Hindi Diwas 2019: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी क्यों बनाना चाहते थे हिंदी को राष्ट्रभाषा, जानिए कौन थे उनके हिंदी दूत
स्वतंत्रता आंदोलन में जब महात्मा गांधी संपूर्ण भारत का दौरा कर रहे थे, तब उन्हें कई बार हिंदी की ताकत का अहसास हुआ, क्योंकि यही एक भाषा थी, जो पूरे देश को एकसूत्र में जोड़ सकती थी. यही वजह थी कि ब्रिटिश सरकार से मुक्ति मिलने के पश्चात देश को एक राष्ट्रभाषा चुनने का प्रश्न उठा तब गांधी जी ने हिंदी को आगे करते हुए बताया कि हिंदी के बिना संपूर्ण आजादी की कल्पना भी बेमानी होगी.
Hindi Diwas 2019: ‘हिन्दी भाषा (Hindi Language) का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है.’ स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Fight) के मुख्य स्तंभ रहे गुजराती भाषी होने के बावजूद हिंदी को राष्ट्रभाषा (National Language) बनाने का महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का अहम योगदान रहा है. आज से 100 साल पूर्व 1919 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पूरी कर जब भारत लौटे थे तो हिंदी भाषा (Hindi) और देश की आजादी के आंदोलन का शंखनाद उन्होंने चंपारण से ही शुरू किया था, क्योंकि भाषा को लेकर उनके सामने कई तरह की दिक्कतें आई थीं. इससे पूर्व 29 मार्च 1918 को गांधी जी इंदौर में आठवें हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता भी कर चुके थे. सार्वजनिक सभा में अपनी बात कहते हुए उन्होंने हिंदी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने की वकालत की थी. हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की जब वे अपील कर रहे थे, तब देश ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी के बंधनों से आजाद होने के लिए जूझ रहा था. गांधी जी के हिंदी-प्रेम के मर्म ने देशवासियों के दिलों को छू लिया था.
हिंदी बिना संपूर्ण आजादी की कल्पना बेमानी है- गांधी
जानकार बताते हैं कि गांधी जी ने खुद भी हिंदी भाषा को अच्छे से बोलना लिखना सीखा था. स्वतंत्रता आंदोलन में जब वह संपूर्ण भारत का दौरा कर रहे थे, तब उन्हें कई बार हिंदी की ताकत का अहसास हुआ, क्योंकि यही एक भाषा थी, जो पूरे देश को एकसूत्र में जोड़ सकती थी. यही वजह थी कि ब्रिटिश सरकार से मुक्ति मिलने के पश्चात देश की एक राष्ट्रभाषा चुनने का प्रश्न उठा तब गांधी जी ने हिंदी को आगे करते हुए बताया कि हिंदी के बिना संपूर्ण आजादी की कल्पना भी बेमानी होगी. यह भी पढ़ें: Hindi Diwas 2019: भारत के अलावा दुनिया के इन देशों में बोली जाती है हिंदी, जानकर आपको भी होगा इस भाषा पर गर्व
आजादी की लड़ाई में हिंदी का योगदान
यह आजादी के बाद का वाकया है. एक विदेशी पत्रकार ने महात्मा गांधी से देश को संदेश भेजने के लिए जब जानना चाहा कि उन्होंने अंग्रेजों को भारत से बाहर कर दिया, अब वे किस भाषा में देश को संबोधित करेंगे? गांधी जी का जवाब था, -कह दो दुनिया से कि गांधी को अंग्रेजी नहीं आती. उन्होंने पत्रकार को बताया कि स्वतंत्रता की इस लड़ाई में हिंदी का अतुलनीय योगदान रहा है. हिंदी के ही माध्यम से गैरहिंदी आंदोलनकारी भी इस आंदोलन से जुड़े, इसलिए कहने की जरूरत नहीं कि देशवासियों को आजादी की बधाई देने के लिए मेरे सामने हिंदी से बढिया कोई विकल्प नहीं है, और तब गांधी जी ने पूरे देश को पहली बार हिंदी भाषा में संबोधित करते हुए आजादी की बधाई दिया.
