Narasimha Jayanti 2019: हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap) जैसे दैत्य का विनाश करने और सृष्टि को पाप से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह अवतार लिया था. आधा शरीर मनुष्य का और मुख सिंह का होने के कारण वे नृसिंह कहलाए. नृसिंह जयंती (Narsimha Jayanti) का यह पावन पर्व 17 मई 2019 को मनाया जा रहा है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अपने भक्त प्रह्लाद (Prahlad) के प्राणों की रक्षा करने और हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान नृसिंह उसी के महल के एक स्तंभ से प्रकट हुए थे. उसके बाद उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया और भक्त प्रह्लाद की रक्षा की.
हालांकि भक्त और आराध्य की इस कथा से तो अधिकांश लोग वाकिफ है, लेकिन नृसिंह जयंती के इस पावन अवसर पर हम आपको एक ऐसी गाथा से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो भगवान विष्णु के अवतार नृसिंह और भगवान शिव के अवतार सरबेश्वर के बीच घमासान युद्ध का दास्तां बयां करती है. आखिर ऐसा क्यों हुआ? चलिए जानते हैं इससे जुड़ी बेहद दिलचस्प पौराणिक कथा.
जब नृसिंह के क्रोध से हर कोई हो गया भयभीत
अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी नृसिंह का क्रोध शांत होने का नाम नहीं ले रहा था. उन्हें क्रोध में इधर-उधर घूमते देख हर कोई भयभीत हो गया. आलम तो यह था कि उनके क्रोध से तीनों लोक और समस्त देवी-देवता कांपने लगे. इस समस्या के समाधान के लिए ब्रह्मा जी सहित समस्त देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और शिव जी से प्रार्थना की कि वे नृसिंह के क्रोध से सबकी रक्षा करें.
भगवान शिव को लेना पर सरबेश्वर अवतार
कहा जाता है कि देवताओं के आग्रह करने के बाद भगवान शिव ने सबसे पहले वीरभद्र को नृसिंह देव के पास भेजा, लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके बाद नृसिंह को शांत करने के लिए भगवान शिव ने मानव, चील और सिंह के शरीर वाले भगवान सरबेश्वर का अवतार लिया. भगवान शिव के इस अवतार के 8 पैर, 2 पंख, चील की नाक, अग्नि, सांप, हिरण और अंकुश थामे चार भुजाएं थीं. शरभ उपनिषद के अनुसार, भगवान शिव ने 64 बार अवतार लिया था, जिनमें से सरबेश्वर को उनका 16वां अवतार माना जाता है.
नृसिंह और सरबेश्वर के बीच हुआ घमासान युद्ध
ब्रह्मांड में उड़ते हुए भगवान सरबेश्वर, नृसिंह के पास पहुंचे. उन्होंने सबसे पहले अपने पंखों की मदद से नृसिंह जी के क्रोध को शांत करने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे. इसके बाद दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया. नृसिंह और सरबेश्वर के बीच करीब 18 दिनों तक घमासान युद्ध चला. यह भी पढ़ें: Narasimha Jayanti 2019: इसलिए भगवान विष्णु ने धारण किया आधे मनुष्य व आधे शेर का शरीर, जानें नृसिंह अवतार से जुड़ी यह दिलचस्प पौराणिक कथा
नृसिंह ने प्राण त्यागने का किया निर्णय
युद्ध के दौरान सरबेश्वर के वार से आहत होकर नृसिंह ने हार मान ली और अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया. इसके बाद उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे उनके चर्म को अपने आसन के रूप में स्वीकार करें. इस प्रकार भगवान शिव के सरबेश्वर अवतार ने नृसिंह के क्रोध को शांत कर उनके कोप से संसार को मुक्ति दिलाई.
मान्यताओं के अनुसार, प्राण त्यागने के बाद नृसिंह भगवान विष्णु के तेज में समाहित हो गए और भगवान शिव ने उनके चर्म को अपना आसन बना लिया.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.