हिंदू नव वर्ष को विभिन्न समुदायों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) के रूप में मनाया जाता है, कश्मीरी हिंदू इसे नवरेह (Navreh) के रूप में मनाते हैं. पंजाबी समुदाय इसे बैसाख के रूप में और सिंधी इसे चेटी चंडी (Cheti Chand) के रूप में मनाते हैं. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में इसे उगादी (Ugadi) के रूप में मनाया जाता है, जहां पश्चिम बंगाल में इसे पोइला बैशाख के नाम से जाना जाता है. नवरेह इस साल 13 मार्च को मनाया जा रहा है. नवरेह की थाल सजाने की तैयारी एक दिन पहले ही शुरू हो जाती है. इस थाल को सजाकर रख दिया जाता है और सुबह उठकर सबसे पहले इसका दर्शन किया जाता है. इस थाल में दूध, चावल, अखरोट, रोटी, नमक, फूल, दही, जंतरी आदि रखा जाता है और पूजा अर्चना की जाती है.
कश्मीरी पंडित चैत्र (मार्च-अप्रैल) के अर्ध उज्ज्वल महीने के पहले दिन अपने नए साल का दिन मनाते हैं और इसे नवरेह कहते हैं. नव का अर्थ नया है, जो संस्कृत शब्द है. 1900 से पहले के कश्मीर जो अलग अलग राजों में बसे हुए हैं वो नवरेह मनाते हैं. भृंगिशा संहिता कहती है कि थाली कांस्य यानी तांबे की होनी चाहिए. सोंठ या कश्मीरी वसंत त्योहार पर भी यही अनुष्ठान किया जाता है. नवरेह के दिन लोग एक दूसरे से मिलते हैं और नववर्ष की बधाई देते हैं. इस दिन आप भ नीचे दिए गए ग्रीटिंग्स भेजकर बधाई दे सकते हैं.
हैप्पी नवरेह 2021:
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नवरेह या कश्मीरी नव वर्ष कश्मीरी पंडितों के लिए पारंपरिक नव वर्ष का दिन है. चंद्र हिंदू कैलेंडर के चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के पहले दिन नवरेह मनाया जाता है. इस दौरान कश्मीरी पंडित अपने प्रियजनों से मेलमिलाप करते हैं. हमारी ओर से आप सभी को नवरेह की शुभकामनाएं!