चैत्र मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी यानी नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है. मान्यतानुसार माँ कात्यायनी का जन्म महर्षि कात्यायन के घर हुआ था, इसीलिए इन्हें कात्यायनी का नाम मिला. मान्यता है कि गोपियों ने श्रीकृष्ण को पाने के लिए इनकी पूजा की थी. ज्योतिषियों के अनुसार जिस कन्या के विवाह में रुकावटें आ रही हैं, उसकी कुंडली में विवाह-दोष है, अगर नौ दिन के उपवासकाल में माता कात्यायनी की पूजा-अर्चना करे तो उसे मनचाहा और योग्य जीवन साथी मिलता है.
यह देवी का वही स्वरूप है, जिन्होंने महिषासुर का वध किया था, इसलिए ये असुरों और पापियों का नाश करनेवाली देवी कहलाती हैं. इस बार माँ कात्यायनी की पूजा 30 मार्च यानी आज है.
माता कात्यायनी का महात्म्य एवं दिव्य स्वरूप
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माता कात्यायनी की पूजा गृहस्थ और विवाह के इच्छुक व्यक्तियों के साथ-साथ शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों के लिए भी बेहद लाभदायक होता है. क्योंकि माता कात्यायनी अमोद्य फल देनेवाली माँ हैं. इनका व्यक्तित्व शांत एवं सौम्य है. संपूर्ण व्यक्तित्व स्वर्ण की भांति दमकता रहता है. इनके सिर पर मुकुट सुशोभित हो रहा है. माता कात्यायनी की चार भुजाएं हैं. एक हाथ में खडग, दूसरे हाथ में कमल का फूल है जबकि शेष दो हाथ वर मुद्रा और अभय मुद्रा में है. माता कात्यायानी सिंह की सवारी करती हैं. वे ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं.
कौन हैं माता कात्यायनी
देवी पुराण के अनुसार कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि के पुत्र थे ऋषि कात्य. इन्हीं के गोत्र में महर्षि कात्यायन पैदा हुए. कहा जाता है कि समस्त भूमंडल और स्वर्ग पर महादानव महिषासुर का जब अत्याचार लगातार बढ़ता गया तब विवश होकर सारे देवताओं त्रिदेव यानी भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे. अंततः त्रिदेव एवं अन्य देवताओं के दिव्य स्वरूप से निकली शक्तियां एक शक्ति-पुंज के रूप में प्रकट हुईं, जिन्हें महाशक्ति कहा गया. ऋषि कात्यायन के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें कात्यायनी के नाम से जाना जाता है. मन की शक्ति की देवी मां कात्यायनी की उपासना से मनुष्य सभी इन्द्रियों को वश में कर सकता है.
कैसे करें माता कात्यायनी की पूजा
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की उपासना एवं पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है. माँ कात्यायनी को चांदी या मिट्टी के पात्र में शहद अर्पित करें. इससे आपका आकर्षण बढ़ेगा. पूजा के बाद शहद को भक्तों में वितरित कर दें. चैत्र मास की षष्ठी के दिन सर्वप्रथम स्नान-ध्यान कर घर के मंदिर के सामने एक लकड़ी की स्वच्छ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं. अब मां कत्यायनी की प्रतिमा अथवा तस्वीर इस चौकी पर स्थापित करें. इसके बाद मां की पूजा लाल पुष्प, अक्षत, रोली, सिंदूर, धूप-दीप प्रज्जवलित कर पूजा आराधना करें, जैसा कि नवरात्रि के पहले पांच दिन से करते आ रहे हैं.
मां कात्यायनी का मंत्र
पूजा के दरम्यान ही हाथों में लाल फूल लेकर मां की सेवा भक्ति के साथ इस मंत्र का जाप करें व 108 बार इस मंत्र को जपें. मनोवांछित फल मिलेंगे.
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहनो
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.