दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन और गौ पूजा की जाती है. कई क्षेत्रों में इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है अन्न का समूह. गोवर्धन पूजा के दौरान कई तरह के अन्न भगवान को चढ़ाए जाते हैं और फिर प्रसाद के रूप में सभी को दिया जाता है. इस पूजा में भगवान को कई प्रकार के मिष्ठान, पकवानों का भोग लगाया जाता है. बताया जाता है कि गोवर्धन पूजा की परंपरा की शुरुआत द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के अवतार लेने के बाद से हुई थी और इसे ब्रजवासियों का प्रमुख त्योहार माना जाता है.
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली (सबसे छोटी उंगली) से गोवर्धन पर्वत को उठाया था. इंद्र के प्रकोप और उनका अहंकार तोड़ने के लिए ही भगवान ने अपनी कनिष्ठा अंगुली का प्रयोग किया.
भगवान कृष्ण ने क्यों उठाया था गोवर्धन पर्वत
पुरानी कथाओं के मुताबिक, इस दिन वृंदावन के लोग अच्छी फसल के लिए भगवान इंद्र की धूमधाम से पूजा किया करते थे. इंद्र सभी देवताओं में सबसे उच्च समझे जाते रहे हैं, साथ ही उन्हें स्वर्ग का राजा कहा जाता है. लेकिन इंद्र को अपनी शक्तियों और पद पर घमंड हो गया था, जिसे चकनाचूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने एक लीला रची. यह भी पढ़ें- Govardhan Puja 2018: कैसे हुई गोवर्धन पूजा की शुरुआत, जानें पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि
कृष्ण ने वृंदावन के लोगों को समझाया कि गोवर्धन पर्वत की उपजाऊ धरती के कारण ही वहां पर घास उगती है, जिसे गाय, बैल और पशु चरते हैं. इससे ही लोगों को दूध मिलता है, साथ ही वो खेत को जोतने में मदद करते हैं. कृष्ण ने वृंदावन वासियों को समझाया कि वो इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करें.
भगवान कृष्ण की इस बात से देवराज इंद्र बहुत ज्यादा नाराज हो गए. उन्होंने वृंदावन पर मूसलाधार बारिश की. इंद्र के प्रकोप से बचने के लिए कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली यानी छोटी उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया. सभी वृंदावन वासी उस पर्वत के नीचे आ गए और खुद को भारी बारिश से बचा लिया. गुस्से में इंद्र ने 7 दिनों तक वृंदावन में मूसलाधार बारिश की.
भगवान श्रीकृष्ण ने 7वें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा, तब से हर साल कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाया जाने लगा. कहा जाता है कि इस दिन भगवान के निमित्त भोग और नैवेद्य बनाया जाता है जिन्हें 'छप्पन भोग' कहते हैं. इस पर्व को मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है साथ ही वह जीवनपर्यंत सुखी और समृद्ध रहता है.