दही हांडी का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू का प्रतीक है. इस वर्ष जन्माष्टमी सोमवार, 26 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी, और इसके अगले दिन, मंगलवार, 27 अगस्त 2024 को दही हांडी का आयोजन होगा. इस वर्ष श्रीकृष्ण की 5251वीं जन्मजयंती मनाई जाएगी.
दही हांडी का महत्व
दही हांडी का पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इसकी गूंज देश के अन्य हिस्सों में भी सुनाई देती है. यह पर्व हिन्दू धर्म में खास महत्व रखता है और इसे भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं से जोड़ा जाता है. जन्माष्टमी के अगले दिन, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को दही हांडी का आयोजन किया जाता है.
दही हांडी की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई?
दही हांडी की परंपरा का संबंध भगवान कृष्ण के बाल्यकाल से है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में बालकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर माखन और दही चुराते थे और उसे बड़े चाव से खाते थे. गांव की महिलाएं इससे परेशान हो गईं और उन्होंने माखन और दही को ऊँचाई पर लटकाना शुरू कर दिया, ताकि छोटे कद के कृष्ण और उनके मित्र इसे न चुरा सकें.
लेकिन कृष्ण ने इस चुनौती का सामना करने के लिए मानव पिरामिड का सहारा लिया. दोस्तों के कंधों पर चढ़कर उन्होंने मटकी तक पहुंचना शुरू किया और दही और माखन का आनंद लिया. यही कारण है कि आज भी दही हांडी के रूप में इस परंपरा को जन्माष्टमी के उत्सव का हिस्सा बनाया गया है.
2024 में दही हांडी की तारीख
ड्रिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष दही हांडी का पर्व मंगलवार, 27 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा. इसके पहले, जन्माष्टमी का पर्व सोमवार, 26 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा, जब अष्टमी तिथि 26 अगस्त को सुबह 03:39 बजे शुरू होगी और 27 अगस्त को सुबह 02:19 बजे समाप्त होगी.
दही हांडी का आयोजन
आज के समय में, दही हांडी का आयोजन मंदिरों और सड़कों पर बड़े उत्साह के साथ किया जाता है. खासतौर पर मुंबई और पुणे जैसे शहरों में इसे बड़े स्तर पर मनाया जाता है, जहां गोविंदा की टोली मटकी फोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाती है. इस अवसर पर लाखों लोग इकट्ठा होते हैं और भगवान कृष्ण की लीलाओं को याद करते हुए इस पर्व का आनंद लेते हैं.
दही हांडी एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमें भगवान कृष्ण की मस्ती और साहस की याद दिलाता है. इस पर्व के माध्यम से हम भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की उन लीलाओं का अनुभव करते हैं जो हमें सिखाती हैं कि किसी भी कठिनाई को कैसे पार किया जाए.