Year Ender 2019: इन शख्सियतों ने दुनिया को कहा अलविदा! बाकी रह गईं सिर्फ यादें
इस वर्ष राजनीति, साहित्य और सिनेमा जगत के कई हस्तियों ने दुनिया को अलविदा कहा, जो लोगों के आदर्श थे, जिन्हें लोग दिल से चाहते थे. आइये जानें वे कौन-कौन सी हस्तियां रहीं, जिनकी बस यादें बाकी रह गई हैं.
वर्ष 2019 (Year 2019) कुछ पाने मगर बहुत कुछ खोने वाला कहा जा सकता है, जिसकी टीस हर भारतीयों के मन में वर्षों बनी रहेगी. इस वर्ष राजनीति, साहित्य और सिनेमा जगत के कई हस्तियों ने दुनिया को अलविदा कहा, जो लोगों के आदर्श थे, जिन्हें लोग दिल से चाहते थे. आइये जानें वे कौन-कौन सी हस्तियां रहीं, जिनकी बस यादें बाकी रह गई हैं. इस वर्ष भाजपा लोकसभा चुनाव में भले ही प्रचण्ड बहुतमत के साथ सत्ता में लौटी हो, मगर इस वर्ष बीजेपी ने कई धुरंधर नेता भी खोए हैं. उधर सिनेमा और साहित्य क्षेत्र को भी कम नुकसान नहीं हुआ...
लोकप्रिय एवं शानदार शख्सियत अरुण जेटली
साल 2019 के उत्तरार्ध में भाजपा के ‘संकटमोचक’ कहे जाने वाले नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का निधन 24 अगस्त 2019 को हुआ. जेटली भाजपा के एक मजबूत स्तंभ थे और सत्ता में रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों का सफलता पूर्वक संचालन किया. अस्वस्थता के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व ही वह राजनीति से संन्यास ले चुके थे. वकालत करके राजनीति में आए अरुण जेटली दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ डीडीसीए के अध्यक्ष भी थे.
प्रखर और दमदार आवाज वाली सुषमा स्वराज
अपने ओजस्वी एवं प्रभावशाली भाषणों के लिए सुषमा स्वराज भाजपा ही नहीं विपक्षी नेताओं के बीच भी काफी लोकप्रिय थीं. अटल बिहारी बाजपेयी के बाद भाजपा में सुषमा स्वराज ही सबसे कुशल वक्ता के रूप में लोकप्रिय थीं, लेकिन 6 अगस्त 2019 को यह दमदार सदा के लिए खामोश हो गयी. विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने विदेशों में फंसे कई भारतीयों को सुरक्षित स्वदेश लाने में अहम भूमिका निभाई थी. उनके प्रशंसक पाकिस्तान, ईरान और ईराक जैसे मुस्लिम बहुल देशों में भी हैं. अस्वस्थता के कारण सुषमा स्वराज भी 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व राजनीति से संन्यास ले चुकी थीं.
यह भी पढ़ें- Year Ender 2019: अयोध्या से लेकर राफेल तक इस साल के सुप्रीम कोर्ट के कुछ अहम फैसले.
गोवा की धड़कन और सशक्त रक्षामंत्री थे मनोहर पर्रिकर
भारतीय जनता पार्टी के ही एक और प्रभावशाली नेता थे गोवा के डॉ. मनोहर गोपालकृष्ण प्रभु पार्रिकर मनोहर पर्रिकर, जिनकी सादगी और ईमानदारी का हर कोई कायल था. गोवा के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में वह सुरक्षा की परवाह किये बिना आम जनता के बीच शामिल हो जाते थे, इसीलिए उन्हें गोवा की धड़कन कहा जाता था और शायद यही वजह थी कि गोवा में जब उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर आमंत्रित किया गया तो उन्होंने केंद्र में रक्षा मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद त्याग दिया था. कैंसर की बीमारी से जूझते 17 मार्च 2019 के दिन उनकी मृत्यु हो गयी.
बिंदास प्रवक्ता एवं अधिवक्ता रामजेठमलानी
रामजेठ मलानी अपने बिंदास और बेबयाक बयान के लिए सदा सुर्खियों में रहे. देश के तेज-तर्रार वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम जेठमलानी का 8 सितंबर 2019 को जब देहांत तब वे 95 साल के थे, लेकिन उनकी शक्सियत पर कभी भी उम्र हावी नहीं रहा. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में राम जेठमलानी देश के कानून, न्याय और कंपनी अफेयर मंत्री थे. पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जहां देश का कोई भी वकील आरोपियों सतवंत सिंह और केहर सिंह के लिए मुकदमा लड़ने को तैयार नहीं था, राम जेठमलानी ने इस केस को अपने हाथों में लेकर वकालत के पेशे के प्रति निष्ठा दिखाई थी.
यह भी पढ़ें- Year Ender 2019: नववर्ष पर अर्थव्यवस्था को सुद्दढ़ बनाएंगी केंद्र सरकार की ये महत्वपूर्ण योजनाएं.
