Ganesh Chaturthi 2019: गजानन कैसे बने विघ्न विनाशक, क्यों रखा जाता है गणेश चतुर्थी पर व्रत, जानिए इससे जुड़ी रोचक कथा

हमारे पौराणिक ग्रंथों में श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत के महात्म्य का विस्तार से वर्णन है. यह पर्व देश के सभी हिस्सों में पूरी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है. पुराणों के अनुसार इसी दिन श्रीगणेश जी का जन्म हुआ था.

गणेश चतुर्थी 2019 (Photo Credits: Instagram)

Ganeshotsav 2019: हमारे पौराणिक ग्रंथों में श्रीगणेश चतुर्थी (Ganesh ChaturthI के व्रत के महात्म्य का विस्तार से वर्णन है. यह पर्व देश के सभी हिस्सों में पूरी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है. पुराणों के अनुसार इसी दिन श्रीगणेश जी (Lord Ganesha) का जन्म हुआ था. इस अवसर पर कई जगहों पर विशाल पंडाल सजाये जाते हैं और श्रीगणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इस प्रतिमा का 10 दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है. ज्यादातर स्थानों पर पुरोहित ही पूजा-अनुष्ठान करते हैं. बहुत से गणेश भक्त पूरे 10 दिनों तक व्रत रखते हैं.

श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का महात्म्य

शिव पुराण में एक रोचक कथा के जरिये श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का महात्म्य बताया गया है. शिव पुराण के रुद्रसंहिता के चतुर्थ खण्ड में उल्लेखित है कि माता पार्वती ने स्नान करने जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक बालक को उत्पन्न कर उसे द्वार पर बिठाते हुए निर्देश दिया कि जब तक मैं वापस न आ जाऊं, किसी को भीतर प्रवेश मत करने देना. थोड़ी देर के पश्चात जब भगवान शिव ने प्रवेश करने की कोशिश की तो, बालक ने उन्हें रोका. इससे भगवान शिव रुष्ठ हो गये. शिव गणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया, लेकिन वे बालक की शक्ति के आगे पस्त पड़ गये. तब भगवान शिव ने त्रिशूल से बालक का सर काट दिया. शिव जी के इस कृत्य से पार्वती क्रुद्ध हो उठीं. उन्होंने संपूर्ण ब्रहाण्ड में प्रलय करने का फैसला कर लिया. देवता भयभीत हो उठे. इस प्रलय को रोकने और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए नारद मुनि के सुझाव पर देवताओं ने जगदम्बा स्तुति करके माता पार्वती को शांत किया. यह भी पढ़ें: Ganeshotsav 2019: दरिद्रता से बचना चाहते हैं तो भूलकर भी न करें भगवान गणेश की पीठ के दर्शन, जानें उनके किस अंग में है किसका वास

शिवजी के आदेश पर विष्णु जी उत्तर दिशा में जाकर एक गज का सिर काटकर ले आए. भगवान शिव ने गज के सिर को बालक के धड पर रखकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर उसे जीवित कर दिया. बालक को जीवित देखकर माता पार्वती ने खुशी से विह्वल होकर गजमुख बालक को हृदय से लगाते हुए, उसे देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया. उधर त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ने भी बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करते हुए अग्रपूज्य होने का वरदान दिया.

भगवान शिव ने कहा-गिरिजा नन्दन! तू विघ्न विनाशक होगा. तू मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष बन. (इस तरह इस बालक को गणेश का नाम मिला.) भगवान शिव ने कहा, हे गणेश्वर! तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर पैदा हुआ है. अतः इस तिथि को व्रत रखने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा, उसे सभी सिद्धियां प्राप्त होंगी. भगवान शिव ने आगे कहा, हे गणेश कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय तुम्हारी पूजा करने के उपरांत उपवासी को चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात ही पारण करना श्रेयस्कर होगा. इस दिन प्रत्येक वर्ष श्रीगणेश चतुर्थी के दिन उपवास रखने वाले की सारी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी.

कैसे करें गणेश चतुर्थी का व्रत

भाद्रपद की चतुर्थी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नानादि से फारिग होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें. इसके पश्चात व्रत का संकल्प लेने के पश्चात लाल रंग के वस्त्र पहनें. श्रीगणेश जी की पूजा करते समय ध्यान पूर्वक अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें. गणेश जी के समक्ष स्वच्छ आसन पर बैठकर श्री गणेश की पूजा प्रारंभ करें. श्रीगणेश जी के सामने धूप जलाकर शुद्ध घी का दीप प्रज्जवलित करें. अब पंचामृत से स्नान करवाकर गंगाजल से अभिषेक करें. रोली का टीका लगाएं एवं उन्हें अक्षत एवं फूल चढ़ाएं. उन्हें नैवेद्य स्वरूप फल एवं मिष्ठान चढ़ाएं. 'ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है से उनकी स्तुतिगान करते हुए पूजा सम्पन्न करें. अंत में गणेश जी की आरती करें. यह भी पढ़ें: Ganesh Chaturthi 2019: कब और कैसे शुरु हुई गणेशोत्सव मनाने की परंपरा, जानें इससे जुड़ी रोचक गाथा

श्रीगणेश जी को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्‍डू तथा मोदक अति प्रिय हैं. पूरे विधि-विधान से गणेश पूजा करने के उपरांत गणेश मंत्र 'ॐ गणेशाय नम:' अथवा 'ॐ गं गणपतये नम: की एक माला (यानी 108 बार गणेश मंत्र का) जाप अवश्य करें. गणेश चतुर्थी के दिन किया गया दान-पुण्य बहुत लाभकारी होता है. इसलिए अपनी सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मण एवं गरीबों को वस्त्र, कंबल, मिष्ठान, भोजन आदि दान करें.

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