Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2022: हर साल 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस (Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas) मनाया जाता है. सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर (Guru Tegh Bahadur) ने 24 नवंबर 1675 को धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था. भारत के इतिहास में उनका अद्वितीय स्थान है, क्योंकि उन्होंने धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. गुरु हरगोबिंद साहिब जी के घर 1 अप्रैल 1621 को जन्में गुरु तेग बहादुर जी को बचपन में त्यागमल कहकर बुलाया जाता था. बताया जाता है कि गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों और दूसरे हिंदुओं के जबरन धर्म परिवर्तन कराए और उन्हें मुसलमान बनाए जाने का कड़ा विरोध किया था. उन्होंने धर्म के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करना तो स्वीकार किया, लेकिन औरंगजेब के सामने मरते दम तक घुटने नहीं टेके.
धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले गुरु तेग बहादुर अपने इस बलिदान के लिए इतिहास के पन्नों में सदा-सदा के लिए अमर हो गए. वो जितने महाने थे, उनके विचार भी उतने ही अनमोल थे, जिसका आज भी अनुसरण किया जाता है. गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस पर आप उनके इन 10 अनमोल विचारों को अपनों संग शेयर कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं.
1- सफलता कभी आखिरी नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती, जो मायने रखता है वह साहस है.
2- सज्जन शख्स वही है जो भूलकर भी किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए.
3- साहस उस जगह पाया जाता है, जहां पर उसकी संभावना कम हो.
4- गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो.
5- डर कहीं और नहीं, बस आपके दिमाग में होता है.
6- सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है.
7- दिलेरी डर की गैरमौजूदगी नहीं, बल्कि यह फैसला है कि डर से भी जरूरी कुछ चीजें है.
8- हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो, घृणा से विनाश होता है.
9- महान कार्य छोटे-छोटे कार्यों से बने होते हैं.
10- आध्यात्मिक मार्ग पर दो सबसे कठिन परिक्षण हैं. सही समय का इंतजार करने का धैर्य और जो सामने आए उससे निराश न होने का साहस.
गौरतलब है कि जबरन मुसलमान बनाए जाने का विरोध करने और इस्लाम धर्म को मानने से इंकार करने पर मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह की यातमाएं दी, लेकिन उन्होंने कभी उसके सामने घुटने नहीं टेके. इसके बाद इस्लाम धर्म न कुबूल किए जाने पर औरंगजेब ने उन्हें मौत की सजा सुनाते हुए उनका सिर कलम कर दिया था. जब औरंगजेब ने जब उन पर इस्लाम धर्म कुबूल करने के लिए दबाव बनाया तो उन्होंने कहा था कि वो शीश कटा सकते हैं, लेकिन केश नहीं.