Eid Milad Un Nabi 2020 Date: जानें कब है ईद मिलाद उन-नबी, इस दिन का क्या है महत्व? जानें पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवन के अनछुए पहलुओं को
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मुबारक (Photo Credits: File Image)

Eid Milad Un Nabi 2020 Date: मुस्लिमों के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन पर सारी दुनिया में ईद-ए-मिलाद का त्यौहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है.  ईद मिलाद उन-नबी को ही ईद-ए-मिलाद भी कहते हैं. अरबी भाषा में इसका शाब्दिक अर्थ 'जन्म' और 'मीलाद-उन-नबी' का मतलब है 'हजरत मुहम्मद साहब का जन्मदिन' है. मान्यता है कि मो. पैगंबर को स्वयं अल्लाह ने फरिश्ते जिब्रईल के द्वारा कुरान का संदेश दिया था. मुस्लिम धर्म के लोग मोहम्मद साहब के प्रति बहुत आदर-सम्मान एवं श्रद्दा के भाव रखते हैं. ईद मिलाद उन-नबी मुसलमानों का बहुत बड़ा एवं प्रिय त्योहार है. इस्लामी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष ईद मिलाद उन-नबी 29 या 30 अक्टूबर को मनाया जायेगा. आइये जानें इस पर्व को किस तरह से मनाते हैं और पैगंबर मोहम्मद के प्रति विशेष श्रद्धा और आस्था रखने के पीछे क्या कारण है.

 इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार 571 ई में इस्लाम के तीसरे महीने यानी रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख को पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ था. हैरानी की बात यह है कि इसी रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन ही पैगम्बर मुहम्मद साहब का इंतकाल भी हो गया था. पैगंबर हजरत मोहम्मद (स.अ) का पूरा नाम मो. इब्न अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल मुत्तलिब था. इनका जन्म मक्का में हुआ था. पिता का नाम अब्दुल्लाह और मां बीबी अमिना थीं. 610 ईं. में मक्का स्थित हीरा नामक एक गुफा में इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. ज्ञान प्राप्ति के पश्चात पैगंबर मोहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म की पवित्र कुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया था. शिया-सुन्नी और ईद-ए-मिलादः 'एक के लिए खुशी दूसरे के लिए गम क्यों' मुस्लिम समाज के दो बड़े घटक सुन्नी और शिया हैं. सुन्नी समाज ईद-ए-मिलाद का पर्व रबी के 12वें दिन मनाते हैं. जबकि शिया समाज के लोग इस त्यौहार को रबी के 17वें दिन सेलीब्रेट करते हैं. यह भी पढ़े: Rabi ul Awwal 1442 Moon Sighting: ईद-ए-मिलाद-उन-नबी भारत, पाकिस्तान, सऊदी अरब और UAE में कब है, यहां करें तारीख चेक
शिया समाज इस त्यौहार को पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म की खुशी में इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाता है, वहीं सुन्नी समाज के अधिकांश मुसलमान मानते हैं कि इस दिन पैगंबर साहब का इंतकाल हुआ था, इस वजह से इस दिन को वे गम के रूप में लेते हैं और पूरे महीना गम मनाते हैं. गौरतलब है कि हजरत पैगंबर मोहम्मद अल्लाह के आखिरी नबी और सबसे अफजल नबी हैं, जिन्हें स्वयं अल्लाह ने फरिश्ते जिब्रईल द्वारा कुरान का संदेश दिया था. कैसे करते हैं सेलीब्रेट ईद मिलाद उन-नबी पर ईद मिलाद उन-नबी के रोज पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के प्रतीकात्मक पैरों के निशान पर जाकर प्रार्थना-दुआ की जाती है. इस पर्व के दिन मुसलमान जुलुस निकालते हैं और पूरी रात जागकर प्रार्थनाएं करते हैं. इस रात पैगंबर हजरत साहब के उपदेशों को पढा और उसे जिंदगी में उतारने के लिए कहा जाता है. दुनिया भर के मुसलमान मक्का मदीना और और पैगंबर साहब के अन्य दरगाहों पर जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन जो भी नबी को ध्यान करके सारे नियमों को मानता और निभाता है, उसे अल्लाह का ढेर सारा प्यार प्राप्त होता है. अल्लाह उसे अपनी जमात में शामिल कर लेता है, उस पर अल्लाह की विशेष करम और रहमत बरसती है. 