अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष होलिकोत्सव जहां 10 मार्च को मनाया जायेगा, वहीं 9 मार्च को गोधूलि बेला में होलिका-दहन सम्पन्न होगा. ज्योतिषियों का मानना है कि इस वर्ष होलिका-दहन पर कई खास योग में बन रहे हैं. उनके अनुसार होलिका-दहन शुभ गज केसरी योग में पड़ रहा है. कहने का आशय यह कि गज यानी हाथी, केसरी का अर्थ शेर, और हाथी-शेर का योग राजसी सुख से है. हिंदू धर्म में गज को गणेशजी का प्रतीक बताया जाता है. इस विशेष योग में व्यक्ति विशेष को पुण्य-फल उसकी नक्षत्र, राशि और गुरु के आधार पर मिलता है. ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आखिर किस दिन और किस शुभ मुहूर्त में ये पांच उपाय करने से व्यक्ति विशेष को शनि, राहु, केतु के अलावा नजर-दोष से मुक्ति मिलती है.
इसके अलावा कुछ और विशेष ग्रह-गोचरों के योग बन रहे हैं. काफी समय बाद इस बार होली के समय गुरु और शनि अपनी राशि में एक साथ होंगे. गुरु अपनी राशि और धनु और शनि अपनी राशि मकर में विराजेंगे. इन संयोगों के बनने से कई तरह के अनिष्ठ दूर होते हैं. इसके अलावा होली पर पारिजात, वेशि और बुधादित्य योग भी बन रहा है.
भद्राकाल की रुकावट नहीं होगी:
इस वर्ष के होलिका-दहन की एक खास बात यह भी है कि होलिका-दहन के समय भद्राकाल की बाधा नहीं होगी पड़ेगी. बल्कि पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र होने के कारण जो ध्वज योग बन रहा है, वह यश प्रदान करने वाला बताया जा रहा है. होलिका-दहन के दिन भद्राकाल प्रातः सूर्योदय से शुरू होकर दोपहर करीब डेढ़ बजे ही खत्म हो जाएगा.
दोषों से मुक्ति पाने के लिए ऐसा करें
* होलिका की भभूत (राख) को मस्तष्क पर लगायें. इससे नजर दोष के अलावा बुरी शक्तियों से भी मुक्ति मिलती है.
* जलती होलिका-दहन में से 3 गोमती-चक्र हाथ में लेकर अपनी मनोकामना को मन ही मन 21 बार बोलते हुए गोमती-चक्र को अग्नि में प्रवाहित कर अग्नि को प्रणाम करें. मनोकामना पूरी होगी.
* होलिका-दहन करने अथवा जलती होलिका को देखने से व्यक्ति विशेष को शनि-राहु-केतु के दोष से मुक्ति मिलती है.
* मान्यता है कि होलिका की राख को चांदी की डिब्बी में रखकर किसी सुरक्षित जगह रखने से किसी भी तरह की बाधाएं खत्म हो जाती हैं.
पूजा विधिः
हरे वृक्ष न काटें. इसकी जगह गोबर के बड़बुले (होली के दिनों में बाजार में उपलब्ध होंगे) एवं घास-फूस का प्रयोग करें. किसी सुरक्षित स्थान पर अरंडी की एक लकड़ी जमीन पर गाड़कर उसके चारों ओर घास-फूस बिछाएं. इसके ऊपर से गोबर के बड़बुले और उपले (कंडे) करीने से सजा कर रखें. संध्याकाल प्रदोषकाल में होलिका-दहन का विधान है. होलिका-दहन से पूर्व पूजा की सामग्री रोली, कच्चा सूत, पुष्प, हल्दी की गांठ, खड़ी मूंग, बताशे, मिष्ठान, कच्चा नारियल, बड़बूले रख लें.
सर्वप्रथम गणेशजी एवं गौरी का पूजन करें. अब 'ॐ होलिकाये नम:' से होलिका का तथा 'ॐ प्रहलादाय नम:' से प्रहलाद का पूजन करें. इसके पश्चात 'ॐ नृसिंहाय नम:' से श्रीहरि यानी भगवान नृसिंह का पूजन करें. इसके पश्चात अपनी अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए अन्जानें में हुई गल्तियों के लिए क्षमा याचना करें. अब होलिका के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर 3 बार परिक्रमा करें.
अंत में लोटे का जल चढ़ाते हुए कहें- 'ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु।'
होलिका दहन (9 मार्च) का शुभ मुहूर्त:
संध्या कालः 06.22 से 08.49 बजे तक
भद्रा पुंछाः प्रातःकाल 09.50 बजे से 10.51 बजे तक
भद्रा मुखाः सुबह 10.51 बजे से 12.32 बजे तक
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.