Ahilyabai Holkar Jayanti 2021: जानें अहिल्याबाई होल्कर की गरीब किसान की बेटी से महारानी बनने तक की प्रेरक कथा!
भारतीय इतिहास के पन्नों में अनेक वीरांगनाओं की बहादुरी के किस्से दर्ज हैं, जिन्होंने तमाम संघर्ष एवं मानसिक उत्पीड़न को झेलते हुए फर्श से अर्श तक की ऊंचाई तय की और अपने देश के लिए कुर्बान हो गईं, इन्हीं में एक हैं अहिल्याबाई होल्कर. मराठावंश की अहिल्याबाई को आज उनकी सादगी, शूरवीरता, कुशल नेतृत्व एवं शहादत के लिए याद किया जाता है.
भारतीय इतिहास के पन्नों में अनेक वीरांगनाओं की बहादुरी के किस्से दर्ज हैं, जिन्होंने तमाम संघर्ष एवं मानसिक उत्पीड़न को झेलते हुए फर्श से अर्श तक की ऊंचाई तय की और अपने देश के लिए कुर्बान हो गईं, इन्हीं में एक हैं अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar). मराठावंश की अहिल्याबाई को आज उनकी सादगी, शूरवीरता, कुशल नेतृत्व एवं शहादत के लिए याद किया जाता है. वह उज्जल चरित्रवाली पतिव्रता, ममतामयी मां एवं उदार विचारों वाली महिला थीं. उन्होंने एक स्त्री होकर नारी जाति के उत्थान एवं समस्त पीड़ित मानवता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. आज देश उनकी 286वीं जयंती मना रहा है. आइये जानें इस वीरांगना की जीवन के कुछ प्रेरक किस्से...यह भी पढ़ें: Ahilyabai Holkar Jayanti 2020 Wishes & Images: अहिल्याबाई होल्कर जयंती पर प्रियजनों को भेजें ये प्यारे WhatsApp Stickers, GIF Greetings, Photo SMS, Wallpapers, Quotes और करें इंदौर की इस बहादुर रानी को याद
कृषक परिवार में जन्म एवं शिक्षा
अहिल्याबाई का जन्म वर्ष 1735 में महाराष्ट्र (Maharashtra) के अहमद नगर (AhmedNagar) के करीब ग्राम-पाथडरी में एक सामान्य कृषक पिता मनकोजी सिंधिया (Mankoji Scindia) एवं धर्मनिष्ठ मां के घर में हुआ था. अहिल्या अपने परिवार की इकलौती संतान थीं. यह वह दौर था, जब स्त्री शिक्षा कोई मायने नहीं रखती थी, लेकिन कृषक पिता बाल अहिल्या की मेधावी प्रवृत्ति से परिचित हुए तो उन्होंने उसके लिए शिक्षा की विशेष व्यवस्था करवाई. हांलाकि स्त्री शिक्षा का अभाव होने के कारण अहिल्या आगे नहीं पढ़ सकीं.
