Basant Panchami 2019: बसंत पंचमी का पर्व 10 फरवरी को, जानें क्यों इस दिन की जाती है सरस्वती पूजा

हमारे देश में ‘बसंत पंचमी’ को ‘ऋतुराज के नाम से भी जाना जाता है. ऋग्वेद में वर्णित है कि माघ मास की पंचमी यानी बसंत पंचमी के दिन ब्रह्मा जी द्वारा माँ सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी. तभी से बसंत पंचमी के दिन सरस्वती जी की विशेष पूजा अर्चना की परंपरा शुरु हुई है.

बसंत पंचमी 2019 (File Image)

Basant Panchami 2019: हमारे देश में ‘बसंत पंचमी’  (Basant Panchmi) को ‘ऋतुराज के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल, हिंदुस्तान ऋतुओं के मामले में काफी समृद्धशाली देश माना जाता है. हमें बसंत के साथ ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर जैसी छहों ऋतुओं का सुख भोगने का भी अवसर मिलता है. लेकिन बसंत पंचमी सरस्वती पूजन (Saraswati Puja) के बगैर अधूरा माना जाता है. आखिर ऋतुओं के इस महापर्व से मां सरस्वती (Godess Saraswati) का क्या संबंध है? सरस्वती कौन हैं, हिंदू धर्म में इस दिन इनकी पूजन (Pujan) का विशेष महात्मय (Significance) क्यों बताया जाता है?

ऋग्वेद में वर्णित है कि माघ मास की पंचमी यानी बसंत पंचमी के दिन ब्रह्मा जी द्वारा माँ सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी. तभी से बसंत पंचमी के दिन सरस्वती जी की विशेष पूजा अर्चना की परंपरा शुरु हुई है. इस संदर्भ में हमारे शास्त्रों में एक बहुत ही लोकप्रिय कथा प्रचलित है. सृष्टि निर्माण के प्रारंभिक चरणों में जब ब्रह्मा जी सृष्टि का निरंतर निर्माण कर रहे थे, तो उन्हें लगा कि कहीं कुछ अधूरापन है, जिसकी वजह से सर्वत्र शांति व्याप्त है. तब विष्णु जी के कहने पर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से थोड़ा-सा जल लेकर पृथ्वी पर छिड़का. जल पृथ्वी के संपर्क में आते ही श्वेत वस्त्रों में एक स्त्री प्रकट हुई, जिसके एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में था.

ब्रह्मा जी ने स्त्री से कहा, -हे स्वरूपा वीणा और पुस्तक से इस जगत को अवलोकित करो, ज्यों ही स्त्री ने वीणा के तार झंकृत किये, सभी जीव जंतुओं से आवाज निकलने लगी, जल प्रपात में कोलाहल, वायु में सरसराहट, पक्षियों में चहचहाहट होने लगी. रंग-बिरंगे फूलों वायु प्रवेग से झूमने लगे, मानो सब कुछ सजीव हो गया हो. इसके पश्चात ब्रह्मा जी ने उस स्त्री को वाणी की देवी सरस्वती का नाम दिया. यद्यपि सरस्वती जी को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और बाग्देवी इत्यादि नामों से भी पूजा जाता है.

श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम सरस्वती माँ की पूजा की

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती के प्रताप से प्रकृति को नया रंग मिलने और गुंजायमान होने पर श्री कृष्ण और राधा का मन मयूर नाच उठा. श्रीकृष्ण ने सरस्वती को वरदान देते हुए कहा, -हे सुंदरी प्रत्येक माघ मास के शुक्ल पंचमी के दिन विद्या और संगीत के लिए तुम्हारा आह्वान कर मनुष्य ही नहीं, बल्कि सारे देवी-देवता-किन्नर, नाग, गंधर्व, राक्षस सभी पूरी भक्ति और सामर्थ्य से तुम्हारी पूजा-अर्चना करेंगे. सरस्वती को वर देने के पश्चात स्वयं श्री कृष्ण ने सरस्वती जी की पूजा की. इसके तुरंत पश्चात ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र समेत सभी देवताओं ने भी सरस्वती की पूजा की. यह भी पढ़ें: Kumbh Mela 2019: कुंभ मेले में जाएं तो ललिता देवी शक्तिपीठ के दर्शन करना न भूलें, जहां गिरी थीं माता सती के हाथों की 3 उंगलियां

सफेद रंग मां सरस्वती को है प्रिय

सत्वगुण के साथ उत्पन्न होने की वजह से माँ सरस्वती की पूजा के लिए अधिकांशतया सफेद अथवा पीले रंग की सामग्रियां उपयोग में लाई जाती हैं. सफेद चंदन, पीला फूल, सफेद दही-मक्खन, सफेद खीर, सफेद तिल का लड्डू, अक्षत, नारियल आदि का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है. ऋग्वेद में भी मां सरस्वती का वर्णन बहुत सुंदर श्लोक के साथ किया गया है.

'प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु'

अर्थात देवी सरस्वती जी के रूप में परम चेतना, हमारी बुद्ध‍ि, और सभी मनोवृत्त‍ियों का संरक्षण करती हैं. हममें जो आचार और मेधा है उसके मूल में माँ सरस्वती ही हैं, जिनकी समृद्धि‍ और स्वरूप का वैभव अद्भुत है.

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