जब हिंदी के लिए निराला गांधी जी पर भड़क गये
दरअसल आजादी के पूर्व महात्मा गांधी के हिंदी भाषणों में गुजराती टोन हुआ करता था. देशवासियों को जहां उनका यह टोन बहुत भाता था, वहीं गांधी जी भी अपनी हिंदी को सतत सुधारने का प्रयास करते थे. गांधी जी के हिंदी सुधारने में हिंदी लेखक और कवियों के साथ उनके बहुत मधुर रिश्तों की भी अहम भूमिका रही है. ऐसा ही एक किस्सा है कि एक बार गांधी जी ने महाकवि निराला से बातों ही बातों में कह दिया कि हिंदी में एक भी टैगोर नहीं है. गांधी जी की इस दलील पर महाकवि को क्रोध आ गया. गांधी जी के साथ इस विषय पर उन्होंने तर्कपूर्ण डिबेट करते हुए गांधी जी को अपनी गलती स्वीकारने के लिए विवश किया. यह भी पढ़ें: Hindi Diwas 2019: आजादी के बाद हिंदी को मिला राजभाषा का राष्ट्रीय झुनझुना, जानिए हिंदी भाषा की संवैधानिक स्थिति
क्या भूमिका थी गांधी जी के हिंदी दूतों की
इंदौर में हिंदी साहित्य सम्मेलन के दौरान महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए एक सहज और सरल युक्ति निकाली. उन्होंने इंदौर से पांच ‘हिंदी दूतों’ को देश के उन राज्यों में भेजा था, जहां उस वक्त हिंदी का ज्यादा प्रचलन नहीं था. इसमें सबसे पहले हिंदी दूत को उन्होंने मद्रास (आज का चेन्नई) भेजा था. इन ‘हिंदी दूतों’ में बापू के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी भी शामिल थे. गांधी जी ने कहा था कि जैसे अंग्रेज ‘मादरी जबान’ (अंग्रेजी) में ही बोलते हैं, उसी तरह उसे व्यवहार में लाते हैं, मैं चाहता हूं कि हिंदी को वही गरिमा वही पहचान हम भारतवासी क्यों न देँ. तभी हम हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बना सकेंगे.
इसीलिए प्रेमचंद्र को प्रिय थे गांधी
यह सच है कि महात्मा गांधी पर हिंदी लेखकों की भाषा का काफी गहरा प्रभाव था. उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र की रचनाएं इस बात का प्रमाण कही जा सकती हैं. जिसमें उन्होंने जगह-जगह गांधी जी की प्रशंसा करते हुए माना है कि उनके हिंदी और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने में महात्मा गांधी जी का अनुपम योगदान था. गांधी जी जो बोलते थे, जो लिखते थे, वह संस्कृतिनिष्ठ हिंदी नहीं थी, वह सहज और सरल हिंदी थी, आम लोगों को समझ में आनेवाली हिंदी. प्रेमचंद इसे हिंदी के बजाय ‘हिंदुस्तानी भाषा’ अथवा ‘संपर्कभाषा’ का नाम देते थे. प्रेमचंद्र गांधी जी के इस वाक्य को बहुत पसंद करते थे, ‘राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है.’ यह भी पढ़ें: Hindi Diwas 2019: हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा... हिंदी दिवस के खास अवसर पर दें गरिमामय भाषण
गांधी जी के दो हिंदी अखबार
गांधी जी उच्चकोटि के बैरिस्टर थे, आजादी की लड़ाई में उनके अहिंसात्मक लड़ाई की पूरी दुनिया कायल थी, लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि अपने समय के वह तेज-तर्रार पत्रकार भी थे. आजादी से पूर्व उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के कई अखबार भी निकाले, जिसे वो आजादी के हथियार की तरह इस्तेमाल करते थे. हिंदी में उनके द्वारा शुरू किये दो अखबार थे ‘नवजीवन’ और ‘हरिजन सेवक’. उनके पास कोई पत्र आता था तो वह उसका जवाब हिंदी में ही देते थे और स्वयं पत्र लिखते थे, इसलिए यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में गांधीजी का बहुत बड़ा योगदान था.