Dandi March: नमक कानून तोड़कर गांधीजी ने किया था ब्रिटिश हुकूमत के दांत खट्टे! जानें नमक पर लगे काले कानून की कहानी!

ब्रिटिश हुकूमत की लोकशाही के तहत कई बार उनके बनाये ऊलजलूल कानून के विरोध में गांधीजी को विभिन्न आंदोलनों का सहारा लेना पड़ा. ऐसा ही एक आंदोलन था नमक-मार्च, या दांडी-मार्च के नाम से भी जाना जाता है. नमक सत्याग्रह के पीछे ब्रिटिश हुकूमत की मनमर्जी से बना नमक कानून था, जिसके कारण जनता को नमक खरीदने के लिए भारी कर चुकाना पड़ता था.

Mahatma Gandhi (Photo: Wikimedia Commons)

ब्रिटिश हुकूमत की लोकशाही के तहत कई बार उनके बनाये ऊलजलूल कानून के विरोध में गांधीजी को विभिन्न आंदोलनों का सहारा लेना पड़ा. ऐसा ही एक आंदोलन था नमक-मार्च, या दांडी-मार्च के नाम से भी जाना जाता है. नमक सत्याग्रह के पीछे ब्रिटिश हुकूमत की मनमर्जी से बना नमक कानून था, जिसके कारण जनता को नमक खरीदने के लिए भारी कर चुकाना पड़ता था. मार्च-अप्रैल में नमक पर लगे काले कानून के खिलाफ महात्मा गांधी ने अहिंसक सविनय अवज्ञा का अभियान शुरू किया. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में नमक-आंदोलन को बहुत महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है. इस वर्ष नमक-कानून की 93 वीं वर्षगांठ पर जानें इस संदर्भ में विस्तार से.

नमक आंदोलन क्या और क्यों?

अँग्रेजी हुकूमत ने भारतीयों पर चाय, कपड़ा एवं नमक जैसी दैनिक जरूरतों पर एकाधिकार स्थापित कर लिया था. नमक पर उनकी तानाशाही ऐसी थी कि भारत में कोई नमक नहीं बना सकता ना ही संग्रह कर सकता था. नमक का आयात इंग्लैंड से होता था, जिसके लिए भारतीय उपभोक्ताओं को कई गुना ज्यादा कीमत अदा करनी पड़ती थी. गरीब भारतीयों के लिए इतना महंगा नमक खरीदना आसान नहीं होता था. अंततः 19वीं शताब्दी के आसपास नमक ‘कर’ के खिलाफ गांधीजी द्वारा विरोध शुरू हुआ, और देखते ही देखते यह बहुत बड़ा मुद्दा बन गया. यहां रोचक बात यह हुई कि नमक-आंदोलन से सविनय अवज्ञा आंदोलन का जन्म हुआ, जो आगे चलकर गांधी जी का बड़ा शस्त्र बना. यह भी पढ़ें : Savitribai Phule Death Anniversary: महिला शिक्षा की अग्रदूत सावित्रीबाई फुले का जीवन था मार्गदर्शन, जानें उनसे जुडी बड़ी बातें

शुरू हुई नमक-कानून तोड़ो यात्रा!

अंग्रेजों की प्रताड़ना जब चरम पर बढ़ी, तब 1930 में गांधीजी ने नमक-कानून के खिलाफ आंदोलन छेड़ने का फैसला किया. इस आंदोलन को गुजरात के पश्चिम छोर साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) से शुरू कर सूरत स्थित दांडी (अरब सागर तट) पर खत्म करना था. महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को 80 अनुयायियों के साथ पैदल यात्रा शुरू की. इस यात्रा के दरमियान गांधीजी जहां रुके, वहां से भारी संख्या में भीड़ उनके आंदोलन का हिस्सा बनती गई. लगभग 385 किमी की यात्रा 5 अप्रैल को गंतव्य स्थान पर पहुंची, तब तक 50 हजार लोग इससे जुड़ चुके थे. 6 अप्रैल की सुबह 06.30 बजे गांधीजी एवं उनके अनुयायियों ने नमक बनाकर नमक पर लगे काले कानून को तोड़ा.

60 हजार लोग गिरफ्तार किये गये!

भारी जन समर्थन को देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ्तारी नहीं की. गांधीजी ने 2 माह तक अपना सत्याग्रह जारी रखा. नमक-कानून तोड़ने वालों का दायरा बढ़ता गया, तब हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इसमें अप्रैल में नेहरू और मई में गांधीजी को नजरबंद कर दिया गया. गांधीजी की नजरबंदी की खबर जंगल में आग की तरह फैली. 21 मई को सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में योजनाबद्ध तरीके से इस अभियान को आगे बढ़ाया, उनके साथ 2500 आंदोलनकारियों पर पुलिस ने उन पर लाठी से हमला किया, साल पूरा होते-होते नमक-कानून तोड़ने के आरोप में करीब 60 हजार लोगों को जेल भेजा गया.

गांधी-इरविन समझौता!

साल 1931 में गांधीजी को हिरासत से रिहा किया गया और सत्याग्रह अभियान को विराम देने के लिए लॉर्ड इरविन के साथ मीटिंग के लिए आमंत्रित किया गया. गांधी-इरविन की मीटिंग में समझौते को औपचारिक रूप दिया गया, और इस पर 5 मार्च 1931 को लिखित समझौते पर दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षर किये जाने के बाद आंदोलन को समाप्त किया गया.

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