Year Ender 2020: ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से लेकर बीजेपी का दामन थामने तक, सुर्खियों में रहीं भारत की राजनीति से जुड़ी ये बड़ी घटनाएं
साल 2020 में बड़ी राजनीतिक घटनाएं ( फोटो क्रेडिट- fB and PTI, twitter)

नई दिल्ली:- साल 2020 अब समाप्त होने वाला है. लेकिन साल 2020 कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं का गवाह रहा. इस साल कई ऐसे सियासी उथल पुथल हुए जिसने हर किसी को अचंभित कर दिया. इस साल देश में कई सियासी गहमागहमी देखने को मिला. लेकिन इसमें सबसे ज्यादा जो चर्चा में रहीं उन्हें भुला नहीं जा सकता. साल 2020 खत्म होने वाला है. उसी के साथ 2021 की शुरुवात होगी. लेकिन जब भी बीते साल को याद किया जाएगा और उसमें राजनीति घटना का जिक्र होगा तो. इन्हें जरुर याद किया जाएगा. जिसमें मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार का गिरना, ज्योतिरादित्य सिंधियां का बीजेपी में आना, दिल्ली में बीजेपी की हार के बाद मध्य प्रदेश और बिहार में सत्ता का पाना. इसके अलावा मणिपुर में बीजेपी की सरकार का गिरने से बचना.

मणिपुर में सियासी हलचल:- विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने बहुमत से दस सीटें कम मिली थी. लेकिन उसके बावजूद बीजेपी ने कांग्रेस को पछाड़ते हुए स्थानीय राजनीतिक दलों के समर्थन से सरकार का गठन कर लिया था. लेकिन कहतें है ना युद्ध, प्यार और राजनीति में सब कुछ जायज है. इसे सही साबित करते हुए बीजेपी ने अपनी सरकार ही नहीं बल्कि कांग्रेस के कई विधायकों को भी तोड़ कर अपने पाले में कर लिया. जो कांग्रेस के लिए किसी झटके से कम नहीं था. लेकिन उसके बाद एक बार फिर से सियासी ड्रामा और भी तेज हो गया जब मणिपुर में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार एनपीपी के चार, बीजेपी के तीन बागी विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद मुश्किल में घिर गई थी. लेकिन संकट मोचक बनकर हेमंत बिस्व सरमा एनपीपी के प्रतिनिधिमंडल को अमित शाह से मिलवाने लेकर गए. जिसके बाद मामला शांत हुआ. Year Ender 2020: साल 2020 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी समेत इन नेताओं ने संसार को कहा अलविदा.

मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का गिरना:- मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद थे. कमलनाथ ने सीएम पद का पदभार संभाला. लेकिन 15 बीजेपी से 15 साल बाद सत्ता का सुख भोगने आई कांग्रेस की सरकार 15 महीने में ही गिर गई. ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी कमलनाथ को भारी पड़ गई और उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ गई. दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों के इस्तीफे के कारण कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी. जिसके बाद 20 मार्च को कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

सचिन पायलट की बगावत:- मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावत के बाद उसका असर राजस्थान में देखने को मिला. सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ उप मुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट ने मोर्चा खोल दिया. सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली के पास मानेसर में एक रिज़ॉर्ट में ठहर गए, जिसके बाद पूरे देश की नजर इस घटनाक्रम को निहार रही थी. शुरुवात में लगा की सचिन पायलट अब अपने करीबी दोस्त सिंधिया की तरह बगावत का बिगुल फूंक देंगे. लेकिन इस दौरान सचिन पायलट कुछ खुलकर नहीं कह रहे थे. वहीं, दूसरी तरफ अशोक गहलोत जैसे राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी ने अपना दांव चल दिया. जिसके एक महीने बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात के बाद जयपुर लौटे थे. Year Ender 2019: इन 5 चीजों के लिए याद रहेगा ICC World Cup 2019.

23 कांग्रेस नेताओं का लेटर बम:- पहली बार कांग्रेस अप्रत्याशित रूप से बड़े फेरबदल की मांग उठी थी. जिसने पूरे सियासी पार्टियों की भौंहें खड़ी कर दी. लगा की अब कांग्रेस में कोई बड़ा बदलाव हों तय हैं. दरअसल कांग्रेस के 23 नेताओं की ओर से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा गया था. जिसमें बड़े फेरबदल की मांग की मांग की गई. पत्र में साफ लिखा था कि  पार्टी को संचालित करने के लिए प्रभावी केंद्रीय नेतृत्व के अलावा क्लीयर कट मैकेनिज्म होना चाहिए. इस लेटर बम के बाद कांग्रेस के भीतर की अंदरूनी कहल भी नजर आई. वहीं, कई कांग्रेस के नेता बिहार विधानसभा चुनाव या अन्य उपचुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस में नेतृत्व पर सवाल उठा चुके हैं.

शिरोमणि अकाली दल ने NDA से नाता तोड़ा:- किसान बिलों का विरोध करते हुए मोदी सरकार से हरसिमरत कौर बादल के केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफे के बाद शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा को अब एक और झटका दिया है। पार्टी ने किसान बिलों के खिलाफ लड़ाई तेज करते हुए NDA और बीजेपी से 22 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने 1998 में राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन (NDA) की स्थापना की थी. उस समय शुरुआती घटकों में प्रकाश सिंह बादल की पार्टी अकाली दल भी एनडीए का सहयोगी बना था. तब से लगातार अकाली दल भाजपा का सहयोगी रहा. ऐसे में अब जाकर 22 साल बाद अकाली दल ने बीजेपी का दामन छोड़ दिया है.