनी और पढ़ी जा सकती है, जहां प्रकृति प्रदत्त हर जीव निर्जीव वस्तुओं में देवी देवताओं के रूप की कल्पना की गयी, उसे मान्यता दी गयी। फिर बात पशु-पक्षियों से लेकर नदी पहाड़, वृक्ष किसी की भी क्यों न हो. हम यहां बात करेंगे भारत में प्रवाहित होनेवाली पवित्र नदियों की। गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी जैसी सभी पाव नदियों में देवी का स्वरूप व्याप्त है. नर्मदा नदी (Narmada river) की पवित्रता के बारे में तो यहां तक कहा जाता है मां गंगा तक ने पवित्र नर्मदा में स्नान कर स्वयं को कृतार्थ किया. यह महिमा नर्मदा को ही प्राप्त है जिसकी तटों पर पाये जाने वाले हर कंकड़-पत्थरों में शिवलिंग की महिमा व्याप्त है. नर्मदा को सर्वश्रेष्ठ नदीं मानने के लिए इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है. भगवान शिव ने नर्मदा को यह भी वरदान दिया था कि नर्मदा के दर्शन मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं. लेकिन नर्मदा की इस पावकता के पीछे विरह की एक तीखी वेदना भी छिपी है, जो उसके जल के कल कल से स्पष्ट होती है. इस संदर्भ में एक कथा प्रचलित है.
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नर्मता राजा मैखल की पुत्री थीं. मैखल ने नर्मदा का विवाह एक स्वयंवर के जरिये एक राजकुमार सोनभद्र से करना तया किया था. कहा जाता है कि नर्मदा तब तक सोनभद्र के दर्शन नहीं कर सकी थी. लेकिन सोनभद्र के रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं उसने खूब सुन रखी थी. वह मन ही मन सोनभद्र से प्यार करने लगी थी. एक दिन नर्मदा ने अपनी दासी जुहिला के हाथों से हाथों वस्त्र एवं आभूषण के साथ प्रेम संदेश भिजवाया. उस समय तक राजकुमार सोनभद्र ने नर्मदा को नहीं देखा था. उसने जुहिला को ही नर्मदा समझ लिया. जुहिला के मन में भी लोभ जागृत हुआ. सोनभद्र उसे ही नर्मदा समझ कर उसके साथ विवाह के मंडप में बैठकर विवाह रचा लिया.
इधर काफी समय तक नर्मदा को जुहिला की कोई खबर नहीं मिली, तो वह स्वयं सोनभद्र से मिलने चल पड़ी. किंतु मंडप में जुहिला के साथ सोनभद्र को विवाह रचाते देख वह बहुत क्रोधित हुई. लेकिन उसने किसी से कुछ नहीं कहा. क्रोध और घृणा से भरी नर्मदा तुरंत वापस लौटी। मगर वह पिता के घर न जाकर विपरीत दिशा की ओर चल पड़ी। नर्मदा ने कसम खाई कि वह आजन्म विवाह नहीं करेंगी. कहा जाता है कि सोणभद्र ने नर्मदा को जाते देख उसके पीछे दौड़ा, -नर्मदा वापस लौट आ जाओ, लेकिन नर्मदा वापस नहीं आयी। उन्होंने शपथ ली कि अब वह चिरकुंवारी रहेंगी.
इस प्रेमकथा की यह भौगोलिक सच्चाई ही है कि नर्मदा नदी देश की दो प्रमुख नदियों गंगा और गोदावरी से विपरीत दिशा में बहती हैं यानी पूर्व से पश्चिम की ओर. इसीलिए नर्मदा को चिरकुंवारी नदी कहा जाता है.