Narasimha Jayanti 2019: भक्त प्रह्लाद ने यहां बनवाया था भगवान नृसिंह का मंदिर, जहां साल में एक बार ही होते हैं दिव्य दर्शन, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम से महज 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिंहाचल पर्वत पर भगवान नृसिंह का भव्य मंदिर स्थित है. इस मंदिर में भगवान नृसिंह माता लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं. कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप की मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के परमभक्त प्रह्लाद ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था,

नृसिंह जयंती 2019 (photo Credits: Facebook)

Happy Narasimha Jayanti 2019: आज देशभर में भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के अवतार कहे जाने वाले भगवान नृसिंह की जयंती (Narasimha Jayanti 2019) मनाई जा रही है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap) का वध किया था. उन्होंने हिरण्यकश्यप से अपने परमभक्त प्रह्लाद (Bhakt Prahlad) की रक्षा करने के लिए मानव शरीर और सिंह के मुख वाला अवतार लिया था. इस अवतार में उन्होंने न सिर्फ अपने भक्त की रक्षा की थी, बल्कि हिरण्यकश्यप का वध करके इस संसार को पाप मुक्त भी दिलाई थी.

नृसिंह जयंती के इस खास मौके पर जानते हैं नृसिंह भगवान के उस दिव्य मंदिर (Lord Narasimha Temple) के बारे में, जिसे स्वयं भक्त प्रह्लाद ने बनवाया था. दरअसल यह मंदिर आंध्रप्रदेश (Andhra Pradesh) के विशाखापट्टनम (VishakhaPatnam) से सिर्फ 16 किमी दूरी पर स्थित है. कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद भगवान नृसिंह की प्रतिमा हजारों वर्ष पुरानी है.

सिंहाचल पर्वत पर स्थित है नृसिंह देव का मंदिर

आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम से महज 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिंहाचल पर्वत पर भगवान नृसिंह का भव्य मंदिर स्थित है. इस मंदिर में भगवान नृसिंह माता लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं. कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप की मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के परमभक्त प्रह्लाद ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था, लेकिन यह मंदिर सदियों बाद धरती में समा गया था. यह भी पढ़ें: Narasimha Jayanti 2019: इसलिए भगवान विष्णु ने धारण किया आधे मनुष्य व आधे शेर का शरीर, जानें नृसिंह अवतार से जुड़ी यह दिलचस्प पौराणिक कथा

सिंहालचलम देवस्थान की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, इस मंदिर को भक्त प्रह्लाद के बाद पुरुरवा नाम के राजा ने फिर से स्थापित किया था और धरती में समाए मंदिर से भगवान नृसिंह की प्रतिमा को बाहर निकालकर उसे फिर से मंदिर में स्थापित किया था और उसे चंदन के लेप से ढंक दिया था.

चंदन के लेप से ढंकी रहती है नृसिंह देव की प्रतिमा

इस मंदिर में विराजमान भगवान नृसिंह की प्रतिमा साल भर चंदन के लेप से ढंकी रहती है. कहा जाता है कि सिर्फ वैशाख मास के तीसरे दिन यानी अक्षय तृतीया के दिन ही इस प्रतिमा से चंदन के लेप को हटाया जाता है और भक्त उनके भव्य दर्शन कर पाते हैं. इस दिन यहां भव्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है.

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप के वध के बाद भी भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हो रहा था. उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने काफी प्रयत्न भी किया, लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं हुआ. अत्यधिक क्रोध के चलते उनका पूरा शरीर जलने लगा था, तब उनके शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए उनके पूरे शरीर पर चंदन का लेप किया गया, तब जाकर उनका क्रोध शांत हुआ. कहा जाता है इसी मान्यता के चलते उनकी प्रतिमा को चंदन के लेप में ही रखा जाता है और अक्षय तृतीया के दिन सिर्फ एक दिन के लिए इस लेप को हटाया जाता है.

शुभ मुहूर्त-

कई जगहों पर नृसिंह जयंती के मौके पर व्रत भी रखा जाता है. ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार आज स्वाति नक्षत्र और वणिज करण है. स्वाति नक्षत्र आज देर रात 3 बजकर 7 मिनट तक रहेगा. वहीं वणिज करण आज शाम 5 बजकर 8 मिनट से अगली सुबह 4 बजकर 11 मिनट तक रहेगा. यह भी पढ़ें: Narsimha Jayanti 2019: इसलिए भगवान नृसिंह और शिव जी के इस अवतार के बीच हुआ था घमासान युद्ध, जानें कैसे मृत्यु के बाद उनका चर्म बना महादेव का आसन

पूजा विधि-

नृसिंह जयंती के खास मौके पर भगवान नृसिंह के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है. शाम के समय एक चौकी पर भगवान नृसिंह के साथ माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करें. पूजा के लिए फूल, चंदन, कपूर, रोली, मौसमी फल, कुमकुम, धूप, केसर, पंचमेवा, नारियल, अक्षत, गंगाजल, काले तिल और पीतांबर जैसी पूजन सामग्रियां इकट्ठा कर लें. इसके बाद भगवान नृसिंह और माता लक्ष्मी की पीले वस्त्र पहनाएं. फिर इन सामग्रियों से उनका पूजन करें. इसके बाद भगवान नृसिंह की कथा सुनें और मंत्रों का जप करें. पूजा संपन्न होने के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को तिल, कपड़ा इत्यादि दान करें.

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