Hajj 2019: आज से शुरू हो रही है ये पवित्र यात्रा, जानें इससे जुड़ी जरुरी बातें
हज के मद्देनजर बड़ी संख्या में हाजी सऊदी अरब में जुटे हैं (Photo: الحج 1440هـ - Hajj 2019/Twitter)

हर मुसलमान के लिए हज यात्रा का विशेष महत्व होता है. यही वजह है कि प्रत्येक मुसलमान की दिली ख्वाहिश होती है कि जीवन में कम से कम एक बार हज यात्रा का सौभाग्य उसे भी मिल जाये. क्योंकि इस्लाम धर्म में हज यात्रा का विशेष महत्व होता है. हर साल दुनिया भर के लाखों मुसलमान हज के लिए सऊदी अरब स्थित मक्का पहुंचते हैं. इस्लामिक कैलेंडर के 12वें माह के 8वें दिन से 13वें दिन के बीच हज करने की परंपरा है. आखिर इस्लाम धर्म में हज यात्रा का इतना महत्व क्यों होता है, आइये जानते हैं.

पाक कुरान में इस्लाम के पांच स्तंभों का उल्लेख है. ये पांच स्तंभ हैं, शहादा, नमाज, जकात, रोजा और हज. मक्का-मदीना को इस्लाम में सबसे पवित्र स्थान माना गया है. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस्लाम का जन्म यहीं मक्का-मदीना में ही हुआ था. मान्यता है कि मक्का ऐसा शहर है, जहां अल्लाह के लिए सर्वप्रथम नमाज अदा करने के लिए स्थान बनाया गया था. दरअसल मुस्लिम धर्म के संस्थापक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म 570 में इसी मक्का में हुआ था.

हज की वह पहली यात्रा:

लगभग 628 वर्षों बाद पैगंबर मोहम्मद अपने 1400 अनुयायियों के साथ मक्का की यात्रा की शुरूआत की. हज के लिए यह इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा साबित हुई. इस यात्रा के साथ ही पैगंबर अब्राहम की धार्मिक परंपरा को फिर से स्थापित किया किया.

यह भी पढ़े: ईद-उल-जुहा है त्याग और बलिदान की कहानी, जानें क्यों मनाई जाती है बकरीद?

हज यात्रा की परंपराएं:

मक्का आनेवाले हाजी यहां बिना सिलाई वाले वस्त्र पहनकर आते हैं, जिसे एहरम कहते हैं. स्त्री-पुरुष का सिर ढका होता है. वे किसी तरह के मेकअप अथवा इत्र का इस्तेमाल नहीं करते. ऐसा समानता के लिए किया जाता है ताकि यह पता नहीं चले कि कौन अमीर है और कौन गरीब. मान्यतानुसार हज की शुरूआत मक्का से होती है, यद्यपि कुछ लोग मक्का से पहले मदीना पहुंचते हैं, जहां पैगंबर मोहम्मद की मजार है. यहीं पर उन्होंने दुनिया की पहली मस्जिद बनाई थी.

इस्लाम में हज यात्रा का महत्व:

हज यात्रा भी इस्लाम के अन्य नियमों में से एक माना जाता है. मुसलमान इसे अपनी इबादत का माध्यम मानते हैं. दूसरे शब्दों में अल्लाह की मेहर पाने के लिए हजयात्रा जरूरी माना जाता है. एक मुसलमान जिस तरह रोजे और नमाज अदा कर खुद को अल्लाह के करीब पाता है, उसी तरह हजयात्रा करके वह एक सच्चा मुसलमान होने का फर्ज निभाता है और अपने जन्म को सफल बनाता है. हजयात्रा के साथ प्रत्येक मुसमान की गहरी भावनाएं जुड़ी होती हैं.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.