Gudi Padwa 2020: बालि-वध के साथ शुरू हुआ गुड़ी पड़वा का पर्व! जानें सुख-समृद्धि से जुड़े इस त्योहार का महत्व

चैत्र मास के पहले दिन मनाये जाने वाले ‘गुड़ी पड़वा’ पर्व की धूम महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं गोवा सहित दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में विशेष रूप से देखने को मिलती है. इसी दिन को देश भर में नवसंवत्सर के रूप में भी सेलीब्रेट किया जाता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी.

हैप्पी गुड़ी पड़वा (Photo Credits: File Image)

Happy Gudi Padwa 2020: चैत्र मास के पहले दिन मनाये जाने वाले ‘गुड़ी पड़वा’ (Gudi Padwa) पर्व की धूम महाराष्ट्र (Maharashtra), आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh), कर्नाटक (Karnataka) एवं गोवा (Goa) सहित दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में विशेष रूप से देखने को मिलती है. इसी दिन को देश भर में नवसंवत्सर के रूप में भी सेलीब्रेट किया जाता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी. इस वजह से संपूर्ण भारत में इस दिन का विशेष महत्व माना जाता है.

दक्षिण भारत में ही क्यों विशेष है गुड़ी पड़वा

इस प्रश्न के पीछे श्रीराम कथा का सुग्रीव-बालि प्रसंग हो सकता है. रामायण काल में इस क्षेत्र में राजा बालि का शासन हुआ करता था. जब रावण सीताजी को हर कर ले गया तो सीताजी की तलाश में घूमते हुए श्रीराम और लक्ष्मण इस प्रदेश में आये. यहीं पर उनकी मुलाकात सुग्रीव और हनुमानजी से हुई थी. सुग्रीव ने श्रीराम से बालि के कुशासन के बारे में बताया, जिसकी वजह से वहां की जनता बहुत परेशान थी. श्रीराम ने बालि का वध कर सुग्रीव को वहां का राजा बनाया. मान्यता है कि बालि का वध चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन ही हुआ था. बालि की मृत्यु की खबर से वहां की जनता प्रसन्न हुई. इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाते हुए लोगों ने घर के बाहर विजय पताका बांधी और इस दिन को गुडी पडवा के नाम से सेलीब्रेट किया. गुड़ी शब्द का मतलब विजय पताका है. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2020: चैत्र नवरात्रि में मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए क्या करें और क्या नहीं, जानें इसका महात्म्य

सेहत के नजरिये से

स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी गुड़ी पड़वा का बहुत महत्व है. इस दिवस विशेष पर अधिकांश घरों में जो पकवान बनाये जाते हैं, वे लजीज होने के साथ-साथ सेहत के लिए भी लाभकारी होते है. वह चाहे महाराष्ट्र में बनाई जानेवाली मीठी पूरन पोली हो अथवा आंध्र प्रदेश अथवा दक्षिण के कई राज्यों में बनाई जाने वाली प्रसाद स्वरूप पच्चड़ी हो. पच्चड़ी के संदर्भ में मान्यता है कि खाली पेट इसे खाने से चर्म रोग की संभावना नहीं रहती. यह त्वचा को स्निग्ध एवं संपूर्ण शरीर को सेहतमंद बनाती है. पच्चड़ी के साथ बनने वाले अन्य बननेवाले व्यंजनों में गुड़, नीम के फूलों, इमली और आम से बनी मीठी रोटी भी सेहत के लिए अच्छी होती है.

गुड़ी पड़वा (25 मार्च) मुहूर्त 2020

प्रतिपदा तिथिः दोपहर 02.57 से प्रारंभ (24 मार्च 2020)

प्रतिपदा तिथिः दोपहर 05.26 समाप्त (25 मार्च 2020)

नवरात्रि-प्रारंभ से बढ़ जाता है इस दिन का महत्व

गुड़ी पाड़वा मूल रूप से महाराष्ट्र एवं दक्षिण के आंध्र प्रदेश एवं कुछ अन्य राज्यों में ही मनाया जाता है लेकिन चैत्र शुक्लपक्ष के इसी दिन से चैत्रीय नवरात्रि उत्सव की भी शुरुआत हो जाती है, जिसे पूरे देश में सच्ची आस्था के साथ मनाया जाता है, इसलिए इस दिन का महत्व संपूर्ण भारत के लिए खास बन जाता है. नवरात्रि का यह पर्व नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना के साथ चलता है. नवें दिन रामनवमी के साथ इस पर्व की समाप्ति होती है.

कैसे मनाते हैं गुड़ी पड़वा का यह पर्व

इस दिन विशेषकर महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में पर्व की विशेष धूम देखने को मिलती है. इस दिन सुबह-सवेरे बहुसंख्य हिंदू अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं. घर के बाहर रंगोली सजाते हैं और आम के पत्तों से बने तोरण दरवाजे पर लगाते हैं. इसे खुशहाली का प्रतीक माना जाता है साथ ही लोगों के मन में अच्छी फसल होने व घर में सुख-समृद्धि आने की उम्मीदें भी रहती हैं. इस दिन लोग घर के अगले हिस्से में एक झंडा लगाते हैं.

एक बर्तन पर स्वास्तिक का चिह्न बनाकर उस पर एक रेशमी कपड़ा बांधते हैं. इस बर्तन को झंडे के ऊपरी छोर पर बांध देते हैं. इस दिन घर के सदस्य पारंपरिक परिधान पहनकर सूर्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं. बहुत से घरों में सुंदरकांड, रामरक्षास्त्रोत एवं देवी भगवती के मंत्रों का जाप भी किया जाता है.

Share Now

\