गुड़ी पड़वा 2020: इस विशेष दिवस को कई नामों से करते हैं सेलीब्रेट! जानें पर्व से जुड़ी भिन्न-भिन्न परंपराएं!
गुड़ी पड़वा (Photo Credits: PTI)

सनातन संस्कृति में गुड़ी पड़वा का पर्व चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को विक्रम संवत के नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है. इस तिथि के साथ पौराणिक एवं ऐतिहासिक दोनों प्रकार की ही मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. ब्रह्म पुराण में उल्लेखित है कि चैत्र प्रतिपदा दिवस से ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी. इसी तरह का वर्णन अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मण में भी देखने मिलते हैं. ज्योतिषियों के अनुसार इसी दिन चैत्र नवरात्रि का पर्व भी प्रारंभ होता है और महाराष्ट्र समेत दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 25 मार्च (बुधवार) को मनाया जायेगा गुड़ी पड़वा का पर्व.

देश के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में गुड़ी पड़वा को अलग-अलग नामों नवरात्रिनवसंवत्सर, और युगादि से भी मनाया जाता है. सभी की संस्कृतियां भिन्न होती हैं. गुड़ी पड़वा से ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है. महाराष्ट्र में यह त्योहार काफी प्रचलित है. यहां गुड़ी का आशय विजय और पड़वा का मतलब होता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का पहला दिन, आइए जानें गुड़ी पड़वा से जुड़ी कुछ रोचक बातें...

हिंदू पुराणों के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की था और माना जाता है कि इसी दिन सतयुग की शुरुआत हुई थी.

इसी चैत्र शुक्लपक्ष के दिन शालिवाहन शक 1942 प्रारंभ होगा.

इस दिन महाराष्ट्र के हर घरों में विजय के प्रतीक के रूप में गुड़ी टांगी जाती है और उसकी विधिवत पूजा की जाती है.

मान्यता है कि गुड़ी पड़वा के पुनीत तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने बालि का वध कर दक्षिण राज्य उसके आतंक से मुक्त करवाया था और सुग्रीव का राज्याभिषेक किया था. इसी खुशी में लोग अपने घरों पर विजय पताका के रूप में गुड़ी टांगते हैं.

महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन सभी लोग अपने घरों की विशेष रूप से साफ-सफाई करते हैं. ताकि उनके घरों में सुख-शांति एवं समृद्धि का वास हो.

* माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही गणितज्ञ भास्कराचार्य ने तिथिवारनक्षत्रयोग और करण पर आधारित हिंदू पंचांग की रचना की थी.  

गुड़ी पड़वा के दिन मराठी महिलाएं नौवारी यानी गज की लंबी साड़ी पारंपरिक तरीके से पहनती हैं, जबकि पुरुष कुर्ता-धोती पर केसरिया रंग की पगड़ी पहन कर सभी मोटर सायकिल पर पूरे शहर की परिक्रमा करते हैं.

गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग संवत्सर पड़वो के नाम से सेलीब्रेट करते हैं, जबकि कर्नाटक में यह पर्व युगादि के नाम से मनाया जाता है. वहीं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे उगादी के नाम से मनाया जाता है.

* आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में गुड़ी पड़वा के दिन घर आये अतिथि को प्रसाद के रूप में 'पच्चड़ीबांटने की परंपरा है. स्थानीयों का मानना है कि 'पच्चड़ी खाने से व्यक्ति साल भर निरोगी रहता है

महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन एक विशेष व्यंजन पूरन पोली बनाई जाती है.