इस गांव में 40 साल की उम्र से पहले ही बुढ़ापे के शिकार हो रहे हैं लोग, जवानी में लाठी लेकर चलने को हुए मजबूर

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 60 किमी दूर भोपालपटनम में एक ऐसा गांव है, जहां पर युवा 25 वर्ष की आयु में ही लाठी लेकर चलने को मजबूर हो जाते हैं और 40 साल के पड़ाव में प्रकृति के नियम के विपरित बुढ़े होने लग जाते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

बीजापुर: 'रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून..' रहीम की ये पंक्ति पानी की महत्ता को दर्शा रही है, जिसका अर्थ है अगर पानी नहीं रहेगा तो कुछ भी नहीं रहेगा, लेकिन जब जीवन देने वाला जल अमृत के बजाय जहर बन जाए तो यह मौत का कारण बन सकता है. यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर जिला (Bijapur District)  मुख्यालय से तकरीबन 60 किमी दूर भोपालपटनम में एक ऐसा गांव (Village) है, जहां पर युवा 25 वर्ष की आयु में ही लाठी लेकर चलने को मजबूर हो जाते हैं और 40 साल के पड़ाव में प्रकृति के नियम के विपरित बुढ़े(Old)  होने लग जाते हैं.

यहां 40 फीसदी लोग उम्र से पहले ही या तो लाठी के सहारे चलने लगते हैं या तो बुढ़े हो जाते हैं. इसकी वजह कोई शारीरिक दोष नहीं, बल्कि यहां के भूगर्भ में ठहरा पानी (Water) है जो इनके लिए अमृत नहीं, बल्कि जहर साबित हो रहा है. यहां के हैंडपंपों और कुओं से निकलने वाले पानी में फ्लोराइड (Fluoride) की मात्रा अधिक होने के कारण पूरा का पूरा गांव समय से पहले ही अपंगता के साथ-साथ लगातार मौत की ओर बढ़ रहा है.

जहरीला पानी बना असमय बुढ़ापे की वजह 

शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं होने के कारण मजबूरन आज भी यहां के लोग फलोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं, बावजूद इसके शासन-प्रशासन मौत की ओर बढ़ रहे इस गांव और ग्रामीणों की ना तो सुध ले रहा है ना ही इस खतरनाक हालात से बचने के लिए कोई कार्ययोजना तैयार करता नजर आ रहा है, जबकि इस गांव में आठ वर्ष के उम्र से लेकर 40 वर्ष तक का हर तीसरे व्यक्ति में कुबड़पन, दांतों में सड़न, पीलापन और बुढ़ापा नजर आता है.

प्रशासन ने यहां तक सड़क तो बना दी, पर विडंबना तो देखिए कि सड़क बनाने वाले प्रशासन की नजर इन पीड़ितों पर अब तक नहीं पड़ पाई. यहां के सेवानिवृत्त शिक्षक तामड़ी नागैया, जनप्रतिनिधि नीलम गणपत और फलोराइड युक्त पानी से पीड़ित तामड़ी गोपाल का कहना है कि गांव में पांच नलकूप और चार कुएं हैं, इनमें से सभी नलकूपों और कुओं में फलोराइड युक्त पानी निकलता है. लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने सभी नलकूपों को सील कर दिया था, लेकिन गांव के लोग अब भी दो नलकूपों का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह भी पढ़ें: सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से लड़कियों में बढ़ा डिप्रेशन का खतरा

उनका कहना है कि हर व्यक्ति शहर से खरीदकर पानी नहीं ला सकता है, इसलिए पीने के लिए इसी पानी का इस्तेमाल किया जाता है. यही नहीं, बल्कि गर्मी के दिनों में कुछ लोग तीन किमी दूर इंद्रावती नदी से पानी लाकर उबालकर पीते हैं.

