Happy Sita Navami 2021 HD Images: हैप्पी सीता नवमी! दोस्तों-रिश्तेदारों को भेजें ये मनमोहक WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIF Images और Wallpapers
सीता नवमी का महत्व हिंदू धर्म में राम नवमी से बिल्कुल भी कम नहीं है. इस दिन माता सीता की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने के अलावा लोग एक-दूसरे को शुभकामना संदेश भेजते हैं. आप भी इस खास मौके पर दोस्तों-रिश्तेदारों को इन मनमोहक एचडी इमेजेस, वॉट्सऐप स्टिकर्स, फेसबुक ग्रीटिंग्स, जीआईएफ इमेजेस और वॉलपेपर्स को भेजकर हैप्पी सीता नवमी कह सकते हैं.
Happy Sita Navami 2021 HD Images: आज (21 मई) सीता नवमी (Sita Navami) का पर्व मनाया जा रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता सीता का प्राकट्य हुआ था, इसलिए इस पावन तिथि पर सीता नवमी का त्योहार मनाया जाता है, जिसे जानकी नवमी (Janaki Navami) भी कहा जाता है. इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखकर माता सीता (Mata Sita) की विधि-विधान से पूजा करती हैं. माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) के अवतार देवी सीता को धैर्य और समर्पण की देवी कहा जाता है, इसलिए इस दिन सुहागन महिलाएं व्रत रखकर माता सीता से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं अपने मनचाहे वर के लिए व्रत करती हैं. इस दिन माता सीता की पूजा-अर्चना करने से भक्तों के जीवन से सभी संकट दूर होते हैं और खुशहाली का आगमन होता है.
सीता नवमी का महत्व हिंदू धर्म में राम नवमी से बिल्कुल भी कम नहीं है, इसलिए सीता नवमी यानी जानकी प्राकट्य दिवस का विशेष महत्व है. इस दिन माता सीता की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने के अलावा लोग एक-दूसरे को शुभकामना संदेश भेजते हैं. आप भी इस खास मौके पर दोस्तों-रिश्तेदारों को इन मनमोहक एचडी इमेजेस, वॉट्सऐप स्टिकर्स, फेसबुक ग्रीटिंग्स, जीआईएफ इमेजेस और वॉलपेपर्स को भेजकर हैप्पी सीता नवमी कह सकते हैं.
1- हैप्पी सीता नवमी 2021
2- हैप्पी सीता नवमी 2021
3- हैप्पी सीता नवमी 2021
4- हैप्पी सीता नवमी 2021
5- हैप्पी सीता नवमी 2021
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में एक बार मिथिला में भयंकर सूखा पड़ा था, जिससे राजा जनक बेहद दुखी थे. उन्होंने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए ऋषियों से सलाह मांगी, तब उन्होंने राजा जनक को यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया. राजा जनक ने सूखे से छुटकारा पाने के लिए यज्ञ कराया और फिर भूमि पर हल जोतने लगे. इस दौरान उन्हें एक सोने के संदूक में एक सुंदर कन्या मिली. राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने उस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार करते हुए सीता नाम दिया.