Birsa Munda Punyatithi 2024: बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर इन हिंदी WhatsApp Messages, Quotes, Photo SMS के जरिए करें उन्हें याद
ईसाई धर्म का त्याग करने के बाद बिरसा मुंडा ने अपना नया धर्म 'बिरसैत' शुरू किया था, जिसे जल्द ही मुंडा और उरांव जनजाति के लोग भी मानने लगे थे. उनके संघर्ष की शुरुआत चाईबासा में हुई थी, जहां उन्होंने चार साल बिताए और यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ एक आदिवासी आंदोलन की शुरुआत हुई. बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर आप इन हिंदी वॉट्सऐप मैसेजेस, कोट्स, फोटो एसएमएस के जरिए श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं.
Birsa Munda Punyatithi 2024: भारत के ऐसे कई क्रांतिकारी रहे हैं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर रखा था. उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे बिरसा मुंडा (Birsa Munda), जिन्होंने 25 साल की कम उम्र में ही अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. इस महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता को लोग भगवान मानते थे. ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशक्त विद्रोह करने वाले बिरसा मुंडा की इस साल (9 जून 2024) 124वीं पुण्यतिथि (Birsa Munda Death Anniversary) मनाई जा रही है. बिरसा मुंडा ने न केवल आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया था, बल्कि उन्होंने आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए भी कई कार्य किए थे. उनका जन्म 15 नवंबर, 1875 को मुंडा जनजाति में हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई सलगा से हुई थी, लेकिन उन्हें जर्मन मिशन स्कूल भेज दिया गया, जहां वे ईसाई बन कर बिरसा डेविड बन गए थे. हालांकि वहां पढ़ाई करने के दौरान उन्हें ब्रिटिशों द्वारा धर्मांतरण कराए जाने का पूरा खेल समझ आ गया था, जिसके चलते उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और ईसाई धर्म को भी त्याग दिया.
ईसाई धर्म का त्याग करने के बाद बिरसा मुंडा ने अपना नया धर्म 'बिरसैत' शुरू किया था, जिसे जल्द ही मुंडा और उरांव जनजाति के लोग भी मानने लगे थे. उनके संघर्ष की शुरुआत चाईबासा में हुई थी, जहां उन्होंने चार साल बिताए और यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ एक आदिवासी आंदोलन की शुरुआत हुई. बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर आप इन हिंदी वॉट्सऐप मैसेजेस, कोट्स, फोटो एसएमएस के जरिए श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं.
बताया जाता है कि अपनी जमीन को अंग्रेजों से वापस पाने के लिए मुंडा समुदाय के लोगों ने आंदोलन की शुरुआत की और इसे उलगुलान का नाम दिया. बिरसा मुंडा ने पुलिस स्टेशनों और जमींदारों की संपत्ति पर हमला करना शुरु कर दिया था, जिससे परेशान होकर ब्रिटिशों ने उन्हें पकड़ने के लिए 500 रुपए का इनाम रखा था. उन्हें पहली बार 24 अगस्त 1895 को गिरफ्तार किया गया था और दो साल की सजा सुनाई गई. जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए अपने लोगों के साथ गुप्त बैठकें शुरु कर दी थीं.
अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों के बढ़ते विरोध के चलते उन्होंने बिरसा मुंडा को रोकने की साजिश रची और उन्हें गिरफ्तार करने का वॉरंट जारी किया और फिर उन्हें 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन तब तक वो लोगों के लिए भगवान के समान बन चुके थे. हालांकि जेल में जाने के बाद दिन ब दिन उनकी तबीयत बिगड़ने लगी, यहां तक कि उन्हें किसी से मिलने भी नहीं दिया जाता था. जेल में उनकी हालत बिगड़ती चली गई और 9 जून 1900 को उन्होंने अंतिम सांस ली.