नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की ताजा रिपोर्ट ने देश में शिक्षा व्यवस्था और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में छात्र आत्महत्या के मामलों की संख्या 13,892 तक पहुंच गई, जो अब तक का सबसे ऊंचा आंकड़ा है. यह 2022 की तुलना में 6.5% अधिक है. साल 2013 में जहां 8,423 छात्रों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2023 तक यह संख्या बढ़कर 64.9% अधिक हो गई. सिर्फ पिछले पांच सालों में ही छात्र आत्महत्याओं में 34.4% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 2013 से 2023 के बीच देश ने 1,17,849 छात्रों को आत्महत्या में खो दिया.
भारत में तेजी से बढ़ रहे Sudden Deaths के मामले, 2023 में देश में हर दिन 175 लोगों की गई जान.
किन राज्यों में सबसे ज्यादा मामले?
- महाराष्ट्र- 14.7%
- मध्य प्रदेश- 10.5%
- उत्तर प्रदेश- 9.9%
- तमिलनाडु- 9.6%
ये आंकड़े बताते हैं कि छात्र आत्महत्या सिर्फ़ एक क्षेत्र की नहीं, बल्कि पूरे देश की समस्या है.
शिक्षा स्तर और आत्महत्या
NCRB डेटा दिखाता है कि आत्महत्या करने वाले ज़्यादातर छात्र माध्यमिक या उससे नीचे की कक्षाओं में पढ़ते थे:
- कक्षा 10 तक पढ़े छात्र- 24.6%
- कक्षा 8 तक- 18.6%
- कक्षा 12 तक- 17.5%
- स्नातक या उससे ऊपर- केवल 5.5%
यह साफ करता है कि कम उम्र के छात्रों पर पढ़ाई और परीक्षा का दबाव सबसे ज्यादा है.
विशेषज्ञों का कहना क्या है?
दिल्ली के IHBAS के प्रोफेसर डॉ. ओम प्रकाश ने कहा कि ये आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं. “ये मौतें बताती हैं कि हमारे युवा मानसिक और भावनात्मक दबाव से जूझ रहे हैं. अकादमिक दबाव, पारिवारिक अपेक्षाएं और निजी समस्याएं मिलकर छात्रों को गहरे तनाव में ले जाती हैं.”
सरकार की पहल
सरकार ने छात्रों की मानसिक सेहत पर कई कदम उठाए हैं:
- मनोडर्पण हेल्पलाइन (8448440632)- जहां 400 से ज्यादा काउंसलर छात्रों को परामर्श देते हैं.
- टेली मैनस (Tele MANAS) हेल्पलाइन (14416/1800-891-4416) – 20 भाषाओं में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं.
- सुप्रीम कोर्ट की राष्ट्रीय टास्क फोर्स- जो स्कूल-कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति का आकलन कर रही है.
आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ सरकारी योजनाएं काफी नहीं हैं. जरूरत है कि स्कूल, कॉलेज और परिवार मिलकर छात्रों को सुरक्षित, सहयोगी और सकारात्मक माहौल दें. बच्चों को सुनना, समझना और मानसिक स्वास्थ्य को शिक्षा का हिस्सा बनाना अब समय की मांग है.













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