कृषक बालिका का ऐसे शुरु हुआ राजयोग
अहिल्या को धर्मनिष्ठा माँ से विरासत में मिली थी. वे रोज गांव के शिव मंदिर में भजन एवं आरती गाती थीं बालिका थीं. उनका विवाह आज की फिल्मी स्टाइल में हुआ था. बताया जाता है कि एक दिन इंदौर (Indore) के महाराजा मल्हार राव (Malhar Rao) पाथडरी गांव(Pathdari Village) के निकट शिव मंदिर के पास रुके हुए थे. एक दिन प्रातःकाल जब मल्हार राव उठे तो मंदिर से अत्यंत सुरीली आवाज में आरती सुनकर भाव-विभोर हो उठे. वे मंदिर आये और सादगी की प्रतिमूर्ति 12 वर्षीय अहिल्या को देख कर मुग्ध हो उठे. उन्हें लगा कि उनके पुत्र राजकुमार खण्डेराव के लिए अहिल्या से बेहतर कोई नहीं हो सकता. पिता मनकोजी सिंधिया से बात करने के पश्चात मल्हार राव के सुपुत्र के साथ अहिल्या का विवाह हो गया और इस तरह एक गांव की सीधी-सादी बालिका इंदौर की महारानी बन गईं. मल्हार राव को अपनी पुत्रवधु की ईमानदारी, सादगी, सेवाभावना और कर्तव्यनिष्ठा के कायल थे. अहिल्या की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने महल में ही उसकी शिक्षा के साथ-साथ राजकाज की विशेष शिक्षा की भी व्यवस्था करवा दी. विवाह पश्चात अहिल्या ने एक पुत्र मालेराव और एक पुत्री मुक्ताबाई को जन्म दिया. यह भी पढ़ें: Rajmata Jijabai Jayanti 2020: राजमाता जीजाबाई की 422वीं जयंती 12 जनवरी को, जानें एक ऐसी वीरांगना की गाथा जिसने हर दुख सहकर शिवाजी को बनाया 'छत्रपति'
विपत्तियों में धैर्य नहीं खोया महारानी ने
एक दिन भरतपुर के जाटों के साथ युद्ध करते हुए खाण्डेराव की मृत्यु हो गई. अहिल्या ने परंपरावश सती होना चाहा, ससुर मल्हार राव ने उन्हें इंदौर की सुरक्षा संभालने का वास्ता देकर उन्हें सती होने से रोक दिया. 29 वर्षीय अहिल्याबाई होल्कर ने बड़े धैर्य और साहस के साथ अपने 17 वर्षीय पुत्र मालेराव को सिंहासन पर बिठाकर राजपाट की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. इसी दरम्यान ससुर मल्हार राव की भी मृत्यु हो गयी. इंदौर में एक कुशल प्रशासक के रूप में मल्हार राव की खास छवि थी. इसे देखते हुए अहिल्याबाई होल्कर ने मल्हार राव के नाम से तमाम विधवा, अनाथ एवं विकलांगों के लिए आश्रम बनवाये, उनके नाम घाट, मंदिर, तालाब, बावड़ियां, धर्मशालाएं एवं गरीबों के लिए मुफ्त भोजनालय शुरु करवाये.
भगवान शिव की अनन्य भक्त
अहिल्याबाई होलकर ने साल 1777 में काशी (वाराणसी) में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया. मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े मंदिरों के परिणामस्वरूप सोमनाथ में शिव मंदिर बनवाया, जहां आज भी शिव भक्तों की भीड़ लगती है. कहा जाता है कि शिव-पूजा के बिना मुंह में पानी की एक बूंद भी नहीं लेती थी. भगवान शिव के प्रति उनकी अनन्य भक्ति ही था कि वे राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नहीं केवल श्री शंकर लिखती थी. उनके रुपयों पर शिवलिंग और बिल्व पत्र का चित्र ओर पैसों पर नंदी का चित्र अंकित होता था.
आघात-दर-आघात
इंदौर की महारानी होकर भी अहिल्याबाई जीवन में कभी शांति एवं सुकून की जिंदगी नहीं जी सकीं. उनका पुत्र मालेराव अपने क्रूर, विलासी, स्वार्थी एवं जनता को पीड़ित करने के लिए पूरे इंदौर में जाना जाता था. इस बात से वे बहुत दुखी थीं, लेकिन एक दिन मालेराव की भी मृत्यु हो गई. इससे पहले कि वे पुत्र वियोग की पीड़ा झेल पातीं, पुत्री मुक्ताबाई के पति यशंवत राव (Yashwant Rao) की मृत्यु हो गई. इतनी कम उम्र में पति वियोग नहीं सह पाने के कारण पुत्री मुक्ताबाई ने भी आत्मदाह कर लिया. परिवार के एक-एक कर होते सदस्यों की मृत्यु से व्यथित अहिल्याबाई अकसर टूट जाती थीं, लेकिन वह इंदौर से मल्हार राज का प्रभुत्व किसी भी कीमत पर छिनने नहीं देना चाहती थीं. क्योंकि उनके अपने ही हर पल विश्वासघात कर इंदौर पर कब्जा करने की हर कोशिश करते थे. अहिल्याबाई जब तक जीवित थीं, इंदौर के विकास के लिए तमाम कार्य करती रहीं, जिसकी निशानियां आज भी मौजूद हैं. अंततः 72 वर्ष की आयु में 13 अगस्त 1795 को उनकी मृत्यु हो गई.