'द फर्स्ट मुस्लिम' और हजरत पैगंबर मोहम्मद साहब. यह भी पढ़े: Rabi ul Awal 2020 Mubarak Wishes: ईद मिलाद-उन-नबी के शुभ अवसर पर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को WhatsApp, Facebook, Gif’s के जरिए ये टेक्स्ट मैसेजेस भेजकर दें मुबारकबाद
पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवन पर लेस्ली हेजलटन ने एक पुस्तक 'द फर्स्ट मुस्लिम' लिखी थी. इस पुस्तक में पैगंबर मोहम्मद साहब के बारे में काफी कुछ लिखा है. उसी पुस्तक के अनुसार हजरत मोहम्मद पैगंबर के पिता का इंतकाल उनके जन्म से पहले हो गया था.  पहले पांच साल तक उनका पालन-पोषण बेदू जनजाति के लोगों ने किया था. जब वे मक्का आये तो उनकी मां का भी इंतकाल हो गया. इस समय उनकी उम्र छह साल की थी. दमस्क में वह ऊंटों की देखभाल का काम कर अपनी आजीविका चलाते थे. उनकी शादी को लेकर विभिन्न मत हैं. पुस्तक के अनुसार हजरत मोहम्मद ने 40 साल की एक विधवा खदीजा से शादी की, उस समय वे मात्र 25 वर्ष के थे. कुछ विद्वानों के अनुसार खदीजा एक अमीर विधवा थीं, यद्यपि शुरुआती साक्ष्य बताते हैं कि आपसी प्रेम और सम्मान के चलते यह शादी हुई थी. बाद में उन्होंने नौ शादियां सामाजिक संदेश देने के लिए की थीं. यह भी पढ़े: Rabi Ul Awwal 2020: रबी उल अव्वल का नहीं दिखा चांद, 30 अक्टूबर को भारत, पाकिस्तान, और बांग्लादेश में मनाया जायेगा ईद-ए-मिलाद-उन-नबी
पैगंबर बनने के समय उनके मन में दुविधा के साथ दुख भी था. कुरान के बाहर आने के वक्त वे सहमें हुए थे. उनका कहना था कि यह दर्द इतना ज्यादा कि मुझे लग रहा है कि, मैं मर रहा हूं. उनके मन में यह संशय भी उत्पन्न हुआ था कि क्या मैं पैगंबर बनने लायक हूं! मोहम्मद साहब के उपदेशों से प्रेरणा पाकर लोगों ने मक्का के अमीरों के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार और घमंड को चुनौती देनी शुरू कर दी. उन दिनों मक्का एक समृद्ध शहर था. हजरत मोहम्मद ने अमीरों के बारे में कुछ ऐसी बातें जनता को बताई कि जनता अमीरों के खिलाफ हो उठी. जिससे अमीर भड़क गए. हजरत मोहम्मद उनमें सुधार चाहते थे लेकिन अमीरों ने इसे उनके खिलाफ भड़की एक चिंगारी के तौर पर लिया. मक्का में उन पर और उनके समर्थकों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ उन्होंने पहले 12 सालों तक बड़ी शांतिपूर्ण तरीकों से विरोध किया. लेकिन उन पर और उनके समर्थकों पर अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहे थे. साल 622 में विरोध इस कदर बढ़ा कि उन्हें मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा. जीवन के आखिरी पलों में वह बुरी तरह बीमार थे, और अपना उत्तराधिकारी घोषित किए चल बसे.
हजरत मोहम्मद के ज्ञान और शिक्षा के उपदेश
* हजरत मोहम्मद ने अपने संदेश में कहा है कि बेहतरीन इंसान वही है, जिसमें मानवता के प्रति भलाई और नेक विचार होते हैं.
* जो ज्ञान का आदर करता है, वही मेरा आदर करता है.
* ज्ञानी अगर अज्ञानियों के बीच रहता है तो यह ठीक वैसा ही होगा, जैसे मुर्दों के बीच जिंदा इंसान भटक रहा हो.
* ह. मोहम्मद (स.अ) का कहना था कि भूखे व्यक्ति को खाना दो, बीमार की देखभाल करो.
* अगर कोई गलत तरीके से कैद किया गया हो तो मुक्त कराओ. निर्दोष को सजा नहीं दिया जा सकता है.
* भूख और गरीब तथा दूसरे संकट से जूझ रहे व्यक्ति की मदद करो, फिर वह चाहे मुसलमान हो या किसी अन्य धर्म का.