Happy Bhogi 2023: ज़िन्दगी में आनंद लाने वाला पर्व भोगी! जानें इसकी परंपराएं! क्यों कहते हैं इसे प्रकृति-पर्व?

इस पर्व के दिन प्रातःकाल अधिकांश दक्षिण भारतीय समुदायों में परंपरागत तरीके से भोगी मंटा का रश्म निभाया जाता है. घर के बाहर एक छोटा-सा गड्ढा खोदकर उसमें नारियल, केला, सिंदूर एवं पूजन सामग्री डालकर गड्ढे को मिट्टी से पाट दिया जाता है.

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Bhogi Celebration 2023: हमारा देश त्योहारों का देश है. यहां, तमाम धर्मों के त्योहार पूरे उत्साह से मनाये जाते हैं. हिंदू  धर्म में प्रकृति और आध्यात्म के बीच सीधा संबंध बताया जाता है. इसी कारणवश हमारे अधिकांश पर्व ग्रह, नक्षत्रों, फसलों एवं मौसमों से संबद्ध होते हैं. ऐसा ही पर्व है मकर संक्रांति. संपूर्ण भारत में मकर संक्रांति भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है. उत्तर भारत में इसे खिचड़ी कहते हैं, तो दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से विख्यात है. यहां मकर संक्रांति तीन दिनों तक मनाया जाता है. इनमें पहला भोगी कहलाता है. भोगी धनुर्मास का समापन का दिन होता है. इस संदर्भ में एक कहावत प्रचलित है कि धनुर्मास का व्रत रखने वाली भूदेवी के अंश में जन्मीं गोदादेवी श्रीरंगनाथ की पत्नी के रूप में अवतार लेती है, उसे ही भोगी कहते हैं.   

भोगी की हैं अनेक मान्यताएं

भोगी को लेकर विभिन्न समुदायों में अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ के अनुसार घर में पड़े पुराने सामान, बेकार हो चुके झाड़ू, लकड़ियां एवं टूटी फूटी चीजें जिन्हें दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है, ऐसी बेकार वस्तुओं को भोगी मंटा में जलाते हैं, इनके जलने से जो रोशनी हमें नजर आती है, वह रोशनी हमें सुखद भविष्य की ओर बढ़ने के लिए हमारा मार्ग प्रशस्त करती है, इन आग की लपटों को ही भोगी कहा जाता है. कुछ लोगों के अनुसार जिस दिन किसानों की उगाई हुई नई फसलें हाथों में आती है, वह दिन भी भोगी कहलाता है.

 इसके अलावा कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि जब किसान अपनी फसलों की कटाई करके घरों में लाकर रखते हैं, तब पशु-पक्षी नाचते झूमते आकर इन्हें खाते हैं तो इस पूरी प्रक्रिया के दरम्यान गांव में एक खुशहाल संगीतमय वातावरण सा बन जाता है. इस आनंदमय वातावरण को भी भोगी कहा जाता है. भोगी के इन तमाम स्वरूपों का एक ही अर्थ होता है और वह यह कि दरिद्रता को दूर कर जन जीवन में खुशियां भर देने वाला पर्व ही भोगी है.

भोगी मंटा जलाने का रश्म

 इस पर्व के दिन प्रातःकाल अधिकांश दक्षिण भारतीय समुदायों में परंपरागत तरीके से भोगी मंटा का रश्म निभाया जाता है. घर के बाहर एक छोटा-सा गड्ढा खोदकर उसमें नारियल, केला, सिंदूर एवं पूजन सामग्री डालकर गड्ढे को मिट्टी से पाट दिया जाता है. इसके पश्चात इस स्थान की सामूहिक पूजा आदि करने के पश्चात इसी जगह पर भोगी मंटा सजाया जाता है. इसमें गोबर के कंडे, लकड़ियां आदि प्रयोग में लाई जाती हैं. इसके पश्चात उचित मुहूर्त में भोगी मंटा जलाया जाता है. कुछ लोगों के अनुसार जलते भोगी मंटा में पानी गर्म किया जाता है. मान्यता है कि इस पवित्र गरम पानी से स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. तेलुगू समुदाय में पोंगल को फसलों की कटाई का पर्व माना जाता है. इसे सम्पन्नता को समर्पित पर्व भी कहा जाता है. इस दिन घर परिवार में सुख एवं समृद्धि लाने के लिए प्रकृति एवं मवेशियों की पूजा की जाती है.

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