अपनी वीरता और पराक्रम के दम पर मुगलों (Mughals) को घुटने टेकने पर मजबूर करने वाले भारत के वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के सबसे बड़े पुत्र संभाजी महाराज (Sambhaji Maharaj) का आज यानी 11 मार्च को बलिदान दिवस (Balidan Din) है. पिता छत्रपति महाराज की तरह ही संभाजी महाराज का जीवन भी देश और हिंदुत्व के लिए समर्पित रहा. उन्होंने बचपन से ही राज्य की राजनीतिक समस्याओं का निवारण किया था और बाल्यावस्था के दौरान संघर्ष और शिक्षा-दीक्षा की वजह से ही बाल शंभुजी राजे (Shambhuji Raje) कालांतर में वीर संभाजी राजे बन सके.
14 मई सन 1647 में जन्में संभाजी राजे भोसले छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी पहली पत्नी साईबाई के बेटे थे. उन्होंने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया था, जिसके बाद उनकी दादी जीजाबाई ने उनकी देखभाल की. संभाजी महाराज बलिदान दिन के इस मौके पर चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें.
संभाजी महाराज से जुड़ी रोचक बातें-
1- बचपन में ही अपनी मां को खो देने के बाद संभाजी महाराज का लालन-पालन उनकी दादी जीजाबाई ने किया. राजनीतिक गठबंधन के कारण उनका विवाह बचपन में ही करा दिया गया था. उनकी पत्नी का नाम जीवुबाई (येशुबाई) था जो पिलाजीराव शिरके की पुत्री थीं.
2- पिता छत्रपति शिवाजी महाराज से दूर रहने के कारण संभाजी बहुत छोटी उम्र में ही राजनीतिक षड़यंत्रों का शिकार हो गए थे. राजनीतिक समझौते की वजह से उन्हें औरंगाबाद के दरबार में दरबारी तक बनना पड़ा था, जो उस दौरान मुगलों के पास था.
3- शिवाजी के कई मंत्रियों ने संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई से हाथ मिला लिया था और सोयराबाई ने अपने 10 साल के बेटे राजाराम को गद्दी पर बिठा दिया. जब संभाजी को इस षड़यंत्र के बारे में पता चला तो उन्होंने सोयराबाई के भाई हम्बीराव मोहिते से मदद मांगी, जिसके बाद उन्होंने 20,000 सिपाहियों की फौज लेकर रायगढ़ के किले पर चढ़ाई की और इस किले को जीतने के बाद उन्होंने अपनी सौतेली मां सोयराबाई को कैद कर लिया और खुद को छत्रपति घोषित किया.
4- औरंगजेब के बेटे शहजादे अकबर ने जब अपने पिता के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, तब उन्होंने संभाजी से सहायता मांगी थी, जिसके बाद संभाजी ने उन्हें अपने यहां पनाह दी थी. संभाजी ने मुगलों पर कई हमले भी किए थे, जिनमें से कुछ में उन्हें जीत मिली थी तो कुछ में उन्हें हार का सामना भी करना पड़ा था. यह भी पढ़ें: Shivaji Maharaj Jayanti 2019: एक महान योद्धा और दयालु शासक थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जानिए उनके जीवन से जुड़ी ये खास बातें
5- औरंगजेब और संभाजी का आमना-सामना भी बेहद दिलचस्प तरीके से हुआ था. औरंगजेब ने मुगल सेनापति मुकर्रब खान की मदद से संभाजी को अपना बंदी बना लिया था. जिसके बाद मुगल बादशाह ने संभाजी के सामने तीन शर्ते रखी थीं- पहली, संभाजी अपनी सारी सेना, सारे किलों और मराठाओं के खजाने को मुगलों के हवाले कर दें. दूसरी संभाजी सारे मुगल गद्दारों के नाम बताएं और तीसरी शर्त थी कि संभाजी मुसलमान बन जाएं.
6- संभाजी ने औरंगजेब की किसी भी शर्त को मानने से इंकार कर दिया, जिससे गुस्साए औरंगजेब ने उन्हें बहरुपियों के कपड़े पहनाकर, ऊंटों से बांधकर पूरे नगर और पूरी सेना के सामने घुमाया. इसके साथ ही सभी मुसलमानों को उन पर थूंकने के लिए कहा गया. कुछ दस्तावेजों के अनुसार, संभाजी सारी शर्ते एक शर्त पर मानने को तैयार हुए कि औरंगजेब अपनी बेटी का विवाह संभाजी से करा दें. उन्होंने अपनी बेइज्जती का बदला औरंगजेब से कुछ इस तरह से लिया.
7- कहा जाता है कि एक बार फिर औरंगजेब ने संभाजी पर इस्लाम कुबूल करने का दबाव डाला, लेकिन उन्होंने हिंदू धर्म की महानता का गुणगान करते हुए उसकी बात को मानने से इंकार कर दिया. जिसके बाद औरंगजेब ने संभाजी के घावों पर नमक छिड़कने का आदेश दिया. फिर भी जब उन्होंने इस्लाम कुबूल करने से इंकार किया तो औरंगजेब ने उनकी जीभ काटकर अपने पैरों तले रखने का आदेश दिया और फिर उनकी जीभ को एक कुत्ते के आगे फेंक दी गई.
8- संभाजी के खिलाफ औरंगजेब की हैवानियत यहीं नही थमी, उसने संभाजी को सबसे दर्दनाक मौत देने की खौफनाक योजना बना रखी थी. जिसके तहत एक-एक कर धीरे-धीरे उनके हाथ और पैर काटे गए. जीभ, हाथ और पैरों के काटे जाने के बाद भी उनके भीतर कुछ दिनों तक जान बाकी थी. आखिर में उनका सिर काटकर किले पर टांग दिया गया था.
9- बताया जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद कुछ मराठाओं ने उनके शरीर को सिलकर, उनका अंतिम संस्कार भीमा नदी के तट पर किया था. संभाजी के मित्र कवि कलश को भी उन्हीं की तरह दर्दनाक मौत दी गई थी. संभाजी के इस बलिदान के बाद सारे मराठी एक जुट हुए और मुगलों का डटकर सामना किया. यह भी पढ़ें: Shivaji Maharaj Jayanti 2019: छत्रपति शिवाजी महाराज के ‘गुरिल्ला युद्ध’ से खौफ खाती थी मुगल सेना, जानें इस महान शासक से जुड़ी कुछ अनोखी बातें
10- दरअसल, कुछ दस्तावेजों में संभाजी को वीर तो कुछ में उन्हें गद्दार बताया गया है. किसी दस्तावेज में उन्हें मुगलों का साथ देने वाला गद्दार बताया गया तो कहीं उन्हें मुगलों के सामने घुटने न टेकने वाला और उनके साथ छलावा करने वाला एक महान योद्धा बताया गया है.
गौरतलब है कि 1680 में रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज के देहांत के बाद, मराठा साम्राज्य दोबारा खतरे में पड़ गया था. राजसिंहासन भी पारिवारिक मतभेदों की वजह से बिना राजा के विदेशियों की नजरों का शिकार बन चुका था. लेकिन उनके पुत्र संभाजी ने अपने छोटे से जीवनकाल में हिंदू समाज के हित में बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की, जिसके लिए प्रत्येक हिंदू उनके आभारी हैं.













QuickLY

