Mahavir Jayanti 2021: कब है महावीर जयंती और कैसे मनाते हैं? जानें महावीर जी के 5 अनमोल सिद्धांत
महावीर जयंती 2021 (Photo Credits: File Image)

Mahavir Jayanti 2021: जैन धर्म (Jain Religion) के 24वें तीर्थंकर कहे जानेवाले भगवान महावीर (Lord Mahavir) का जन्म 599 ईसा पूर्व, चैत्र मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी के दिन लिच्छिवी वंश (बिहार) में हुआ था. इनके पिता महाराज सिद्धार्थ और मां महारानी त्रिशला थीं. बचपन में महावीर जी को वर्धमान के नाम से पुकारा जाता था. जैन समाज द्वारा महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) का पर्व दुनिया भर में मनाया जाता है. जैन ग्रंथों के अनुसार, 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण के 188 वर्ष पश्चात महावीर जी का जन्म हुआ था. तीर्थंकरों के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपने जप-तप से समस्त इंद्रियों और भावनाओं पर विजय प्राप्त कर लिया था. जैन समाज के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 25 अप्रैल रविवार के दिन महावीर जयंती पूरी श्रद्धा, आस्था एवं धूमधाम से मनायी जायेगी.

क्यों कहते हैं उन्हें महावीर?

जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वर्धमान ने 12 वर्षों की कठोर तप कर अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त किया था, इसीलिए उन्हें महावीर कहा जाता है. दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर ने कठिन दिगम्बर चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे, हालांकि श्वेतांबर संप्रदाय का कहना है कि महावीर जी दीक्षा के पश्चात कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे. ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान महावीर अपने पूरे साधना काल में मौन रहे.

महावीर जी के 5 सिद्धांत

भगवान महावीर जी द्वारा संसार का मार्ग दर्शन करने वाले दो उपदेशों 'अहिंसा परमो धर्म:' (अहिंसा सभी धर्मों से सर्वोपरि है) तथा 'जियो और जीने दो' ने दुनिया भर को प्रेरित किया था. जैन धर्म की मान्यतानुसार मोक्ष प्राप्ति के पश्चात भगवान महावीर जी ने अपने अनुयायियों के समक्ष 5 सिद्धांत प्रस्तुत किये थे, जो आंतरिक शांति का मार्ग प्रशस्त करने वाले बताये जाते हैं. ये सिद्धांत हैं अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह. आइये जानें इन पांच सिद्धांतों के पीछे भगवान महावीर का उद्देश्य क्या था.

1- पहला सिद्धांत है 'अहिंसा', महावीर जी ने इस सिद्धांत के जरिये जैन अनुयायियों को विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी हिंसा से विलग रहना चाहिए. जैन धर्म को मानने वाले को गलती से भी किसी पर हिंसक या आक्रामक रूख नहीं अपनाना है.

2- यह सिद्धांत 'सत्य' का प्रतिपादित करता है. भगवान महावीर ने अपने इस सिद्धांत में बताया है कि, -हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ. जो बुद्धिमान सत्य के सानिध्य में रहता है, वह मृत्यु के भवसागर को आसानी से पार कर जाता है. सभी को सत्य ही बोलना चाहिए.

3- 'अस्तेय' सिद्धांत का पालन करने वाले किसी भी रूप में अपनी पसंद के अनुरूप वस्तु ग्रहण नहीं करते हैं. यह सिद्धांत लोगों को संयम का पाठ पढ़ाता है. इसे मानने वालों को जो दिया जाता है, वे उसे ही प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार लेते हैं.

4- चौथे सिद्धांत में 'ब्रह्मचर्य' की महत्ता का जिक्र आता है. इसके लिए जैनों मतावलंबियों को पवित्रता के गुणों का प्रदर्शन करने की जरूरत होती है. इस वजह से वे किसी भी कामुक गतिविधियों से दूर रहते हैं.

5- पांचवा यानी अंतिम सिद्धांत 'अपरिग्रह' का दर्शन बताता है. यह सिद्धांत पिछले सभी सिद्धांतों का गठबंधन होता है. कहते हैं कि अपरिग्रह का पालन करके, जैनों की चेतना जागती है और वे सांसारिक एवं भोग की वस्तुओं का त्याग कर देते हैं.

कैसे मनाते हैं ये पर्व?

इस पर्व विशेष पर जैन धर्म के लोग महावीर जी की प्रतिमा को जल और सुगंधित तेलों से धोते हैं. इसके पश्चात जैनी संत एवं समाज के लोग एक सुसज्ज रथ पर भगवान महावीर की प्रतिमा की शोभा यात्रा निकालते हैं. इस दौरान महावीर जी द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का लोगों से परिचय कराया जाता है. इस पर्व को सेलीब्रेट करने के लिए दुनिया भर के श्रद्धालु भारत के जैन मंदिरों में दर्शन करने आते हैं, तथा महावीर और जैन धर्म से संबंधित पुरातन स्थानों को भी देखने जाते हैं. भारत में जैन समाज से जुड़े दर्शनीय स्थलों में गोमतेश्वर, दिलवाड़ा, रणकपुर, सोनागिरि और शिखरजी मुख्य हैं.