दिल्ली की धड़कन कांग्रेस की 'बेटी' शीला दीक्षित
साल 1984 में उत्तर प्रदेश के कन्नौज से पहली बार सांसद चुनी गईं शीला दीक्षित को बाद में कांग्रेस ने दिल्ली बुला लिया. साल 1998 से 2013 के बीच 15 साल तक निरंतर दिल्ली की मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने दिल्ली के विकास के लिए बहुत कुछ किया. दिल्ली में कांग्रेस का दबदबा बनाए रखने में शीला दीक्षित की काफी प्रभावशाली भूमिका रही है. 81 वर्ष की आयु में 20 जुलाई 2019 को उनका निधन हुआ.
चुनावी प्रक्रिया में क्रांति लाने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन
भारत में आम चुनाव के नियमों को सख्ती से लागू करवाने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का देहांत 10 नवंबर 2019 को हुआ, उस समय वे 86 वर्ष के थे. साल 1990 से 1996 तक वे भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे. मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने से पहले वह 1989 में भारत के 18वें कैबिनेट सेक्रेटरी के पद पर भी रहे. 1996 में उन्हें सरकारी सेवाओं के लिए रमन मेग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था.
संगीत के स्वर्णयुग के संगीतज्ञ खय्याम
संगीत के स्वर्णयुग के अंतिम हस्ताक्षर रहे संगीतकार मोहम्मद ज़हूर खय्याम हाशमी भी इसी वर्ष 19 अगस्त की रात्रि में इस नश्वर संसार से नाता तोड़ गये. इस समय उनकी आयु 92 वर्ष थी. खय्याम का निधन हिंदी सिनेमा संगीत के लिए अपूरर्णीय क्षति कही जा सकती है. खय्याम ने ‘उमराव जान’, ‘त्रिशूल', ‘नूरी' और ‘शोला और शबनम' जैसी कई सफल फिल्मों में संगीत दिया था. खय्याम के नाम से शोहरत पाने वाले मोहम्मद जहूर हाशमी को संगीत नाटक अकादमी और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने अपनी पूरी कमाई लगभग 12 करोड़ रूपये एक ट्रस्ट के नाम किया था, जिसे जरूरतमंद कलाकारों की मदद के लिए खर्च की जाती है.
कला और कमर्शियल फिल्मों के धनी गिरीश कर्नाड
रंगमंच और सिनेमा के मशहूर अभिनेता गिरीश कर्नाड का निधन भी इसी वर्ष 10 जून को हुआ था. तमाम अवार्ड अपने नाम कर चुके अभिनेता, निर्देशक और लेखक गिरीश कर्नाड ने हिंदी सिनेमा ही नहीं साउथ सिनेमा की भी कई यादगार फिल्में कर खूब नाम-दाम अर्जित किया. उनकी अंतिम रिलीज हिंदी फिल्म थी सलमान खान की टाइगर जिंदा है, जिसमें वह रॉ चीफ की भूमिका में थे.
1978 में नेशनल अवॉर्ड और बाद में ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गए गिरीश कर्नाड बहुआयामी शख्सियत वाले व्यक्ति थे.
सिनेमा में स्टंट को नई पहचान दिलाने वाले वीरू देवगन
अभिनेता अजय देवगन के पिता और मशहूर स्टंट डायरेक्टर वीरू देवगन का निधन इस साल 27 मई को मुंबई में हुआ, इस समय वे 86 वर्ष के थे. वीरू देवगन ने अपने करियर में 80 से ज्यादा फिल्मों में स्टंट कोरियोग्राफ किया. जिसमें ‘मिस्टर इंडिया’, ‘फूल और कांटे’, ‘शहंशाह’, ‘दिलवाले’ प्रमुख हैं. एक्शन के अलावा उन्होंने अभिनय, लेखन, प्रोडक्शन और कोरियोग्राफर के तौर पर भी काम किया.
बहुआयामी शख्सियत डॉ श्रीराम लागू
अभिनय करियर से लगभग संन्यास ले चुके अभिनेता ड़ॉ श्रीराम लागू का 17 दिसंबर को पुणे में निधन हुआ. इस समय वह 92 वर्ष के थे. डॉक्टर श्रीराम लागू ने साठ के दशक में पुणे, भारत, ताबोरा और तंजानिया में दवा और सर्जरी का अभ्यास किया था, लेकिन पुणे में प्रोग्रेसिव ड्रायमेटिक एसोसिएशन और मुंबई में ‘रंगायन’ के माध्यम से थिएटर गतिविधियों से जुड़ने के बाद वह यहीं के होकर रह गये. फिल्म ‘घरौंदा’ के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का पुरस्कार भी हासिल किया था.
आधुनिक साहित्य जगत के धुरी नामवर सिंह
हिंदी जगत के मशहूर साहित्यकार और आलोचना की विधा के श्रेष्ठतम लेखक नामवर सिंह का निधन 20 फरवरी 2019 को हुआ. इस समय वे 92 वर्ष के थे. उनके निधन से साहित्य जगत और पत्रकारिता के क्षेत्र में एक सूनापन आ गया. हिंदी साहित्य से जुड़े लोग उन्हें नायाब आलोचक और साहित्य में दूसरी परंपरा का अन्वेषी मानते थे. नामवर सिंह ने आलोचना और साक्षात्कार विधा को एक नया आयाम दिया. मूर्धन्य साहित्यकार नामवर सिंह को साहित्य अकादमी सम्मान से भी सम्मानित किया गया.