भारत में अहमदिया समुदाय मुसलमान हैं या नहीं इसे लेकर एक बार फिर चर्चा छिड़ी है. वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव को जमीयत उलेमा ए हिन्द ने सही बताया है तो केंद्र सरकार ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है.आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम बताने वाले प्रस्ताव के बाद यह बहस शुरु हुई है. साल 2012 में आंध्र प्रदेश स्टेट वक्फ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित कर के सुन्नी मुसलमानों की एक उप-शाखा अहमदिया या अहमदी को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया था. वक्फ बोर्ड के इस प्रस्ताव को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और उच्च न्यायालय ने प्रस्ताव पर अंतरिम रूप से रोक लगा दी.
इस रोक के बावजूद इसी साल फरवरी में वक्फ बोर्ड ने फिर से एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि अहमदी लोग मुसलमान नहीं हैं. वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव में कहा गया, "जमीयत उलेमा, आंध्र प्रदेश के 26 मई, 2009 के फतवे के परिणामस्वरूप, 'कादियानी समुदाय' (अहमदिया) को 'काफिर' घोषित किया जाता है, ना कि मुस्लिम.”
इसी हफ्ते प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने भी एक बयान जारी करके आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के अहमदिया समुदाय के संबंध में अपनाए गए दृष्टिकोण को सही ठहराया और कहा कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने जो कहा है वह मुस्लिम समुदाय के लोगों की सर्वसम्मत राय है.
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अहमदी को क्यों मुसलमान नहीं मानता जमीयत
इस बारे में जमीयत ने कहा कि इस्लाम धर्म की बुनियाद दो महत्वपूर्ण मान्यताओं पर है जो एक अल्लाह को मानना और पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का रसूल और अंतिम नबी मानना है. बयान में कहा गया है कि ये दोनों आस्थाएं इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों में भी शामिल हैं.
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय सचिव मौलाना नियाज फारूकी का कहना है कि अहमदिया के साथ मुसलमान शब्द जोड़ना ही गलत है. डीडब्ल्यू से बातचीत में फारूकी कहते हैं, "सारी दुनिया में मुसलमानों के हर तबके ने उन्हें गैर-मुस्लिम माना है. रसूल हमारे आखिरी नबी हैं और जो उन्हें आखिरी नबी नहीं मानता है, वो काफिर है, वो मुसलमान है ही नहीं. यह बात कुरान की आयत कहती है. ऐसे व्यक्ति के लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है. दूसरी बात यह, कि ये लोग अहमदिया के नाम से धोखा देते हैं. ये कादियानी हैं लेकिन अपने आपको मुसलमान कहकर और अहमदिया नाम के जरिए धोखा देते हैं.”
जमीयत ने अपने बयान में भी कहा है कि साल 1974 में मुस्लिम वर्ल्ड लीग के सम्मेलन में सर्वसम्मति से अहमदिया समुदाय के संबंध में प्रस्ताव पारित कर घोषणा की गई थी कि इसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है. इस सम्मेलन में 110 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था.
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मुसलमान या गैर मुसलमान कौन बताएगा
जमीयत के इस बयान के बाद केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने नई दिल्ली में मीडिया से बातचीत में कहा कि वक्फ बोर्ड के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह किसी को मुसलमान या गैर-मुसलमान घोषित कर सकें. उनका कहना था, "देश का हर वक्फ बोर्ड एक्ट ऑफ पार्लियामेंट के अधीन है. किसी भी वक्फ बोर्ड के पास यह अधिकार नहीं है कि वो किसी फतवे को गवर्नमेंट ऑर्डर में तब्दील कर दे. हमने आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव से जवाब मांगा है क्योंकि मुझसे अहमदिया समुदाय के लोगों ने इस बारे में अपील की थी.”
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को लिखा गया है कि अहमदिया मुस्लिम समुदाय ने 20 जुलाई को मंत्रालय को जानकारी दी थी कि कुछ वक्फ बोर्ड अहमदिया समुदाय का विरोध कर रहे हैं और समुदाय को इस्लाम के दायरे से बाहर घोषित करने के लिए अवैध प्रस्ताव पारित कर रहे हैं.
