सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंहजी की जयंती इस वर्ष 20 जनवरी 2021 को पूरे देश में धूमधाम से मनायी जायेगी. इस उत्सव को 'प्रकाश पर्व' के नाम से भी जाना जाता है. गुरुगोविंद सिंह सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु तथा सबसे लोकप्रिय गुरुओं में से एक हैं. गौरतलब है कि उन्होंने ही खालसा पंथ की स्थापना की थी. इसीलिए इस दिन को सिख समुदाय बहुत सम्मान, उमंग एवं उत्साह के साथ मनाता है. आइये जानें सिख धर्म की स्थापना से जुड़े रोचक प्रसंग!
जन्म तिथि को लेकर भ्रांतिया!
गुरु गोविंद सिंह जी की जन्म तिथि को लेकर काफी दुविधाएं हैं. सिखों के दसवें यानी अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर को बताई जाती है, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक उनकी जन्म-तिथि 1 जनवरी है. हिंदू पंचांग के अनुसार उनका जन्म विक्रम संवत 1723 को पौष मास की शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है. इस नजरिये से इस वर्ष 2021 में 20 जनवरी को गुरु गोविंद सिंह जी की 354वीं जयंती मनाई जायेगी. Amazon Great Republic Day Sale 2021: नए साल की पहली अमेजन इंडिया सेल 20 से 23 जनवरी तक, जानें किन चीजों पर मिलेगा आकर्षक डिस्काउंट.
गुरु गोविंद सिंह का दिव्य जन्म!
गुरु गोबिंद सिंह के पिता गुरुतेग बहादुर, और माता गुजरी हैं. बचपन में इन्हें गोबिंद राय सिंह के नाम से पुकारा जाता था. मान्यता है कि पटना में जब माता नानकी की गर्भ से गुरु गोबिंद राय का जन्म हुआ, तब पिता गुरु तेग बहादुर प्रवचन और उपदेश के सिलसिले में असम एवं बंगाल गये हुए थे. कहा जाता है कि जिस समय गुरु गोबिंद राय पैदा हुए, ठीक उसी समय एक मुसलमान संत फकीर भीखण शाह करनाल स्थित अपने गांव में समाधि में लिप्त बैठे थे.
जैसे ही गुरु गोबिंद राय पैदा हुए, समाधि में लिप्त मुस्लिम संत को प्रकाश पुंज दिखाई दिया. इस पुंज में उन्होंने एक नवजात बालक का प्रतिबिंब देखा. बाद में फकीर ने बताया कि दुनिया में किसी जगह ईश्वर का एक पीर अवतरित हुआ है. वह पीर और कोई नहीं गोबिंद राय सिंह ही थे.
दसवें गुरु की मान्यता
गुरु गोबिंद राय जब नौ वर्ष के थे, पिता गुरुतेग बहादुर की मृत्यु हो गई. सिक्ख समुदाय ने उन्हें अपना दसवां गुरु घोषित किया. बहुत छोटी उम्र से ही गुरुगोबिंद राय ने सिख धर्म की संस्कृति में योगदान देना शुरु कर दिया था. खालसा आदेश की शुरुआत उन्होंने ही की थी.
उन्होंने एक नारा दिया था, 'वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह' गुरुगोबिंद सिंह महान कर्मप्रणेता, अद्वितीय धर्मरक्षक, वीर रस के दिव्य कवि और संघर्षशील योद्धा भी थे. उनमें शक्ति, भक्ति और ज्ञान के साथ-साथ वैराग्य और मानव समाज के उत्थान की भावना कूट-कूट कर भरी थी.
खालसा पंथ की स्थापना
साल 1699 को बैसाखी के दिन खालसा पंथ का निर्माण किया. इस संदर्भ में एक रोचक वाकया है, एक दिन सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा कि कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? एक स्वयंसेवक आगे बढ़ा. गुरुगोविंद सिंह उसे लेकर तंबू के अंदर गये. थोड़ी देर बाद रक्त में डूबी तलवार लेकर बाहर आये और पुनः पूछा और कोई भी है. इस तरह पांच स्वयंसेवकों के साथ उन्होंने यही किया. थोड़ी देर बाद पांचों स्वयंसेवकों के साथ गुरु गोबिंद जी बाहर आये ओर उन्हें पंज प्यारे (पहले खालसा) का नाम दिया. इसके बाद ही उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रखा गया. बाद में पंच प्यारों को पांच ककारों यानी केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा के महत्व को समझाया.
गुरु गोविंद सिंह जयंती और प्रकाश पर्व
गुरुगोविंद सिंह जी की जयंती के दिन लोग गुरुद्वारों में जाकर शबद एवं कीर्तन में हिस्सा लेते हैं. शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं. इस अवसर पर गुरुगोविंद सिंह जी के पवित्र उपदेश एवं वीररस से भरपूर कविताएं सुनाते हैं. उनके उपदेशों वाले सत्संगों में शामिल होते हैं. इसीलिए इस दिन को प्रकाश पर्व के नाम से जाना जाता है. गुरुद्वारों में लंगरों का आयोजन होता है, जिसमें सभी धर्म एवं वर्गों को भोजन खिलाया जाता है. 7 अक्टूबर, 1708 को खालसा पंथ के निर्माणक गुरु गोबिंद सिंह जी ने अंतिम सांस ली.