30 सालों से अशुद्ध पानी पीने को मजबूर हैं लोग

इनमें से तामड़ी नागैया का कहना है कि यह समस्या पिछले तीस सालों से ज्यादा बढ़ी है, क्योंकि तीस साल पहले तक यहां के लोग कुएं का पानी पीने के लिए उपयोग किया करते थे, मगर जब से नलकूपों का खनन किया गया तब से यह समस्या विराट रूप लेने लगा और अब स्थिति ऐसी है कि गांव की 40 फीसदी आबादी 25 वर्ष की उम्र में लाठी के सहारे चलने से कुबड़पन को ढोने और 40 वर्ष की अवस्था में ही बुढ़े होकर जीवन जीने को मजबूर है. यहां पर लगभग 60 फीसदी लोगों के दांत पीले होकर सड़ने लगे हैं.

बताया जा रहा है कि यह पूरा गांव भू गर्भ में स्थित चट्टान पर बसा हुआ है और यही वजह है कि पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक है और इस भू गर्भ से निकलने वाला पानी यहां के ग्रामीणों के लिए जहर बना हुआ है.

जानकार बताते हैं कि वन पार्ट पर मिलियन यानि पीपीएम तक फलोराइड की मौजूदगी इस्तेमाल करने लायक है, जबकि पीपीएम को मार्जिनल सेप माना गया है. डेढ़ पीएम से अधिक फलोराइड की मौजूदगी को खतरनाक माना गया है और गेर्रागुड़ा में डेढ़ से दो पीपीएम तक इसकी मौजूदगी का पता चला है और लोगों पर इसका खतरनाक असर साफ नजर आ रहा है. यह भी पढ़ें: चावल खाने वाले हो जाएं सावधान, इससे आपकी सेहत को हो सकते हैं ये बड़े नुकसान

प्रशासन भी नहीं ले रहा है इन लोगों की सुध

इस समस्या से निजात पाने के लिए एक साल पहले पीएचई विभाग ने इस गांव में एक ओवरहेड टैंक का निर्माण कर गांव के हर मकान तक पाइप लाइन विस्तार के साथ नल कनेक्शन भी दे रखा है, मगर प्रशासन की लापरवाही के चलते आज र्पयत तक पाइप लाइन के सहारे घरों में मौजूद नल कनेक्शनों में शुद्ध पेयजल की सप्लाई करने में प्रशासन और विभाग असफल रहा है.

परिणामस्वरूप गांव के संपन्न लोग किसी तरह भोपालपटनम स्थित वाटर प्लांट से शुद्ध पेयजल खरीदकर पीने में उपयोग तो कर लेते हैं, मगर गरीब तबके के लोग अब भी फलोराइड युक्त पानी पीकर जवानी में ही बुढ़ापे को समय से पहले पाने को मजबूर हैं.

इस मामले में सीएमएचओ डॉ. बी.आर. पुजारी का कहना है कि ग्रामीणों की शिकायत के बाद गांव में कैम्प लगाकर लोगों का इलाज किया गया था और कुछ लोगों को बीजापुर भी बुलाया गया था. चूंकि इस गांव के पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण हड्डियों में टेड़ापन, कुबड़पन और दांतों में पीलेपन के साथ सड़न की समस्या आती है, जिसका इलाज सिर्फ शुद्ध पेयजल से ही हो पाएगा. शिकायत के बाद गांव के अधिकांश हैंडपंपों को सील करवा दिया गया था. यह भी पढ़ें: मैगी खाना सेहत के लिए है बेहद खतरनाक, क्या आपको पता है इसके ये साइड इफेक्ट्स?

फलोराइड समस्या के निदान के लिए पीएचई की ओर से निर्मित वाटर ओवरहेड टैंक से पेयजल आपूर्ति ना होने की बात पर कार्यपालन अभियंता जगदीश कुमार का कहना है कि विभाग की ओर से टैंक के निर्माण बाद पंचायत को हैंडओवर किया जा चुका है. पेयजल आपूर्ति शुरू करने की जिम्मेदारी अब पंचायत की है, फिर भी अगर पानी की सप्लाई नहीं की जा रही है तो विभाग इसे अवश्य संज्ञान में लेगा.

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