स्वप्न नगरी मुंबई आने वाले की पहली इच्छा यही रहती है कि वह कभी एशिया की सबसे बड़ी इमारत कही जाने वाली मुंबई की आन-बान-शान का प्रतीक छत्रपति शिवाजी टर्मिनस को करीब से देखे, उसे स्पर्श करे, उसके साथ सेल्फी ले. इस इमारत की भव्यता तो जगजाहिर है, लेकिन कम लोग जानते होंगे कि यह इमारत तीन देशों (भारत, ब्रिटेन, इटली) की सांस्कृतिक विरासत की प्रतिमूर्ति सी दिखती है. करीब 20 साल पूर्व यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया. इस रेलवे स्टेशन को जनता के लिए करीब 136 साल पूर्व 20 जून 1888 में खोला गया था. इसके निर्माण में करीब दस साल लगे थे. उस समय इसका नाम महारानी विक्टोरिया के नाम पर विक्टोरिया टर्मिनस रखा गया था. आज इस भव्य एवं ऐतिहासिक इमारत की 146 वीं वर्षगांठ के अवसर पर आइये जानते हैं, विक्टोरिया टर्मिनस, जो आज छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के नाम से मशहूर इस इमारत के बारे में कुछ सुनी कुछ अनसुनी बातें
तब निर्माण में लगे थे 16 लाख रुपए
विश्व के सबसे खूबसूरत टर्मिनस में शामिल विक्टोरिया टर्मिनस का डिजाइन ब्रिटिश वास्तुकार एफ डब्ल्यू स्टीवंस ने तैयार किया था. यह पूरी इमारत लगभग 2.85 हेक्टेयर क्षेत्र में बनी है. इसका निर्माण 20 जून 1878 को शुरू हुआ था, और पूरे दस साल बाद 20 जून 1888 इसे जनता के लिए खोला गया. प्राप्त सूत्रों के अनुसार इस इमारत के निर्माण में करीब 16 लाख, 13 हजार 863 रूपये (2 लाख 60 हजार स्टर्लिंग पाउंड) खर्च हुए थे, उस समय की यह सबसे महंगी इमारत मानी जाती थी, साथ ही सबसे खूबसूरत भी. यह भी पढ़ें : Vat Savitri Vrat 2024: कब है साल का दूसरा वट सावित्री व्रत? जानें इसका महात्म्य, तिथि, पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा
देश की पहली ट्रेन.
16 अप्रैल 1853 में बोरीबंदर (बॉम्बे) से ठाणे (करीब 34 किमी) के बीच पहली ट्रेन दोपहर 03.35 बजे चली थी, जो करीब 04.45 बजे ठाणे पहुंची थी. इसके विस्तार की जरूरत को देखते हुए करीब 25 साल बाद 20 जून 1878 में इसी स्थान पर एक नये रेलवे स्टेशन विक्टोरिया टर्मिनस का कार्य शुरू किया गया, जिससे बनने में पूरे 10 साल लगे. उस समय तक की सबसे लंबे समय में बनने वाली इमारतों में एक थी विक्टोरिया टर्मिनस,जो आज छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के नाम से मशहूर है.
विक्टोरिया टर्मिनस से मिली थी बॉम्बे को पहचान
सात अजूबों में शामिल आगरा के ताजमहल के बाद देश की सबसे लोकप्रिय इमारत विक्टोरिया टर्मिनस यानी छत्रपति शिवाजी टर्मिनस को माना जाता है. इस इमारत के केंद्र में एक ऊंचा गुंबद है जो इस वास्तुशिल्प की महानता को दर्शाता है. टर्मिनस के अंदर का नजारा और भी भव्य है और घुमावदार सीढ़ियों, दीवारों और छतों की जादुई नक्काशी सभी का मन मोह लेती है. इमारत के मध्य में महारानी विक्टोरिया की प्रतिमा भी लगाई गई थी, जिसे बाद में हटा दिया गया. विक्टोरिया टर्मिनस वस्तुतः गोथिक शैली में बनाया गया है. इस इमारत की लोकप्रियता का आलम यह था कि बाद में बॉम्बे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोथिक सिटी का दर्जा भी प्राप्त हुआ.
विक्टोरिया टर्मिनस से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस
आजादी के बाद से ही देश भर के उन इमारतों के नाम बदलने का सिलसिला शुरू हुआ, जिनका नाम अंग्रेजों के नामों पर आधारित थे. 90 के दशक में मुंबई में भी विदेशी नामों को बदलने के लिए बाला साहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसैनिकों ने काफी हंगामा-प्रदर्शन किया. तब तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश कलमाड़ी ने इसका नाम विक्टोरिया टर्मिनस से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कर दिया गया. हालांकि पुराने लोग अथवा दूर दराज के गांव-कस्बों में आज भी इसे बंबई वीटी ही कहकर संबोधित करते हैं.