Govats Vasubaras 2023: कब और क्यों मनाया जाता है गोवत्स वसुबरस? जानें इस पर्व का महात्म्य, तिथि, महत्व, मुहूर्त एवं पूजा-विधि?

हिंदू पंचांग के अनुसार धनतेरस से एक दिन पूर्व गोवत्स द्वादशी (गोवत्स वसुबरस) का पर्व मनाया जाता है. इस दिन गाय-बछड़ों की पूजा की जाती है. इसके बाद उन्हें गेहूं से बने विभिन्न खाद्य-पदार्थ खिलाया जाता है, जो लोग इस पर्व को मनाते हैं, वे इस दिन गेहूं और दूध से बनी किसी भी वस्तु का सेवन नहीं करते हैं.

Govats Vasubaras 2023

हिंदू पंचांग के अनुसार धनतेरस से एक दिन पूर्व गोवत्स द्वादशी (गोवत्स वसुबरस) का पर्व मनाया जाता है. इस दिन गाय-बछड़ों की पूजा की जाती है. इसके बाद उन्हें गेहूं से बने विभिन्न खाद्य-पदार्थ खिलाया जाता है, जो लोग इस पर्व को मनाते हैं, वे इस दिन गेहूं और दूध से बनी किसी भी वस्तु का सेवन नहीं करते हैं. गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के नाम से भी मनाया जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों में नंदिनी में वस्तुतः एक दिव्य गाय है. महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के कुछ अंचलों में गोवत्स द्वादशी को वसु बारस के नाम से जाना जाता है और इसी दिन से महापर्व दिवाली की शुरूआत बताई जाती है. आइये जानते हैं इस पर्व के बारे में विस्तार से. यह भी पढ़ें: Diwali 2023 Mehndi Designs: दिवाली पर लगाए ये आसान मेहंदी डिजाईन, अपने लुक को और निखारे

गोवत्स द्वाद्वशी 2023 मूल तिथि एवं मूहूर्त

कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी प्रारंभः10.41 AM (09 नवंबर, 2023 गुरूवार) से

कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी समाप्तः 12.35 PM (10 नवंबर, 2023 शुक्रवार) तक

गोवत्स द्वादशी (प्रदोषकाल) मुहूर्तः 05.31 PM से 08.09 PM (कुल अवधिः 02 घण्टे 38 मिनट)

पूजा की विधि

गोवत्स द्वाद्वशी के दिन सुबह-सवेरे स्नान-ध्यान के पश्चात मुख्य दरवाजे एवं आंगन में रंगोली सजाई जाती है. वस्तुतः इस पर्व की धूम भारत के ग्रामीण इलाकों में देखते बनती है. इस दिन गांवों वाले गाय-बछड़े को स्नान कराने के पश्चात पैरों में हल्दी मिला जल, कुमकुम और अक्षत डालते हैं. सुहागन स्त्रियां उनके मस्तक पर रोली का तिलक लगाकर गुड़ खिलाती हैं. पूजा करती हैं तथा उन्हें पूरन पोली खिलाती हैं. वहीं शहरी क्षेत्रों में जहां गाय-बछड़े सुलभ नहीं हो पाते, उपरोक्त विधि से गाय-बछड़े की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा की जाती है. ब्राह्मणों को दान देते हैं और हिंदू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन घर के मुख्यद्वार पर दीपक प्रज्वलित कर दीपावली महापर्व का श्रीगणेश करते हैं.

क्यों की जाती है गाय-बछड़े की पूजा?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद इसी दिन गौ माता का दर्शन कर उनका पूजन किया था. तभी से इस दिन व्रत रखते हुए गाय-बछड़े की पूजा करने की परंपरा जारी है. इस दिन बच्चों की खुशी और उनकी लंबी आयु तथा संतान प्राप्ति के लिए गोवत्स द्वादशी का व्रत रखा जाता है. कहते हैं इस दिन जो भी व्यक्ति व्रत रख गाय की सच्ची श्रद्धा से पूजा करता है, उन्हें जल्द ही संतान सुख प्राप्त होता है. ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन गाय-बछड़े की पूजा करने से गौ-लोक में वास करने का सौभाग्य मिलता है. इसके अलावा श्रीकृष्ण की कृपा से निसंतान को संतान सुख और तरक्की का आशीर्वाद मिलता है.

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