श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पूरे भारत में बड़ा महत्व है, देश के हर राज्य में कृष्ण जन्म का उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयन्ती और श्री जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है. कृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियां पूरे देश में अपने चरम पर हैं. नटखट कान्हा के जन्म के आनंद की खुशियां सभी में कई दिनों पहले से ही दिखने लगी है. मंदिर, गुरुकुल और धार्मिक स्थानों पर साज-सजावट के कार्य भी शुरू हो चुके हैं. भगवान श्री कृष्ण की यह 5245 वीं जयंती है. भाद्रपद महीने की अष्टमी को कृष्ण जन्म का पर्व मनाया जाता है.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर अष्टमी की तिथि को लेकर अक्सर ही लोगों में असमंजस रहता है. अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है. जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त (गृहस्थ) लोगों के लिए और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए होती है. इस वर्ष भी जन्माष्टमी 2 दिन, 2 सितंबर और 3 सितंबर को पड़ रही है. जिसमें पहले दिन 2 सितंबर को स्मार्त (गृहस्थ) की होगी और 3 सितंबर को वैष्णव संप्रदाय की मनाई जाएगी. लोगों में उठने वाला सवाल है कि व्रत किस दिन रखा जाए तो इसका जवाब है पहले दिन 2 सितंबर के दिन.
जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी हिन्दुओं के आराध्य जगतपालनकर्ता भगवान विष्णु के आठवें अवतार (श्री कृष्ण) का जन्मदिन है. इस दिन भगवान कृष्ण धरती पर वासुदेव और देवकी की आठंवी संतान के रूप में अवतरित हुए थे. इसी जन्म की ख़ुशी में भक्त अपने प्रिय कान्हा के लिए व्रत रखते हैं और उनकी महिमा का गुणगान करते हैं. दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं. वहीं, धार्मिक स्थानों में झांकियां निकाली जाती हैं और श्रीकृष्ण लीला का मंचन होता है. श्री कृष्ण के बाल स्वरुप की झांकियां इस दौरान अति मन मोहक और आकर्षण का केंद्र होती है.
जन्माष्टमी के दिन, श्री कृष्ण पूजा निशित काल में होती है, वैदिक समय गणना के अनुसार यह समय मध्यरात्रि का होता है. इसी समय भक्त बालकृष्ण की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं.
व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के पश्चात, भक्त लोग पूरे दिन उपवास रखकर, अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के समाप्त होने के बाद ही व्रत का पारण करते हैं. कुछ कृष्ण-भक्त मात्र रोहिणी नक्षत्र अथवा मात्र अष्टमी तिथि के पश्चात व्रत का पारण करते हैं.
जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस बार अष्टमी 2 सितंबर की रात 08:47 पर लगेगी और 3 तारीख की शाम 07:20 पर खत्म हो जाएगी.
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 2 सितंबर 2018 को रात 08 बजकर 47 मिनट.
अष्टमी तिथि समाप्त: 3 सितंबर 2018 को शाम 07 बजकर 20 मिनट.
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 2 सितंबर की रात 8 बजकर 48 मिनट.
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 3 सितंबर की रात 8 बजकर 5 मिनट.
निशीथ (मध्यरात्री) काल पूजन का समय: 2 सितंबर 2018 को रात 11 बजकर 57 मिनट से रात 12 बजकर 48 मिनट तक.
व्रत और पूजन विधि
जन्माष्टमी पर व्रत रखने वाले भक्त सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण कर सकते हैं. अपने स्नान के बाद भक्त भगवान कृष्ण कि मूर्ती को दूध, जल इत्यादि से नहलाते है. इसके बाद भगवान की प्रतिमा को स्वच्छ वस्त्र धारण करवाएं. पीला रंग श्री कृष्ण को अधिक प्रिय था, इसी कारण जन्माष्टमी के दिन पीले रंग को प्राथमिकता दें. इसके बाद शुद्ध आसन में बैठकर मंत्रोचारण के साथ भगवान का ध्यान करें. व्रत रखने वाले भक्त सुबह एक समय फलाहार कर सकते हैं.