Basant Panchami 2019: जब मां सरस्वती के आशीर्वाद से प्रकृति दुल्हन की तरह खिल उठती है
हिंदू पंचांग के अनुसार, वसंत पंचमी का त्यौहार माघ माह के पांचवें दिन (पंचमी) पड़ता है. संपूर्ण भारत में वसंत पंचमी का पर्व आज बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस ऋतु की शुरुआत वसंत ऋतु के पहले दिन से होती है.
हिंदू पंचांग के अनुसार, वसंत पंचमी का त्यौहार माघ माह के पांचवें दिन (पंचमी) पड़ता है. संपूर्ण भारत में वसंत पंचमी का पर्व आज बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस ऋतु की शुरुआत वसंत ऋतु के पहले दिन से होती है, जब संपूर्ण भारत में पीले सरसों के लहराते फूलों के पौधे, सर्द मौसम में हलकी गरमी का अहसास, आम के वृक्षों में बौरों का आना, जौ और गेहूं की खिलती बालियां, रंग बिरंगे फूलों की फिजाओं पर भौरों का गूंजन, इठलाती-मंडराती रंग-बिरंगी तितलियां और कोयल की कू कू से सारा जगत गुंजायमान होता है. प्रकृति मानों दुल्हन की तरह सज गयी हो.
इस पावन पर्व पर हिंदू धर्म के अनुयायी ज्ञान और संगीत की देवी सरस्वती की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इस पावन पर्व पर पूरे उत्तर भारत में पीले रंगों का खुमार-सा छाया होता है. स्त्रियां, बच्चे, युवा सभी मानों बासंती रंगों में प्रकृति के इस पर्व में शामिल हो जाते हैं. इस पर्व को धूमधाम से मनाने के लिए स्कूल कॉलेज बंद रहते हैं. यह भी पढ़ें- Basant Panchami 2019: बसंत पंचमी पर इस मंत्र और वंदना गीत से करें ज्ञान की देवी सरस्वती की आराधना, प्राप्त होगी उनकी कृपा
इतिहास
हमारे पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ था. ब्रह्मांड की रचना के बाद जब सर्वत्र मौन छाया हुआ था तब सरस्वती की वीणा से ही संसार को वाणी प्राप्ति हुई. प्रचलित है कि महाकवि कालीदास से लेकर वेद व्यास, तुलसीदास, महर्षि बाल्मिकी तक ने माँ सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही महाभारत, रामायण और रामचरित मानस जैसे महाकाव्यों और पुराणों की रचना रचने में सफल हुए थे.
वसंत पंचमी पर्व के साथ श्रृंगार रस की भी कथा जुड़ी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार तपस्या में लीन शिव जी पर जब कामदेव ने छिपकर तीर चलाया तो शिव जी ने देख लिया. तपस्या भंग होने के कारण क्रोध में आकर उन्होंने तीसरी आंख खोली, जिसकी वजह से कामदेव भस्म हो गये. तब कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति को वापस लाने के लिए शिव जी की चालीस दिनों तक कठिन तपस्या की. अंततः प्रसन्न होकर शिव जी ने कामदेव को जीवित कर दिया.
मान्यता है कि कामदेव को नया जीवन दिलाने के पश्चात रति अपने पति के साथ पृथ्वी पर जब आती हैं, तो वह वसंत पंचमी का ही दिन था. कामदेव मनुष्यों ही नहीं धरती के सभी जीव जंतुओं के हृदय में प्रेम यौन भावनाओं को जगाने का काम करते हैं. संयोग देखिये कि काम भाव मनुष्य पर हावी ना हो जाए इसीलिए देवी सरस्वती मनुष्यों में ज्ञान और विवेक जगाने के लिए प्रकट हुईं थी. इसीलिए इस दिन कामदेव और रति के साथ देवी सरस्वती की पूजा की भी परंपरा है.
सरस्वती का आह्वान और विदाई
अमूमन आज के दिन सूर्योदय के पश्चात अपराह्न में मां सरस्वती की पूजा की जाती है. इसके पश्चात सामूहिक रूप से प्रसाद स्वरूप शाकाहारी भोजन की परंपरा निभाई जाती है. अगले दिन सरस्वती भक्त अश्रुपूरित नेत्रों के साथ माँ सरस्वती की विदाई करते हैं और उनकी प्रतिमा को पवित्र सरोवर अथवा नदी में विसर्जित करते हैं.
ऋतुराज वसंत पंचमी का दिन बहुत शुभ माना जाता है. आज के दिन बिना शुभ मुहुर्त देखे कोई भी नया कार्य, गृह प्रवेश, गृह निर्माण आदि सम्पन्न किये जाते हैं. क्योंकि इस दिन संगीत, ज्ञान, कला और विज्ञान की देवी सरस्वती का आशीर्वाद हर किसी को प्राप्त होता है.