Champa Shashti 2023 Date: मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष के छठे दिन चम्पा षष्ठी का व्रत रखा जाता है. स्कंद पुराण में इस दिन को भगवान कार्तिकेय से भी जोड़ा गया है. इसलिए इस दिन को स्कंद षष्ठी भी कहते हैं. इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करते हैं. इसी दिन श्री हरि ने नारदजी का मोह का भंग कर उनका उद्धार किया था. सांसारिक मोह-माया से मुक्ति हेतु यह व्रत प्रभावशाली साबित हो सकता है. मान्यतानुसार चंपा षष्ठी को व्रत-पूजा एवं दान-धर्म करने से जातक के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है. इस वर्ष यह 18 फरवरी 2023, सोमवार को चम्पा षष्ठी पड़ रहा है. आइये जानते हैं इसके महात्म्य, पूजा-विधि एवं इस दिन सुने जाने वाले पौराणिक कथा के बारे में.
चंपा षष्ठी का महात्म्य
चम्पा षष्ठी का पर्व महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन श्रीहरि ने महर्षि नारद का मोहभंग कर उन्हें श्राप मुक्त किया था, इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. स्कंद पुराण के अनुसार चम्पा षष्ठी के दिन मंगल दोष की पूजा को बहुत प्रभावशाली माना जाता है, और मंगल ग्रह के मूल स्वामी भगवान कार्तिकेय हैं, इसलिए इस दिन भगवान कार्तिकेय की भी विशेष पूजा की जाती है. इसके साथ ही चंपा षष्ठी का पर्व भगवान शिव को भी समर्पित बताया जाता है, मान्यतानुसार इसी दिन भगवान शिव ने खंडोबा के रूप में अवतार लेकर राक्षस मल्ल एवं उसके छोटे भाई मणि का संहार कर पृथ्वी वासियों को दोनों राक्षसों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाया था.
चम्पा षष्ठी सोमवार, दिसम्बर 18, 2023 को
चंपा षष्ठी प्रारंभः 05:33 PM बजे (17 दिसंबर 2023, रविवार)
चंपा षष्ठी प्रारंभः 03:13 PM बजे (18 दिसंबर 2023, सोमवार)
गौरतलब है कि चम्पा षष्ठी अगर रविवार अथवा मंगलवार को शतभिषा नक्षत्र तथा वैधृति योग के साथ पड़ती है तो इस संयोग को अत्यधिक शुभ माना जाता है.
चंपा षष्ठी की पूजा विधि
चंपा षष्ठी मूलतः महाराष्ट्र एवं दक्षिण में मनाया जाता है. यह पूजा मार्गशीर्ष अमावस्या से शुरू होकर मार्गशीर्ष षष्ठी तक यानी छह दिनों तक चलती है. इस दिन खंडोबा मंदिर में यात्रा पूजा का मुख्य आयोजन होता है. खंडोबा मंदिर में भगवान खंडोबा जिन्हें शिवजी का अवतार माना जाता है. सुबह-सवेरे स्नान-ध्यान के पश्चात मंदिर में खंडोबा जी के सामने तेल का एक अखंड दीपक जलाते हैं. भगवान को सुगंधित पुष्प, घी, दही और जल अर्पित करते हैं. इसके पश्चात स्वामी कार्तिकेय की पूजा अर्चना करते हैं. इस दिन मंदिरों में भंडारे का भी आयोजन होता है. इसके पश्चात आरती उतारते हैं. मान्यता है कि चंपा षष्ठी की विधि-विधान से पूजा करने से अगले-पिछले जन्म के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. जीवन में आनेवाली सारी समस्याएं दूर होती हैं.
चम्पा षष्ठी की पौराणिक कथा
एक बार महर्षि नारद को अपने त्याग और तप का अभिमान हो गया. विष्णुजी ने महर्षि नारद के अभिमान को खत्म करने की योजना बनाई. एक दिन भ्रमण करते हुए नारदजी एक समृद्ध राज्य में रुके. राजा की सुंदर पुत्री को देख उनके मन में सुंदरी के प्रति आसक्ति आ गयी. लेकिन उन्होंने सोचा कोई राजकुमारी उन जैसे संन्यासी से विवाह क्यों करेगी? मदद के लिए वह विष्णु जी से मिले. उन्हें पूरी बात बताने के बाद आग्रह किया कि वह उन्हें अपना रूप प्रदान करें. लेकिन स्वयंवर के समय कन्या नारद जी के बजाय किसी और के गले में वरमाला डाल दिया, लेकिन वह हैरान थे, कि सब उन्हें देखकर हंस क्यों रहे हैं. किसी के कहने पर नारद जी ने जल में अपने प्रतिबिंब को देखा. खुद की शक्ल बंदर जैसी देख वे क्रोधित हो उठे, उन्होंने विष्णु जी को श्राप दिया कि त्रेता युग में संकट पड़ने पर इन्हीं बंदरों से आप मदद मांगेंगे. स्वयंवर का यह आयोजन मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी को हुआ था.