Kisan Diwas 2023: जब नकली किसान बन पूरे थाने को सस्पेंड किया चरण सिंह ने! जानें उनके जीवन के रोचक प्रसंग!
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Kisan Diwas 2023: किसानों के नेता चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्रित्व काल बहुत ज्यादा नहीं था, लेकिन अपने साढ़े पांच माह (28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980) के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में उन्होंने किसानों के कल्याणार्थ इतने कार्य किये कि आज उनके जन्मदिन पर उन्हें किसानों का नेता के रूप में याद किया जाता है, और उनकी जयंती (23 दिसंबर) को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है. आइये उनकी जयंती पर उनके जीवन के कुछ रोचक और प्रेरक पहलुओं पर बात करें...

जब चरण सिंह के परदादा को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ाया

 चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर1902 को मेरठ (उप्र) स्थित नूरपुर ग्राम में एक मध्यम वर्गीय जाट किसान परिवार में हुआ था. इनके परदादा वल्लभगढ़ (हरियाणा) के महाराजा नाहर सिंह ने 1887 की प्रथम क्रांति में सक्रिय रूप से भाग लिया था. परिणामस्वरूप ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक में फांसी पर लटका दिया था. इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति की ज्वाला को अक्षुण्ण बनाए रखने हेतु चौधरी चरण सिंह के दादाजी बुलंदशहर (उप्र) आ गए.  

मुन्नालाल का पेड़ा और चरण सिंह

  चौधरी चरण सिंह को बचपन से मिठाई का बहुत शौक था. वह जब भूपगढ़ी में रहते थे, वहां के मुन्नु हलवाई के पेड़ा बहुत पसंद करते थे. कहते हैं कि दिल्ली में जब उनका कोई सगा-संबंधी आता तो वह मुन्नालाल का पेड़ा अवश्य लाता था. यहां तक कि जब वह साल 1980 में अपने गृह नगर आये तो मुन्नालाल का पेड़ा मंगवाकर जरूर खाते थे.

जब पूरे थाने को सस्पेंड कर दिया था

  साल 1979 में एक शाम एक किसान मैला-कुचैला धोती पहने ऊसराहार (इटावा) थाने पहुंच कर थानेदार को बताया कि वह मेरठ से यहां बैल खरीदने आया था, मगर रास्ते में किसी ने उसके पैसे चोरी कर लिए. आप रिपोर्ट लिख लीजिए. दरोगा ने किसान को भगा दिया, तब एक पुलिसकर्मी ने चाय-पानी के एवज में 35 रुपये लेकर रिपोर्ट लिखवाई. मुंशी ने रिपोर्ट लिखकर पूछा कि हस्ताक्षर करोगे या साइन करोगे, किसान ने पेन लिया और चौधरी चरण सिंह का साइन करके जेब से मुहर निकालकर पेपर पर लगाया तो उस पर लिखा प्रधानमंत्री भारत सरकार देखकर दरोगा हैरान रह गया, उसने माफी मांगी, मगर चरण सिंह ने पूरे थाने को सस्पेंड करने का आदेश दिया और अपने काफिले के साथ वापस आ गये.

जब दर्जी से गुम हो गई चरण सिंह की शेरवानी

  साल 1967 में एक विशेष कार्यक्रम में शिरकत के लिए चौधरी चरण सिंह ने बड़े मनोयोग से एक शानदार शेरवानी सिलाई. उनके पीए ने दर्जी से शेरवानी भेजने के लिए कहा, तो दर्जी परेशान हो गया, क्योंकि शेरवानी कहीं मिली नहीं. उसने पीए को जब शेरवानी खोने की बात बताई तो पीए महोदय भड़क उठे. चरण सिंह जी ने पीए से कहा, दर्जी पर नाराज न हो, ऐसा हो जाता है. हम दूसरी शेरवानी सिलवा लेंगे. दर्जी ने नई शेरवानी सिल कर भेजी. चरण सिंह को वह शेरवानी इतनी पसंद आई कि तमाम शेरवानी होने के बावजूद उन्होंने उस शेरवानी को 11 साल तक पहना. यह संस्मरण चरण सिंह के जीवन पर लिखी पुस्तक एक और कबीर में उल्लेखित है.

चंदा नहीं आदमी अच्छा चाहिए पार्टी को

साल 1980 में उप्र विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों को टिकट दिए जा रहे थे. एक युवा नेता गोपीनाथ वर्मा चौधरी साहब के पास आये, उन्हें बताया कि उनकी जगह उनका टिकट एक शराब विक्रेता को दिया है. चरण सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष से कहा कि युवा नेता का नाम हटाने की वजह पूछी, तो पार्टी अध्यक्ष रामवचन यादव ने कहा कि शराब कारोबारी ने पार्टी को नौ लाख का चंदा दिया है, उसे टिकट देना पार्टी की मजबूरी है. चरण सिंह ने क्रोधित होते हुए कहा, हमारे कुछ उसूल हैं, इस देश को योग्य व्यक्ति की जरूरत है, शराब कारोबारी की नहीं. उनके नौ लाख वापस करो और गोपीनाथ वर्मा को टिकट दो.