Babasaheb Ambedkar Punyatithi 2021: दलितों के ही नहीं, महिलाओं के भी मसीहा थे, डॉ. अंबेडकर! जानें उनके बनाएं महिलाओं के कानूनी अधिकार?
भारतीय संविधान के निर्माता एवं रचयिता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की आज 6 दसंबर 2021 को देश ही नहींबल्कि दुनिया भर में 65वीं पुण्यतिथि नाई जा रही है. सर्वविदित है कि स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत से खुला विद्रोह छेड़ने से काफी पहले से वह समाज के दबेकुचलों के हितों के लिए आवाज उठाते रहे थे...
Babasaheb Ambedkar Punyatithi 2021: भारतीय संविधान के निर्माता एवं रचयिता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की आज 6 दसंबर 2021 को देश ही नहींबल्कि दुनिया भर में 65वीं पुण्यतिथि नाई जा रही है. सर्वविदित है कि स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत से खुला विद्रोह छेड़ने से काफी पहले से वह समाज के दबेकुचलों के हितों के लिए आवाज उठाते रहे थे. लेकिन यह बात कम लोगों को पता होगी कि बाबा साहेब ने महिला हितों की रक्षा के लिए भी निरंतर संघर्ष किया और आजाद भारत के पहले कानून मंत्री बनने के बाद उन्होंने इस दिशा में काफी प्रशंसनीय कार्य किया. आइये आज बाबा साहेब के महिला कल्याण संबंधी एक्विटी पर बात करेंगे. यह भी पढ़ें: Mahaparinirvan Diwas Messages 2021: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की पुण्यतिथि पर ये हिंदी मैसेजेस HD Images और GIF के जरिए भेजकर करें उन्हें याद
बाबा साहेब की महिला कल्याण संबंधी गतिविधियां
जिन दिनों बाबा साहेब दलितों के दलित को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संघर्षरत थे, उन दिनों समाज में महिला उत्पीड़न और महिला शिक्षा, विधवा उत्पीर्णन जैसी समस्याएं चरम पर थीं. बाबा साहेब ने महिला वर्ग के सामाजिक समानता के लिए खूब लड़ाई लड़े. शुरुआत में वह अपने लेखों के माध्यम से महिलाओं की समस्याओं को पुरज़ोर तरीके से उठाते रहे. रीडल आफ वुमेन, नारी एवं प्रतिक्रांति, हिन्दू नारी का उत्थान एवं पतन जैसे तमाम लेख उन्होंने लिखे. बतौर कानून मंत्री बाबा साहेब ने महिलाहित के संदर्भ में सर्वाधिक चर्चित हिंदू कोड बिल की मांग की. उनका कहना था कि वह किसी भी समाज का विकास उस समाज की महिलाओं की तरक्की से जोड़कर देखते हैं.
बाबा साहेब ने मनु स्मृति की प्रतियां क्यों जलाई थी?
बाबा साहेब ने पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को सामान अधिकार दिलाने के लिए सालों मशक्कत की, जिसकी वजह से काफी हद तक वे सशक्त बन सकीं. आज भारतीय समाज में महिलाओं को जो अधिकार प्राप्त हैं, उसका श्रेय बाबा साहब अंबेडकर को ही जाता है. वह बाबा साहब ही थें, जिन्होंने महिला कल्याण हेतु मनु स्मृति को जलाने का साहस किया. उनका कहना था कि मनुस्मृति ने सिर्फ जाति-प्रथा एवं ऊंच नीच को ही बढ़ावा नहीं दिया, बल्कि पुरुष प्रधान समाज की स्तुति गान की गई. धर्म हमेशा से महिलाओं के विकास में बाधा उत्पन्न करता रहा है. पुरुष प्रधान समाज उस पर अत्याचार एवं उसका शोषण कर रहा है. बतौर कानून मंत्री बाबा साहेब ने महिलाओं के विकास एवं उनके अधिकारों को दिलाने के लिए साल 1951 में हिंदू कोड बिल संसद में पेश किया.
क्या है हिंदू कोड बिल?
बाबा साहब डॉ. भीमराव आबंडेकर भारत की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए, महिला शिक्षा पर जोर देते थे. वे नारी शक्ति, संघर्ष, साहस, त्याग और बलिदान से भलीभांति परिचित थे. उनका मानना था कि यदि महिलाएं संगठित हो जाएं, तो समाज को सही दिशा देने में अपना अहम योगदान दे सकती हैं. आंबेडकर का वृहद चिंतन, संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिलाने के साथ
साथ महिलाओं की बराबरी के अधिकारों की वकालत भी करता है, जिसके लिए उन्होंने सन् 1951 में संसद में 'हिंदू कोड बिल', पेश किया.
* आजादी से पूर्व तलाक देने का अधिकार केवल पुरुषों के पास था. हिंदू कोड बिल में स्त्रियों को भी तलाक का अधिकार देने की संस्तुति की गई.
* हिंदू कानून के तहत विवाहित व्यक्ति के एक से अधिक पत्नी अर्थात पुरुषों के बहुविवाह पर प्रतिबंध की बात कही गई.
* अविवाहित कन्याओं एवं विधवाओं को बिना-शर्त पिता या पति के सम्पति का उत्तराधिकारी बनने का अधिकार.
* महिलाओं को भी अंतर्जातीय विवाह का अधिकार प्राप्त हो.
बाबा साहब का यह हिंदू कोड बिल, महिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक सुधार करके, उन्हें तरक्की और कामयाबी से जोड़ता था, लेकिन कुछ लोगों के विरोध स्वरूप हिंदू कोड बिल संसद में पूरी तरह पास
नहीं हो सका, इस वजह से वे बहुत दुखी थे. उनका मानना था कि स से भी ज्यादा खुशी उन्हें हिंदू कोड बिल पास हो जाने से होती.