Women's Reservation Bill: महिला आरक्षण विधेयक को AAP ने बताया 'महिला बेवकूफ बनाओ' विधेयक, जानें क्यों
सरकार द्वारा लोकसभा में पेश किए गए महिला आरक्षण विधेयक को आम आदमी पार्टी (आप) ने 'जुमला' करार देते हुये 'महिला बेवकूफ बनाओ' विधेयक की संज्ञा दी है.
नई दिल्ली, 20 सितंबर: सरकार द्वारा लोकसभा में पेश किए गए महिला आरक्षण विधेयक को आम आदमी पार्टी (आप) ने 'जुमला' करार देते हुये 'महिला बेवकूफ बनाओ' विधेयक की संज्ञा दी है. संसद के विशेष सत्र के तीसरे दिन मीडिया से बात करते हुए आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा, "यह निश्चित रूप से महिला आरक्षण विधेयक नहीं है, यह 'महिला बेवकूफ बनाओ' विधेयक है." यह भी पढ़ें: Women's Reservation Bill: एससी-एसटी, OBC और अल्पसंख्यक महिलाओं को भी मिले आरक्षण, डिंपल यादव की मांग
उन्होंने कहा, 'हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आये हैं तब से उन्होंने जो भी वादे किये थे उनमें से कोई भी पूरा नहीं हुआ है. सिंह ने कहा, "यह उनके द्वारा लाया गया एक और 'जुमला' है. यदि आप विधेयक को लागू करना चाहते हैं, तो आप पूरी तरह से साथ खड़ी है, लेकिन इसे 2024 में लागू करें. क्या आपको लगता है कि देश की महिलाएं मूर्ख हैं?"
आप नेता ने कहा, "महिला विरोधी भाजपा अब विधेयक के नाम पर एक और 'जुमला' लेकर आई है. देश की महिलाएं, राजनीतिक दल इन चुनावी हथकंडों को समझते हैं. इसलिए, हम कहते हैं कि अगर उनकी मंशा साफ है, तो 2024 में इसे लागू करें."
उनकी यह टिप्पणी संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023 को लोकसभा में कार्य की अनुपूरक सूची में पेश किए जाने के एक दिन बाद आई. महिला आरक्षण विधेयक में प्रस्तावित किया गया है कि आरक्षण 15 साल की अवधि तक जारी रहेगा और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों के भीतर एससी और एसटी के लिए कोटा होगा. हालांकि, सूत्रों ने कहा कि इस कानून के 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू होने की संभावना नहीं है.
उन्होंने कहा कि इसे परिसीमन प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही लागू किया जाएगा, संभवत: 2029 में इसे लागू किया जा सकता है. परिसीमन प्रक्रिया शुरू होने के बाद आरक्षण लागू होगा और 15 वर्षों तक जारी रहेगा. विधेयक के अनुसार, महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को प्रत्येक परिसीमन के बाद बदला जाएगा.
सरकार ने कहा कि महिलाएं पंचायतों और नगर निकायों में महत्वपूर्ण रूप से भाग लेती हैं, लेकिन विधानसभाओं और संसद में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित है.
इसमें कहा गया है कि महिलाएं अलग-अलग दृष्टिकोण लाती हैं और विधायी बहस और निर्णय लेने की गुणवत्ता को समृद्ध करती हैं. कांग्रेस ने इस विधेयक को ''चुनावी जुमला'' करार दिया है और इसे देश की महिलाओं और लड़कियों के साथ धोखा बताया है.