इस बारे में अहमदिया समुदाय के लोगों से बात करने की भी कोशिश की गई लेकिन किसी से बातचीत संभव नहीं हो सकी. कुछ वक्फ बोर्डों के मामलों की पैरवी करने वाले अहमदिया समुदाय से जुड़े एक वरिष्ठ वकील ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि पाकिस्तान में तो अहमदी लोग खुद को मुसलमान कह ही नहीं सकते हैं लेकिन भारत में भी अक्सर अपनी पहचान छिपाते हैं. इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा, "वैचारिक स्तर पर तो इस्लाम की मुख्य धारा से उनकी सोच अलग है ही, कई बार लोग पैसे लेकर भी कादियानी बन जाते हैं लेकिन समाज के डर से खामोश रहते हैं. मुस्लिम समाज में उन्हें अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता यानी उन्हें मुसलमान समझा ही नहीं जाता.”
कौन है अहमदिया मुसलमान
अहमदिया समुदाय मुस्लिम समाज में ही एक पंथ है. दरअसल, 19वीं सदी में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के दौरान मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों और उनमें शिक्षा का प्रसार करने के मकसद से मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी ने 1889 में एक आंदोलन चलाया था जिसे उन्हीं के नाम पर अहमदिया आंदोलन कहा जाता है.
मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में 13 फरवरी 1835 को हुआ था. मिर्जा गुलाम अहमद का कहना था कि ना तो हजरत मोहम्मद आखिरी नबी हैं और ना ही कुरान आखिरी किताब. मिर्जा गुलाम अहमद ने खुद को नबी घोषित किया था. उनके इन्हीं विचारों के कारण मुस्लिम समुदाय के लोग ना सिर्फ उनका विरोध करते हैं बल्कि उन्हें और उनके अनुयायियों को मुसलमान मानने से भी इनकार करते हैं.
दूसरी तरफ अहमदिया समुदाय के लोग खुद को प्रगतिशील मुस्लिम बताते हैं. अहमदिया समुदाय की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, इस समुदाय को मानने वाले लोग दुनिया के 200 से ज्यादा देशों में रहते हैं. यही नहीं, इन देशों में इस समुदाय के लोगों के पास हजारों मस्जिदें, स्कूल और अस्पताल भी हैं.
सबसे ज्यादा अहमदी पाकिस्तान में
ना सिर्फ दक्षिण एशिया बल्कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अहमदी पाकिस्तान में रहते हैं जहां इनकी आबादी 40 लाख बताई जाती है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का 2.2 फीसदी है. पंजाब प्रांत में रबवाह शहर अहमदिया समुदाय का वैश्विक मुख्यालय हुआ करता था लेकिन फिलहाल यह इंग्लैंड से ऑपरेट किया जाता है.
पाकिस्तान के बाद सबसे ज्यादा अहमदी नाइजीरिया में रहते हैं. वहां इनकी संख्या करीब 25 लाख है. भारत में भी करीब 10 लाख अहमदी रहते हैं. इसके अलावा जर्मनी, तंजानिया, केन्या जैसे कई देशों में भी बड़ी संख्या में अहमदी समुदाय के लोग रहते हैं.
पाकिस्तान में मई 1974 में दंगे भड़के थे जिनमें अहमदिया समुदाय के 27 लोगों की मौत हो गई थी. घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुसलमानों को ‘नॉन-मुस्लिम माइनॉरिटी' घोषित कर दिया था. यही नहीं, पाकिस्तान अहमदिया समुदाय के लोगों को खुद को मुस्लिम कहने और अपने धर्म का प्रचार करने पर भी रोक है. ऐसा करने पर 3 साल तक की सजा का भी प्रावधान है. वे अपने प्रार्थना स्थल को मस्जिद नहीं कह सकते हैं और ना ही अजान शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं.