मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष (Bhaum Pradosh) कहा जाता है. यूं तो प्रदोष का दिन भगवान शिव को समर्पित दिन है, लेकिन मंगलवार के दिन पड़ने के कारण इस दिन शिवजी के साथ हनुमानजी की भी पूजा-अर्चना की जाती है. पौराणिक ग्रंथों में हनुमान जी को शिवजी का रुद्रावतार बताया गया है. इस कारण भोम प्रदोष का महत्व ज्यादा होता है. भौम प्रदोष का व्रत एवं पूजा करने से जातक के जीवन में चल रहे मांगलिक दोष मिटते हैं, घर-परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है. हिंदू पंचांग के अनुसार इस माह 15 अक्टूबर 2024 को भौम प्रदोष व्रत रखा जाएगा. आइये जानते हैं भौम प्रदोष व्रत क्यों खास माना जाता है. यह भी पढ़ें: Sharad Purnima 2024: कब है शरद पूर्णिमा? इस रात की खीर अमृत तुल्य क्यों मानी जाती है? जानें शरद पूर्णिमा का महत्व एवं इससे जुड़ी रोचक बातें!
भौम प्रदोष व्रत का महत्व
जैसा कि बताया गया है इस दिन भगवान शिव के साथ हनुमान जी की भी विशेष पूजा होती है. इस व्रत एवं पूजा से आर्थिक संकट दूर होते हैं, शनि की साढ़ेसाती और मांगलिक दोष से राहत मिलती है, जातक का आत्मविश्वास एवं तेज बढ़ता है. कर्ज से मुक्ति मिलती है. समाज में उसका विशेष सम्मान होता है. भौम प्रदोष के दिन हनुमान जी की सुबह और भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में पूजा मुहूर्त के अनुरूप किया जाना चाहिए.
भौम प्रदोष व्रत की मूल तिथि एवं मुहूर्त
आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी प्रारंभः 03.42 AM (15 अक्टूबर 2024, मंगलवार)
आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी समाप्त 12.19 AM (16 अक्टूबर 2024, बुधवार)
उदया तिथि के अनुसार 15 अक्टूबर 2024 को भौम प्रदोष व्रत रखा जाएगा.
प्रदोषकाल पूजा मुहूर्तः 05.51 PM से 08.21 PM तक भगवान शिव एवं हनुमान जी की पूजा की जा सकती है.
भौम प्रदोष व्रत एवं पूजा के नियम
भौम प्रदोष के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान शिव एवं हनुमान जी का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. घर का मंदिर एवं उसके आसपास की सफाई करें. भगवान शिव एवं हनुमान जी पर गंगाजल छिड़क कर सांकेतिक स्नान कराएं. पूजा के शुभ मुहूर्त में भगवान के सामने धूप दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा प्रारंभ करें.
‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनं नावहंतु’
‘ॐ ऐं भ्रीम हनुमते, श्री राम दूताय नमः’
सर्वप्रथम गणेश स्तुति के साथ गणेशजी को पुष्प एवं दूर्वा अर्पित करें. भगवान शिव का गंगाजल, बेल पत्र, धतूरा, फूल एवं सफेद चंदन से अभिषेक करें. भोग में मौसमी फल, मिठाई चढ़ाएं. अब भगवान शिव की आरती उतारें. एवं प्रसाद का वितरण करें.