Ayodhya: क्या है और क्यों होती है प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा? जानें किन-किन विधियों से की जाती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा?
इन दिनों श्री राम जन्मभूमि में रामलला की प्रतिमा की स्थापना एवं प्राण प्रतिष्ठा की चर्चा गरम है. प्रतिमा की पूजा से पूर्व प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा विभिन्न अनुष्ठानों के जरिये पूरी की जाती है. हिंदू एवं जैन धर्म में प्रतिमा की पूजा से पूर्व किसी योग्य पुरोहित के दिशा निर्देश पर प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया शुरू की जाती है.
इन दिनों श्री राम जन्मभूमि में रामलला की प्रतिमा की स्थापना एवं प्राण प्रतिष्ठा की चर्चा गरम है. प्रतिमा की पूजा से पूर्व प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा विभिन्न अनुष्ठानों के जरिये पूरी की जाती है. हिंदू एवं जैन धर्म में प्रतिमा की पूजा से पूर्व किसी योग्य पुरोहित के दिशा निर्देश पर प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया शुरू की जाती है. इस प्रक्रिया में मूर्ति को दैविक रूप प्राप्त होता है, कहने का आशय यह कि प्रतिमा में अमुक देवी या देवता सजीव हो जाते हैं. इसके लिए मूर्ति को विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरना होता है. ये चरण मंदिर अथवा घर की पूजा में विभिन्न प्रकार से होते हैं. आइये जानते हैं कि पं. संजय शुक्ला इस संदर्भ में क्या कहते हैं...
प्रतिमा के साथ प्रभात फेरी
किसी बड़े अनुष्ठान के अनुसार सर्वप्रथम अमुक देवी-देवता की प्रतिमा की शोभा यात्रा निकाली जाती है. यह शोभायात्रा प्रातःकाल शुरू की जानी चाहिए. मान्यता है कि इस शोभायात्रा में दर्शक जितने दिल से जयकारे लगाते हैं, भक्ति के वे भाव प्रतिमा में समाहित होते जाते हैं. इसी उद्देश्य के साथ प्रभात फेरी भजन-कीर्तन के साथ ज्यादा से ज्यादा भक्तों के बीच ले जाते हैं. इस दरमियान मूर्ति परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए. इसके बाद प्रतिमा को मंदिर अथवा गर्भ-गृह में लाते हैं. यह भी पढ़ें : Kaanum Pongal 2024 Greetings: कानुम पोंगल की इन मनमोहक WhatsApp Wishes, GIF Images, HD Wallpapers और Photo SMS के जरिए दें शुभकामनाएं
अनुष्ठान स्नान
प्रभात फेरी से वापस आने के पश्चात प्रतिमा को उतारकर मंदिर में आनुष्ठानिक स्नान कराया जाता है. इसके पश्चात करीब 108 सामग्रियों से प्रतिमा का अभिषेक कराया जाता है. इसमें मुख्य रूप से पंचामृत, गुलाब जल, गंगाजल, दूध, सात पवित्र नदियों का जल, सुगंधित फूलों की गंध वाला खुशबूदार जल, इत्र, रोली, चंदन, गन्ने के रस आदि सम्मिलित हैं. अगर शिवजी की प्रतिमा है, तो बेल, धतूरा, सफेद पुष्प, भांग, भस्म, सफेद चंदन भी सम्मिलित करते हैं.
किन-किन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हो सकती है
पंडित संजय शुक्ला के अनुसार जो मूर्तियां घर के मंदिर में स्थापित होती हैं, जिनका किन्हीं वजहों से स्थान परिवर्तन संभव है, अथवा वे मूर्तियां जिन्हें सार्वजनिक मंदिर में स्थिर रूप से स्थापित करना है, सनातन धर्म में इन दोनों ही मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा किये जाने का प्रावधान है. लेकिन मूर्ति किसी भी रूप में खंडित, जुडी हुई अथवा गलत तरीके से बनी है, तो ऐसी मूर्तियों का में प्राण प्रतिष्ठा दोष पूर्ण ही नहीं, बल्कि विपत्ति को बुलावा देने वाला साबित हो सकता है.
चक्षुओं का खुलना
प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया में चक्षुओं को खोलने की प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण होती है. यह प्रक्रिया प्रतिमा का अभिषेक करने के पश्चात होता है. इस प्रक्रिया के तहत विभिन्न देवी-देवता के आह्वान का मंत्र पढ़कर उन्हें आमंत्रित किया जाता है. इसके तहत विभिन्न देवी-देवता को आने और प्रतिमा के विभिन्न अंगों में चेतना के मंत्र उच्चारण किया जाता है. जैसे प्रतिमा की आंखों के लिए सूर्य को, कानों की चेतना के लिए वायु को, मन की चेतना के लिए चंद्रमा को आमंत्रित किया जाता है. इसके पश्चात प्रतिमा की आंखों को खोलने की प्रक्रिया की जाती है, उपयुक्त मंत्रों के साथ प्रतिमा की आंखों के चारों ओर सोने की सुई से पवित्र काजल लगाया जाता है. पुरोहित इस प्रक्रिया को करते समय स्वयं तो पीछे होते हैं, सारे भक्तों को भी सामने आने से रोकते हैं. क्योंकि आंखों के खुलने की स्थिति में दिव्य चमक उत्पन्न हो सकता है, जिसे आम आँखों से नहीं देखना चाहिए. यहां प्रयोग किया जाने वाला काजल बाजार का नहीं होता है, यह काजल विशेष रूप से ककुद पर्वत के काले पत्थरों को पीस कर बनाया जाता है. इस प्रकार देवी अथवा देवता को जागृत कर प्राण प्रतिष्ठा की रस्म पूरी की जाती है