छठ पूजा 2018: आज है खरना, जानें 36 घंटे के इस निर्जला व्रत का महत्त्व और पूजा विधि

लोक आस्था का महापर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान के दूसरे दिन 'खरना' की विधि की जाती है. नहाय खाय के अगले दिन खरना होता है, जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि होती है.

छठ पूजा 2018 (Photo Credit-Facebook)

रविवार 11 नवंबर से छठ पूजा की शुरुवात हो चुकी है, छठ सूर्य देव की उपासना का पर्व है. चार दिनों के इस महापर्व समापन 14 नवंबर को होगा. लोक आस्था का महापर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान के दूसरे दिन 'खरना' की विधि की जाती है. नहाय खाय के अगले दिन खरना होता है, जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि होती है. खरना का मतलब है पूरे दिन का उपवास. पहले दिन नहाय-खाय के बाद व्रती सोमवार को खरना करेंगे. खरना को 'लोहड़ा' भी कहा जाता है. इस दिन व्रती नहाय खाय के दिन एक समय भोजन करके अपने शरीर और मन को शुद्ध करना आरंभ करते हैं जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है इसलिए इसे खरना कहते हैं.

इस दिन व्रती शुद्ध अंतःकरण से कुलदेवता और सूर्य एवं छठी मैय्या की पूजा करके गुड़ से बनी खीर का नैवेद्य अर्पित करते हैं. कई लोग जहां गंगा के तट पर या जलाशयों के किनारे खरना करते हैं, वहीं कई अपने घर में ही विधि-विधान से खरना करते हैं. यह भी पढ़ें- Chhath Puja 2018: उपवास किए बिना भी आपको मिल सकता है छठ पूजा का फल, जानें कैसे?

व्रती व्‍यक्ति इस दिन जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता. शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है. प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है. इस बार छठ की मुख्य पूजा 13 नवंबर को की जाएगी. इस दिन शाम को सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य देने के बाद अगली सुबह सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य देकर इस पर्व का समापन किया जाता है.

नए चूल्हे पर बनता है प्रसाद 

खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है, और ये चूल्‍हा मिट्टी का बना होता है. देवता को चढ़ाए जाने वाले खीर को व्रती स्वयं अपने हाथों से बनाते हैं. खीर पकाने के लिए शुद्ध अरवा चावल या साठी के चावल का प्रयोग होता है. ईंधन के रूप में सिर्फ लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है. आम की लकड़ी का प्रयोग करना उत्तम माना गया है. खरना पूजन के बाद व्रती पहले स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं और इसके बाद परिवार के लोगों को देते हैं. खरना पूजन में एक बार भोजन कर लेने के बाद व्रती को कुछ भी खाना-पीना नहीं होता है. संध्या अर्घ्य और सुबह का अर्घ्य देने के बाद ही व्रती व्रत का परायण कर सकते हैं. यह भी पढ़ें- Chhath Puja wishes 2018: छठ पूजा के पर्व को बेहद खास बना देंगे ये शानदार मैसेजेस, इन्हें वॉट्सऐप व फेसबुक पर भेजकर दें सभी को शुभकामनाएं 

करना होता होता है पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन

खरना के बाद व्रती दो दिनों तक साधना में होते हैं जिसमें उन्हें पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भूमि पर सोना होता है. इसके लिए सोने के स्थान को अच्छे से साफ सुथरा करके पवित्र किया जाता है और स्वच्छ बिस्तर बिछाया जाता है.

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